भोपाल में इन दिनों करीब 150 पत्रकारों के एक नाम वाली लिस्ट वायरल हो रही है. माना जा रहा है कि इस लिस्ट में उन पत्रकारों के नाम हैं, जो कि भ्रष्ट हैं. फिलहाल, क्राइम ब्रांच इस लिस्ट का स्त्रोत खोज रही है. हालांकि, इस मामले में एफआईआर का दर्ज होना हैरान कर रहा है क्योंकि पहले भी इस तरह की लिस्ट जारी होती रही हैं.
साल 2018 के चुनावों में भी इसी तरह की एक लिस्ट वायरल हुई थी. जिसमें हिंदी और अंग्रेजी मीडिया से जुड़े प्रमुख पत्रकारों के नाम शामिल थे. तब कहा गया कि इन पत्रकारों को तोहफे के रूप में कार मिली हैं. इसी साल लोकसभा चुनाव के दौरान भी एक लिस्ट वायरल हुई, इसमें पत्रकारों पर कई तरह के लाभ लेने के दावे किए गए.
ताजा विवाद के बीच, चार पत्रकारों की शिकायत पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 336 (4) और 356 (2) के तहत अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया गया है. शिकायत में आरोप लगाया गया है कि इस तरह की मनगढंत सूची तैयार कर प्रदेश में मीडिया की छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है.
मालूम हो कि यह सूची सोशल मीडिया पर वायरल की गई थी. शिकायत में जिक्र है कि इस सूची को भड़ास4मीडिया नामक पोर्टल ने भी प्रकाशित किया. यह वेबसाइट मीडिया जगत से जुड़ी चर्चाओं और विवादों को प्रकाशित करने के लिए जानी जाती है. शिकायत में जिक्र के बाद पुलिस ने भड़ास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह को पूछताछ के लिए समन भेजे हैं. हालांकि, यशवंत सिंह ने कहा कि उन्हें अभी ऐसा कोई नोटिस नहीं मिला है.
उन्होंने आगे कहा, “यह सूची सही मालूम होती है और कई बातें ये चीज बात साबित करती है. सूची सही इसीलिए मालूम होती है क्योंकि इसमें कई बड़े मीडिया घरानों से जुड़े पत्रकारों के नाम शामिल हैं.. और मेरे पास पुख्ता जानकारी है कि उन्हें नौकरी से निकाला गया है. लेकिन जांच पर ध्यान देने के बजाए इस सूची को प्रकाशित करने वाले लोगों को निशाना बनाना सही नहीं हैं. यह तो ख़बर देने वाले को ही दोषी बताने जैसी बात हुई.”
हालांकि, कई पत्रकारों ने सिंह के इस दावे को खारिज किया. उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि सूची में शामिल पत्रकारों को नौकरी से निकाला गया है.
शिकायतकर्ताओं में से एक रिजवान अहमद सिद्दीकी ने भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित एक लेख में अपना विरोध दर्ज कराया है. उन्होंने कहा कि शिकायत में किसी का भी नाम नहीं लिया गया है. सिद्दीकी ने लिखा है, “चरित्र हनन करने में जिन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी हमने फिर भी उन्हें जांच में उनका पक्ष रखने का अवसर दिया है और एफआईआर में सीधे उन्हें नामज़द करवाने के बजाय अज्ञात के विरुद्ध प्रकरण पंजीबद्ध करवाया है इसलिए कि वे हमारे दुश्मन नहीं हैं हमारी आपत्ति उनके कृत्य पर है.”
सिद्दीकी आगे लिखते हैं, “मैंने अपनी 36 बरस की पत्रकारिता में कभी एकतरफ़ा ख़बर को प्रोत्साहित नहीं किया. यही पत्रकारिता की नैतिकता है कि कोई बिना विश्वनीय साक्ष्य और तथ्यों के ऐसी सामग्री न परोसे या बहुत आवश्यक है तो कम से कम जिसके बारे में लिख रहे हैं, उसे अपना पक्ष रखने का अवसर तो दें लेकिन यहां इसका ख़्याल नहीं रखा गया. जिन्हें मैं व्यक्तिगतरूप से ज़िम्मेदार और समझदार मानता हूं, उन्होंने भी इसे पढ़कर बिना देर लगाए इसे सही ठहराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इसलिए जीवन में पहली बार अपनी जमात के कुछ साथियों के खिलाफ़ अप्रिय कार्रवाई की ओर बढ़ना पड़ा. बेनिफिट ऑफ डाउट न्याय का प्राकृतिक सिद्धांत है परंतु यहां तो डाउटफुल सामग्री का ही बेनिफिट लेने से लोग नहीं चूके.”
