दरबार पुराने ढर्रे पर लौट रहा था. फिर से सरकारें बुलडोज़र पर सवार होकर न्याय बांट रही थी. आर्यावर्त फिर से मीम और ट्विटर ट्रेंड के ओवरडोज में मस्त हो गया था. दरबारियों का एक बड़ा हिस्सा इस बात पर मगन था कि डंकापति ने तीसरी बार शपथ लेकर नेहरू की बराबरी कर ली है. नेहरू को नीचा दिखाने और नेहरू के बराबर आने की हवस का यह दोहरा खेल बहुत से लोगों को समझ नहीं आता था. इन सबके बीच फंसे हुए थे संजय, जिनके ऊपर जनतंत्र की अभिव्यक्ति के अधिकारों का भारी बोझ था.
इसी बीच जॉर्जिया मिलोनी संग मोदीजी की मुलाकात हुई. इस बात पर नाराज मोदीजी के पुराने शागिर्द सुब्रमण्यम स्वामी ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया, उधर न तीन में न तेरह में इलोन मस्क ने भी मोदीजी की पार्टी कड़वी कर दी. इसी चौतरफा मारधाड़ पर इस हफ्ते की टिप्पणी.
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