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अवधेश कुमार

नए कानून भारतीय न्याय संहिता के तहत यूपी में पत्रकारों पर दर्ज हुई पहली एफआईआर

भारत में पत्रकारों और पत्रकारिता की स्थिति बदहाल है जिसकी गवाही साल दर साल प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में गिरता रैंक है. यहां पत्रकारों पर कभी ख़बर करने से पहले तो कभी ख़बर करने के बाद मामले दर्ज हो जाते हैं और जेल भेज दिया जाता है.

ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश के शामली ज़िले का है. यहां हुई कथित मॉब लिंचिंग को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के मामले में यूपी पुलिस ने दो पत्रकारों व तीन अन्य पर एफआईआर दर्ज की है. 

बता दें कि भरतीय न्याय संहिता आने के बाद पत्रकारों पर दर्ज यह पहला मामला है.

यह एफआईआर उप निरीक्षक मनेंद्र कुमार की शिकायत के आधार पर हुई है. एफआईआर के मुताबिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर 5 जुलाई को फिरोज क़ुरैशी नामक युवक की मौत के संबंध में वसीम अकरम त्यागी, जाकिर अली त्यागी, आसिफ राणा, सैफ इलाहाबादी और अहमद रजा खान के द्वारा पोस्ट की गई थी. 

एफआईआर के मुताबिक़ एक्स अकाउंट से पोस्ट/रीपोस्ट कर लिखा गया कि मुस्लिम व्यक्ति के साथ मॉब लिंचिंग में एक ओर मौत. थाना भवन क्षेत्र के जलालाबाद कस्बे में देर रात एक युवक जिसका नाम फिरोज उर्फ काला कुरैशी बताया जा रहा है, को कुछ दूसरे समुदाय के लोगों ने घर में घुसने के शक में जमकर पीटा और मार दिया. ऐसे तो कोई भी किसी को भी मार देगा. 

शिकायतकर्ता मनेंद्र का आरोप है कि इन लोगों के द्वारा एक्स अकाउंट पर किए गए पोस्ट से समुदाय विशेष के लोगों में द्वेष व रोष व्याप्त है. इससे आपसी वैमनस्यता, सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की संभावना है. 

इन पांचों पर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 196/353 के तहत मामला दर्ज किया है. 

वसीम बीते 10 सालों से ज्यादा  से पत्रकारिता कर रहे हैं. वर्तमान में वह हिंद न्यूज़ नाम से अपना यूट्यूब चैनल चलाते हैं. 

पत्रकार वसीम अकरम त्यागी कहते हैं, “लिंचिंग जैसे जघन्य अपराध को सामान्य अपराध की श्रेणी में लाने की कोशिश की जा रही है. अलीगढ़ लिंचिंग में मृतक और उसके परिजनों पर गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया, और अब शामली प्रकरण पर पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज कर दिया. यह फ्रीडम ऑफ प्रेस के लिए ही चुनौती नहीं है बल्कि मानवाधिकार के लिए चुनौती है. एक पत्रकार होने के नाते हमारा काम घटना को रिपोर्ट करना और प्रशासन की कमियों को उजागर करते हुए सवाल करना है, अगर पत्रकार पर ही एफआईआर दर्ज कर दी जाए तो कौन लिखेगा? कौन बोलेगा? इस तरह के मामलों में क्रास एफआईआर करना एक तरह से आरोपितों को बचाने जैसा है."

वह आगे कहते हैं, “शामली पुलिस से मेरा यही सवाल था कि एक शख्स की जान गई है तो आरोपितों पर हत्या का मुकदमा दर्ज क्यों नही किया गया? इसी सवाल को करने के 'जुर्म' में मुझ पर एफआईआर कर दी."

त्यागी कहते हैं कि अब वे इंसाफ के लिए कोर्ट का रूख करेंगे.

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, वीमेन प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया और डीजीपब ने इन पत्रकारों पर दर्ज एफ़आईआर की आलोचना की है. प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और वीमेन प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने साझा प्रेस रिलीज जारी कर बताया कि हम यह जानकर व्यथित है कि यूपी पुलिस ने सोशल मीडिया पर कथित लिंचिंग की रिपोर्टिंग के लिए पत्रकार वसीम अकरम त्यागी और जाकिर अली त्यागी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है.

वहीं जाकिर अली त्यागी कहते हैं, "पीड़ित फ़िरोज़ का परिवार कह रहा है और खुद पुलिस के शुरुआती बयान हैं कि पीट पीट कर हत्या हुई. उन्हीं चीजों के आधार पर हमने भी यही लिखा कि परिवार का ये कहना है. परिवार ने तहरीर में भी मॉब लिंचिंग शब्द का इस्तेमाल किया है. लेकिन पुलिस को एतराज है कि क्यों इस शब्द का इस्तेमाल किया गया. अब पुलिस कह रही है कि माहौल खराब हो रहा है." 

हमने इस बारे में भवन के थाना प्रभारी से बात की लेकिन उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया.

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