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मीनाक्षी कपूर

स्टार रेटिंग: खुद को रेटिंग देने वाली योजना ने अंधाधुंध कोयला खनन का रास्ता साफ किया

ऐसे समय में जब कोयले के प्रयोग को दुनिया भर में चरणबद्ध तरीके से कम करने की मुहिम चल रही है, भारत सरकार भारतीय कोयला खनिकों को स्टार रेटिंग देकर इस बात की नुमाइश करने में व्यस्त है कि ये खनिक कितने ज़िम्मेदार हैं.

केंद्र सरकार की ये स्टार रेटिंग स्कीम, जो अभी अपने छठे वर्ष में है, कोयले एवं लिग्नाइट (एक निम्न श्रेणी का कोयला) की निजी एवं सरकारी खदानों को इस आधार पर रैंक देती है कि ये खदानें पर्यावरण, समाज और श्रमिकों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को कितने अच्छे से निभा रहीं हैं.

ये पड़ताल दिखाती है कि कैसे ये स्टार रेटिंग योजना बेहद संदिग्ध रूप से एक ऐसी प्रक्रिया में तब्दील हो गई है, जिसके तहत भारतीय कोयला खनिकों की उन गतिविधियों पर लगातार पर्दा डाला जा रहा है जो गतिविधियां पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक हैं.

इस रेटिंग प्रक्रिया को इस प्रकार से डिज़ाइन गया है कि इस पूरी प्रक्रिया में भाग लेने वाली 90% खदानें मुख्य पर्यावरणीय एवं सामाजिक मापदंडों पर स्वयं को प्रमाणित करके आसानी से किसी वास्तविक समीक्षा से दो चार होने से बच सकती हैं. वहीं बाकी बची 10% खदानों को एक ऐसी प्रक्रिया से गुज़रना होता है जिसे केवल एक आरामदायक समीक्षा ही कहा जा सकता है– क्योंकि इस समीक्षा प्रक्रिया में कोयले के प्रयोग को बढ़ावा देने वाला एक सरकारी कार्यालय और अन्य कोयला खनिक शामिल होते हैं.

सरकारी दस्तावेज़ों को खंगालने और अफ़सरों के इंटरव्यू से ये पता चलता है कि स्टार रेटिंग स्कीम खनिकों के द्वारा किये गए उन पर्यावरण, श्रमिक और विस्थापन संबंधी कानूनों के उल्लंघन पर पर्दा डाल रही है, जिनका पालन करने के लिये खनिक कानूनन बाध्य हैं.

इन निजी एवं सरकारी खनन कंपनियों द्वारा किये गये कानूनों के उल्लंघन के लिए इन्हें जवाबदेह ठहराते हुए, इनके ऊपर दंडात्मक कार्यवाही करने और मुक़दमा चलाने की बजाय केंद्रीय कोयला मंत्रालय की रेटिंग प्रक्रिया इन कंपनियों की स्व-प्रमाणित क़ानूनी अवमाननाओं का संज्ञान लेती है और फिर भी सालाना एक से पांच तक के रेटिंग स्केल पर इन कंपनियों को रेटिंग प्रदान करती है. और बाद में इन स्टार अंकों का प्रयोग खनन कंपनियां अपने रिकॉर्ड को जनता के सामने नुमाइशी तौर पर साफ़-सुथरा दिखाने के लिए करती हैं.

यहां पर सबसे ज़रूरी बात ये है कि पड़ताल में सामने आया कि कोयला खदानों की इन रेटिंगों के लिये होने वाली मूल्यांकन प्रक्रिया के विभिन्न मापदंडों, जैसे कंपनियों की सामाजिक व पर्यावरणीय जिम्मेदारी, श्रमिक अधिकार या खनन करने के लिये विस्थापित किये गये लोगों का पुनर्वास, में से किसी भी मापदंड के मूल्यांकन में पूर्णतः स्वतंत्र विशेषज्ञों को शामिल नहीं किया जाता है.

कलेक्टिव ने अपनी पड़ताल में पाया कि कुछ मामलों में तो कोयला खदानों के विस्तार के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति में इस संदिग्ध स्टार-रेटिंग प्रोग्राम पर ज़ोर दिया गया है.