‘इस तरह तो कोई कुछ भी लिख देगा’
पब्लिक वाणी नामक अखबार चलाने वाले पत्रकार मृगेंद्र सिंह भी शिकायतकर्ताओं में से एक हैं. वे कहते हैं, “यह पहली बार है जब इस तरह की लिस्ट को लेकर कोई एफआईआर हुई है. क्राइम ब्रांच फिलहाल मामले की जांच कर रही है. वह लोगों को नोटिस भेजेगी और इस सूची का स्त्रोत पता लगाने की कोशिश करेगी. इस तरह तो कोई कुछ भी लिखकर किसी को बदनाम करेगा.”
सिंह ने आगे कहा कि ऐसा लगता है कि सूची का एक पन्ना गायब है. उन्होंने दावा किया कि दरअसल ये पत्रकारों को बांटने की कोशिश है.
इस सूची में शामिल नेशनल टीवी चैनल से जुड़े एक पत्रकार कहते हैं, “प्रदेश के जनसंपर्क विभाग के पास भी पत्रकारों की एक सूची होती है. उस सूची को लीजिए उसमें से कुछ नाम हटाइए, कुछ जोड़िए और जो मन आए वो कीजिए. लोगों को अंदाजा लगाते रहने दीजिए.”
नेशनल मीडिया हाउस से जुड़े एक अन्य पत्रकार ने कहा, “इसमें कोई सच्चाई तो है नहीं लेकिन किसी को बदनाम करने के लिए यह काफी है.” वहीं, कई पत्रकारों ने इस मामले पर बोलने से मना कर दिया.
दोपहर मेट्रो नामक अखबार चलाने वाले राजेश सिरोथिया कहते हैंं, “इस सूची में कितनी सच्चाई है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मुझे जिस संस्थान से जुड़ा बताया गया है वो गलत है.” सिरोथिया दावा करते हैं कि सूची के पीछे राजनीतिक वजहें नजर आती हैं.
सूची वायरल के कुछ घंटो बाद कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने दो ट्वीट किए. जिसमें उन्होंने कहा कि पत्रकारों के सम्मान और प्रतिष्ठा पे सीधा आक्रमण है. तन्खा ने लिखा, “एमपी तो अजब है और ग़ज़ब है. प्रदेश के पत्रकारों की 4 पन्नों की सूची वायरल है. कहते हैं यह ट्रांसपोर्ट विभाग के मासिक पेमेंट की सूची है. 1996 की राजनीतिक “हवाला कांड “ सूची के तरह इसमें छोटे, बड़े सब नाम हैं. मुझे यक़ीन नहीं सूची की सत्यता के विषय में. कहते हैं यह बीजेपी के आंतरिक विरोधाभास का परिणाम है. मोहन यादव जी के विरोधियों का खेल है. इसका परिणाम बहुत घातक है. पत्रकार बंधुओं के सम्मान और प्रतिष्ठा पे सीधा आक्रमण. लोग बहुत आहत होंगे. मध्य प्रदेश पुलिस इसका संज्ञान ले. और इस कलंकित आरोप की सचाई सामने लाए. पत्रकारिता पे बड़ा हमला.”
इसके जवाब में मध्य प्रदेश के पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा, “आपकी और कांग्रेस की नज़र ही ऐसी है जो मध्यप्रदेश का भी मज़ाक़ उड़ा रही है और पत्रकारों का अपमान करने पर भी आमादा है. विरोध के लिए इतना गिरना ठीक नहीं है. लिस्ट पर भले यक़ीन न हो पर ,खुद पर यक़ीन रखें यही अपेक्षा है.”
डीसीपी अखिल पटेल ने इस मामले पर इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “"सोमवार को भोपाल शहरी जिले की अपराध शाखा इकाई में बीएनएस की धाराओं (जालसाजी और मानहानि) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. हम जांच शुरू करेंगे और उन लोगों से पूछताछ करेंगे जिन्होंने सूची वायरल की."
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