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हृदयेश जोशी

जैव विविधता के लिए जुटे 200 देशों के सामने खड़ा फाइनेंस का संकट

क्या आपने कभी सोचा है कि तितलियां, कीट पतंगे और कीड़े-मकोड़े न हों तो धरती कैसी होगी? अगर ये नन्हें प्राणी गायब हो जायें तो क्या धरती का अस्तित्व रह पायेगा? जवाब है नहीं. क्योंकि ये तितलियां, पतंगे और कीड़े- मकोड़े पोलिनेशन करने और मिट्टी की सेहत के लिए ज़रूरी तो हैं ही ये पक्षियों और कई सरीसृप प्राणियों का आहार भी हैं और फूड चेन का अहम हिस्सा बनाते हैं.

यही बात दूसरे प्राणियों और वनस्पतियों पर लागू होती है जिनकी मौजूदगी धरती में जो जीवन है उसमें विविधता लाती है और इसे ही हम जैव विविधता या बायोडायवर्सिटी कहते हैं. इस बायोडायवर्सिटी के बिना धरती पर साफ हवा-पानी, भोजन और आवास कुछ भी मुमकिन नहीं है. लेकिन आज बायोडायवर्सिटी ख़तरे में क्यों है. इसके कई कारण हैं और सबसे बड़ा और प्रमुख कारण है संसाधनों पर दबाव.

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की ताज़ा लिविंग प्लेनेट रिपोर्ट में वन्य जीवों की जनसंख्या में 73 प्रतिशत तक की गिरावट बताई गई है. यहां ये बताना ज़रूरी है कि जैव विविधता के मामले में भारत दुनिया के सबसे समृद्ध देशों में है. धरती के जो 36 बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट हैं उनमें से चार भारत में हैं लेकिन आज उन पर भी बड़ा ख़तरा मंडरा रहा है.

अभी दक्षिण अमेरिकी देश कोलंबिया में बायोडायवर्सिटी समिट चल रहा है. क्लाइमेट चेंज से लड़ने के लिए होने वाले सालाना सम्मेलन की तर्ज पर ही यह बैठक हर दो साल में होती है जिसे कन्वेंशन ऑन बायोडायवर्सिटी या सीबीडी कहा जाता है. पिछला सम्मलेन 2022 में हुआ था और उसमें एतिहासिक कुनमिंग-मॉन्ट्रियल फ्रेमवर्क पर सहमति बनी थी. इसमें तय किया गया कि 2030 तक दुनिया के सभी देश 4 लक्ष्यों और 23 उद्देश्य को मिलकर हासिल करेंगे.

इनमें सबसे महत्वपूर्ण है कि 2030 तक दुनिया के 30 प्रतिशत बायोडायर्सिटी समृद्ध हिस्से को संरक्षित करना- जिसमें जंगल, नदियां और समुद्री हिस्से शामिल हैं. इसी तरह धरती के उस 30 प्रतिशत हिस्से को सुधारना भी है जो डिग्रेड हुआ है यानी जो ख़राब हुआ है. 

इस कोशिश को 30x30 नाम दिया गया है. भारत ने कोलंबिया में हो रहे सम्मेलन की शुरुआत से पहले ही अपने 23 टार्गेट घोषित कर दिए हैं. इसमें जिनमें जैव विविधता को बचाने के साथ मूल निवासियों, आदिवासी समुदायों, महिलाओं और युवाओं को न्याय और अवसर प्रदान करने के उद्देश्य हैं. इसमें घुसपैठिया प्रजातियों या इनवेज़िव स्पीशीज़ के फैलने की दर को 50 प्रतिशत तक कम करने का भी लक्ष्य रखा गया है. साथ ही कीटनाशकों के जोखिम को भी आधा करने का इरादा भी है क्योंकि उनके कारण बायोडायवर्सिटी के नष्ट होने का बड़ा ख़तरा है. गुरुवार को जारी 2024 ग्लोबल नेचुरल कंजरवेशन इंडेक्स में भारत को 180 देशों में से 176वां स्थान दिया गया है.

इस बायोडायवर्सिटी समिट में फाइनेंस यानी वित्त एक अहम मुद्दा अहम है. सभी देशों को 2030 तक ऐसी व्यवस्था करनी है कि हर साल 200 बिलियन डॉलर का फंड बायोडायवर्सिटी संरक्षण के लिए उपलब्ध हो. इस राशि का कम से कम 10 प्रतिशत विकसित देशों को मुहैया कराना है. इस फंड की व्यवस्था कैसे हो इसे लेकर सम्मेलन में खींचतान चल रही है. 

इस बारे में इस वीडियो में अधिक जानकारी दे रहे हैं हृदयेश जोशी-

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