पर्यावरण विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति खदान के विस्तार के लिए 5-स्टार रेटिंग और 75% अनुपालन पर जोर दे रही है.
पर्यावरण विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति खदान के विस्तार के लिए 5-स्टार रेटिंग और 75% अनुपालन पर जोर दे रही है.

दुनिया भर में कंपनियों का पर्यावरणीय एवं सामाजिक मोर्चों पर बढ़िया प्रदर्शन सुनिश्चित करने के लिये रेटिंग सिस्टम के माध्यम से अच्छा प्रदर्शन करने वालों को प्रोत्साहित एवं सुधार न करने वालों को दंडित किया जाता है. इस प्रकार की रेटिंग प्रक्रिया से विभिन्न मानकों में लगातार सुधार होता रहता है और जो इन मानकों के अनुरूप प्रदर्शन करने से कतराते हैं उनकी छंटनी होती रहती है.

लेकिन हमने पाया कि भारत का रेटिंग सिस्टम ना तो खराब प्रदर्शन करने वालों को दंडित करता है और ना ही मानकों के अनुरूप कमतर प्रदर्शन करने वालों को अपने प्रदर्शन में सुधार के लिए कोई प्रोत्साहन प्रदान करता है.

इस पूरे विषय के मद्देनज़र कोयला मंत्रालय के डायरेक्टर, मारापल्ली वेंकेटेश्वारलू, प्रोजेक्ट एडवाईजर, आनंदजी प्रसाद और कोयला कंट्रोलर, सजीष कुमार एन. को सवाल भेजे गए. हालांकि, उनकी ओर से कोई लिखित उत्तर प्राप्त नहीं हुआ लेकिन मंत्रालय ने सवालों पर अपनी मौखिक प्रक्रिया व्यक्त की.

फ़ोन पर हुई एक छोटी सी बातचीत में आनंदजी प्रसाद ने कोयला खदानों के मालिकों के द्वारा किये जाने वाले ख़ुद के मूल्यांकन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह स्व-मूल्यांकन कुछ ऐसा है कि मानो कि कोई व्यक्ति अपने काम में लगा हुआ है और उससे उसके द्वारा किये गये काम में हुई प्रगति की रिपोर्ट को मांग लिया जाये.

ये सब शुरू कैसे हुआ

किसी व्यक्तिपरक राय के आधार पर खदानों को रेटिंग प्रदान करने की प्रक्रिया के उलट, अगस्त 2018 में कोयला मंत्रालय ने कोयला खदानों का वस्तुनिष्ठ मानकों पर मूल्यांकन करने के लिए स्टार-रेटिंग योजना का मसौदा तैयार किया था. 

इस मसौदे को कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की सहायक कंपनियों के साथ फीडबैक के लिए साझा किया गया था. सीआईएल सरकारी क्षेत्र की एक बहुत बड़ी कंपनी है जिसे भारत की सबसे ज़्यादा कोयला खनन वाली कंपनी के तौर पर जाना जाता है. सीआईएल ने तेज़ी के साथ कोयला खनन के अपने काम को निजी कंपनियों, जैसे बीजीआर - माइनिंग, आर्शीवाद कॉस्ट्रेक्सन लिमिटेड और एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड, को सौंप दिया है. सरकार के द्वारा कोयला खदानों की रेटिंग के लिये तैयार नये मसौदे पर सीआईएल के अतिरिक्त दो अन्य सरकारी कोयला कंपनियों, सिंगरेनी कोलियरीज कंपनी लिमिटेड और एनएलसी इंडिया लिमिटेड, से भी विचार मांगे गये थे.

