3 जुलाई को टाइम्स नाउ की प्रमुख नविका कुमार ने अपने एक्स अकाउंट से लोकसभा की कार्यवाही के चार वीडियो ट्वीट किए. लेकिन कांग्रेस सांसद आर सुधा द्वारा स्पीकर ओम बिरला को पत्र लिखकर जांच की मांग करने के बाद, उनके वीडियो का स्रोत संदेह के घेरे में आ गया है.
जहां अन्य पत्रकार संसद टीवी के फुटेज का उपयोग करते हैं, जो कि संसदीय कार्यवाही का आधिकारिक और एकमात्र प्रसारणकर्ता है, वहीं दूसरी ओर मयिलादुथुराई सांसद का कहना है कि नविका द्वारा साझा किए गए वीडियो के कोण से पता चलता है या तो वे ट्रेजरी बेंच से थे, या कथित तौर पर बिना मंज़ूरी के संसद टीवी से “प्राप्त” किए गए थे.
अतीत में, सांसदों को सदन की कार्यवाही को फिल्माने पर निलंबित किया जा चुका है, क्योंकि इसे संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लंघन माना जाता है.
कुमार ने विपक्षी सांसदों द्वारा कार्यवाही में व्यवधान दिखाने वाले वीडियो पोस्ट किए थे. उन्होंने लिखा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बोलने के दौरान विपक्षी बेंचों में क्या हो रहा था, इसके नए वीडियो देखें और तय करें. लोकतंत्र को कौन ही बचाएगा.”
न्यूज़लॉन्ड्री ने मोदी के भाषण के दौरान संसद टीवी पर 135 मिनट की फुटेज देखी और पाया कि कुमार के ट्वीट से कोई वीडियो प्रसारण में नहीं दिखाया गया. ट्वीट में वीडियो के किनारे पर संसद टीवी का लोगो न होना, और कुमार द्वारा "नए वीडियो" शब्द का इस्तेमाल करने से पता चलता है कि वीडियो संसद टीवी पर प्रसारित प्रसारण से नहीं हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने टिप्पणी के लिए नविका कुमार और आर सुधा से संपर्क किया. यदि कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
उठाए गए सवाल
तमिलनाडु की सांसद ने पिछले सप्ताह शुक्रवार को, बिरला को पत्र लिखकर विशेषाधिकार समिति या विशेष रूप से गठित जांच समिति द्वारा इस मामले की जांच की मांग रखी.
“1 जुलाई, 2024 को लोकसभा की कार्यवाही की अनधिकृत वीडियोग्राफी और उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करने का तत्काल मामला, गंभीर अवचार और सदन के विशेषाधिकार व सामग्री का उल्लंघन है.”
संसद की कार्यवाही पर नजर रखने वाली नागरिक सहभागिता पहल, माध्यम ने भी नविका कुमार से सवाल पूछे, कि उन्हें ये वीडियो कैसे मिले.
माध्यम की संस्थापक मानसी वर्मा ने कहा, "चुनिंदा स्रोतों से लीक होने वाले सदन के अनधिकृत वीडियो विकृत या एकतरफा कहानी साझा कर सकते हैं. अतीत में ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें सबसे हालिया घटना कांग्रेस सांसद रजनी पाटिल को कथित तौर पर सदन की कार्यवाही को अपने फोन से वीडियो रिकॉर्ड करने, जो बाद में सोशल मीडिया पर आ गया, के लिए राज्यसभा से निलंबित करना है. इसे अनैतिक और संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है."
उन्होंने कहा कि इससे संसद टीवी की सेंसरशिप पर भी सवाल उठे और कहा, "अगर वे सदन में जो कुछ भी हो रहा है, जिसमें विपक्षी सांसदों का विरोध भी शामिल है, उसे दिखा रहे होते, तो इससे ऐसे वीडियो को गुप्त तरीके से रिकॉर्ड करने और लीक करने की जरूरत खत्म हो जाती."
पिछले साल फरवरी में, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सदन की कार्यवाही को फिल्माने के लिए कांग्रेस सांसद रजनी अशोकराव पाटिल को निलंबित कर दिया था. इस मुद्दे पर संसदीय विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट अभी भी लंबित है. उस समय धनखड़ ने कहा था, "यदि सदन की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की जाती है… तो यह अपने आप में एक अपराध है. लेकिन इसे प्रसारित किया जाता है और यदि आप किसी विशेष ट्वीट अकाउंट को देखें, तो उसे बड़े पैमाने पर देखा गया है."
उस मामले में विशेषाधिकार समिति की रिपोर्ट ने वीडियो रिकॉर्डिंग के मुद्दे को उजागर किया था और कहा था, "परिषद की कार्यवाही के सूचना और प्रकाशन, इसमें ऑडियो या वीडियो का प्रसारण भी शामिल है, एक विशेषाधिकार है, और इसे केवल राज्यसभा के सभापति की मंजूरी से बाहरी दुनिया में प्रसारित किया जा सकता है."
2021 में, सदन के तत्कालीन सभापति वेंकैया नायडू ने सांसदों से कहा था, "सदन की कार्यवाही की अनधिकृत रिकॉर्डिंग और सोशल मीडिया में इसके प्रसार से विशेषाधिकार का हनन और सदन की अवमानना हो सकती है."
2016 में भी आम आदमी पार्टी सांसद भगवंत मान को, शून्यकाल नोटिस बैलट की वीडियोग्राफी करने के साथ-साथ संसद में प्रवेश करने के तरीके के लिए निलंबित कर दिया गया था. उन्हें "संसद भवन की सुरक्षा को खतरे में डालने" के लिए एक संसदीय पैनल द्वारा दोषी ठहराया गया था.
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