लेकिन यहां पर मुख्य बात ये है कि सूचना के अधिकार के तहत द कलेक्टिव को प्राप्त हुई सरकारी फ़ाइलें बताती है कि कोयला खदानों की रेटिंग के लिये बनी इस योजना के डिज़ाइन की समीक्षा के लिये कोयला एवं खनन इंडस्ट्री से बाहर के स्वतंत्र विशेषज्ञों से कोई परामर्श नहीं लिया गया. सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त हुए एक फ़ाइल के नोट के अनुसार क्योंकि स्टार रेटिंग का ये पूरा विषय ‘प्रधानमंत्री की समीक्षा बैठक में लिस्टेड’ था इसलिये इस नई रेटिंग योजना का मसौदा कोयला मंत्रालय के ज्वॉइंट सेक्रेटरी स्तर के अधिकारियों को भेजा गया था. जनता इस मसौदे पर अपने विचार प्रकट कर सके इसलिये इस मसौदे को कोयला मंत्रालय की बेवसाइट पर भी अपलोड किया गया था. हालांकि, फ़ाइलों की पड़ताल करते समय इस रिपोर्ट की लेखिका को कोयला खदान रेटिंग की इस नई व्यवस्था के मसौदे के ऊपर जनता की तरफ़ से की गई कोई भी टिप्पणी प्राप्त नहीं हुई.

अंतोगत्वा ये मसौदा कोयला खदान रेटिंग योजना का आधार बना और मार्च 2019 में इस रेटिंग योजना को लॉन्च कर दिया गया. बाद में 1 अप्रैल 2019 को इस योजना को ज़मीन पर उतार दिया गया गया और साथ में उस समय के केंद्रीय कोयला मंत्री, प्रहलाद जोशी, ने कोयला खदानों की रेटिंग के लिये इंटरनेट पर एक पोर्टल को भी लॉन्च कर दिया.

कोयला खदानों को निम्नांकित सात मोर्चों पर रेटिंग दी जानी थी:

  1. पर्यावरणीय मापदंड.

  2. खनन के सुधार के लिये प्रौद्योगिकी को अपनाना.

  3. कोयला खदानों की वजह से विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास एवं पुनःस्थापन.

  4. खदानों का सुरक्षा रिकॉर्ड.

  5. खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा का स्तर.

  6. खदान का वित्तीय प्रदर्शन.

  7. खदान की ज्योमेट्री.

उपरोक्त लिखित सात विषयों पर खदान की रेटिंग के लिए कुछ निश्चित मापदंड तय किये गये थे जिनके आधार पर खदानों को अंक दिये जाने थे.

ओपनकास्ट खदानों की अंक तालिका की रूपरेखा.
ओपनकास्ट खदानों की अंक तालिका की रूपरेखा.

उदाहरण के तौर पर इस बात की समीक्षा करने के लिये कि खदान का वित्‍तीय प्रदर्शन कैसा है रेटिंग स्कीम इस बात की समीक्षा करती है कि क्या खदान ने अपने कोयला उत्पादन के टारगेट को पूरा किया है, क्या खदान की जितनी क्षमता है उतना कोयला खदान से निकल रहा है और खदान की तरफ़ से जितने कोयले को थर्मल पॉवर प्लांटों के लिए रवाना  करने का लक्ष्य तय किया गया था क्या खदान ने उस लक्ष्य को पूरा कर लिया है.

इन मापदंडों में न्यूनतम से अधिकतम नंबरों की सीमा होती है और जो खदान जिस भी प्रतिशत में इन मानकों की पूर्ति करती है उसके आधार पर उस खदान को उतने अंक दे दिये जाते है.

जो खदानें 90% से अधिक अंक अर्जित करती हैं उनको 5 स्टार की रेटिंग दी जाती है वहीं जो खदानें 81 से 90% के बीच अंक प्राप्त करती है उनको 4 स्टॉर की रेटिंग दी जाती है, इसके अतिरिक्त नियमानुसार 40% से कम अंक पर सिमट जाने वाली खदानों को जीरो रेटिंग दी जाती है.

अगर ऊपरी तौर पर देखे तो सरकार की तरफ़ से जैसा दावा किया गया है खदानों की रेटिंग की ये पूरी व्यवस्था बेहद साफ़, पारदर्शी एवं वस्तुनिष्ठ नज़र आती है. 

लेकिन यहां पर हम आपको बताते है कि आख़िर कैसे वस्तुनिष्ठ प्रतीत होने वाली ये रेटिंग व्यवस्था पटरी से उतर गई है और कैसे इस व्यवस्था में समस्याओं की भरमार है.

पारदर्शी या मित्रों द्वारा की गई सांकेतिक समीक्षा

दशकों से सरकार की प्रशासनिक संस्थाओं के लिये विशेष रूप से कोयले के क्षेत्र का प्रबंधन, निगरानी एवं जांच का काम बेहद कठिन रहा है. कोयला क्षेत्र में अवैध खनन, अनियंत्रित प्रदूषण, पर्यावरण और श्रम कानूनों के उल्लंघन के साथ-साथ खनन कार्यों के कारण विस्थापित गरीबों, आदिवासियों और अन्य वनवासी समुदायों के निष्पक्ष और कानूनी पुनर्वास को लेकर किये गये खोखले वादे इस क्षेत्र में मात्र अपवाद ना होकर इस क्षेत्र के रिवाज़ बन चुके हैं.

इस सच्चाई को नज़रअंदाज करते हुए केंद्र सरकार ने ये निर्णय ले लिया कि इस बार कोयला उद्योग ख़ुद अपनी समीक्षा और रेटिंग करेंगे. और इस तरह प्रत्येक खनन कंपनी को यह बताने का काम सौंप दिया गया कि उसने कितना अच्छा प्रदर्शन किया है और इस तरह प्रत्येक कंपनी ख़ुद अपनी मूल्यांकनकर्ता बन गई.

इस प्रक्रिया को वैध ठहराने के लिए सरकार ने निर्णय लिया कि खनिकों के द्वारा किये गये अपने स्व-मूल्यांकन को कोयला मंत्रालय की एक शाखा, कोल कंट्रोलर ऑर्गनाइजेशन (सीसीओ), द्वारा ‘जांचा’ जाएगा. हालांकि, सीसीओ का वास्तविक काम खदानों के पर्यावरणीय या सामाजिक प्रदर्शन के मूल्यांकन करने का नहीं बल्कि भारत में उत्पादित कोयले की मात्रा और गुणवत्ता की निगरानी करने का है.

सरकार की तरफ़ से इसे ‘सहकर्मी-समीक्षा’ प्रणाली का नाम दिया गया. इस प्रणाली का नामकरण वैज्ञानिक शोध की समीक्षा के आधार पर रखा गया है लेकिन जहां वैज्ञानिक क्षेत्र में सहकर्मी समीक्षा के समय अज्ञात स्वतंत्र समीक्षक को समीक्षा का ज़िम्मा सौंपा जाता है वहीं, खदानों की इस तथाकथित सहकर्मी-समीक्षा में सरकार ने खदान मालिकों को खदान समीक्षकों से पूरी तरह अलग रखने के पुख़्ता इंतज़ाम नहीं किए हैं.

इस रेटिंग व्यवस्था के अंतर्गत अपने स्व-मूल्यांकन के माध्यम से अधिकतम स्कोर प्राप्त करने वाली मात्र 10% खदानों का इस कथित सहकर्मी-समीक्षा के तहत ज़मीनी निरीक्षण किया जाता है. गत समय में इन चयनित 10% खदानों के सीसीओ द्वारा गठित तीन सदस्यों की समितियों द्वारा निरीक्षण किए गए हैं.

सरकार के निर्णय के अनुसार, प्रत्येक समिति में समीक्षक के तौर पर सीसीओ का एक सरकारी अधिकारी, पास के ‘अनुसंधान संस्थान’ का एक विशेषज्ञ और किसी अन्य कोयला खनन कंपनी का एक अधिकारी शामिल होता है.

छत्तीसगढ़ के एक वक़ील और दशकों से कोयला उद्योग पर नज़र रखने वाले सुदीप श्रीवास्तव कहते हैं कि, “यदि एक खदान मालिक अपने साथियों को अच्छी रेटिंग देता है तो ये क़दम सिर्फ़ उसके हित की पूर्ति करता है क्योंकि बदले में वो अपनी खदान के लिये अच्छी रेटिंग की उम्मीद कर सकता है.”

कुल मिलाकर खदानों की इस रेटिंग प्रक्रिया को एक मैत्रीपूर्ण समीक्षा के रूप में स्थापित किया गया है.

बाकी की बची 90% खदानों की जांच के लिये सीसीओ द्वारा ज़मीनी दौरा भी नहीं किया जाता है. दिशानिर्देशों के अनुसार इन 90% खदानों की ‘ऑनलाइन’ समीक्षा कर दी जाती है.

इन 90% खदानों की समीक्षा को लेकर कोयला मंत्रालय के आनंदजी प्रसाद विशिष्ट विचार रखते हैं. प्रसाद के अनुसार 10% खदानों को छोड़कर बाकी बची 90% खदानों की समीक्षा आलू या टमाटरों को खरीदने के जैसी होती है, जिसमें खरीददार हर एक पीस को ना देखकर सिर्फ़ कुछ आलू या टमाटरों को ही परखता है.

प्रसाद ने स्वीकार किया कि कोई भी दो खदानें एक जैसी नहीं होती हैं और उन्होंने दावा किया कि खदानों की जो भी रिपोर्ट होती है उसका मूल्यांकन और लिखा-पढ़ी एक रिपोर्टिंग अधिकारी द्वारा की जाती है जो एक व्यवस्थित सांख्यिकीय प्रक्रिया है. उन्होंने आगे जोड़ा कि खदानों के वास्तविक हालातों को परखने के लिये ज़मीन पर जाकर निरीक्षित की जाने वाली 10% खदानों का रैंडम सेलेक्शन विवेकपूर्ण अनुमान के आधार पर किया जाता है.

हमारी ज़मीनी रिपोर्टिंग खदानों की समीक्षा की प्रक्रिया को करीब से समझने के साथ-साथ लापरवाही से अंजाम दी गई इस सहकर्मी-समीक्षा में शामिल हितों के टकराव को और भी स्पष्ट तौर पर उजागर करती है .

इस सहकर्मी-समीक्षा प्रक्रिया के लिये ज़िम्मेदार सीसीओ कर्मचारियों की कमी के चलते अक्सर कोल इंडिया लिमिटेड से व्यक्तियों को उधार पर लेता है. यहां पर बताते चलें कि कोल इंडिया लिमिटेड सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी है जो देश के 80% कोयला उत्पादन के लिये जिम्मेदार है.

इसी के साथ ‘पास के’ शोध संस्थान के एक बाहरी ‘विशेषज्ञ’ के तथाकथित रूप से स्वतंत्रत होने के महज दिखावे को भी त्यागते हुये समीक्षाधीन खदान ख़ुद इस विशेषज्ञ की यात्रा एवं आवास का इंतज़ाम करती है.

स्टार रेटिंग प्रणाली से संबंधित एजेंसियां.
स्टार रेटिंग प्रणाली से संबंधित एजेंसियां.

बातचीत के दौरान सीसीओ अधिकारियों ने दावा किया कि पूरी समीक्षा प्रक्रिया में हितों के टकराव को रोकने के लिए उपाय किए गए है. 

पूर्वी भारत में सीसीओ के क्षेत्रीय कार्यालयों में से एक कार्यालय के एक अफ़सर ने कहा कि, “निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये सत्यापन हेतु खदानों का विभिन्न क्षेत्रीय कार्यालयों को आवंटन दिल्ली स्थित कार्यालय द्वारा किया जाता है.”

उपरोक्त कथन पर बोलते हुए प्रसाद ने दावा किया कि सीआईएल के लोगों को सीसीओ की तरफ़ से तैनात किया जाता है और ये तैनात कर्मचारी सीसीओ अधिकारी के रूप में अपनी भूमिका को निभाते हुए खदानों की समीक्षा सामान्यतः सीआईएल के पक्ष में नहीं करते हैं. उन्होंने आगे दावा किया कि सहकर्मी समीक्षा की निष्पक्षता को और अच्छे से सुनिश्चित करने के लिये स्वतंत्र समीक्षकों की संख्या को बढ़ा दिया गया है और इन स्वतंत्र समीक्षकों के आवास और यात्रा का खर्चा कोयला मंत्रालय के द्वारा उठाये जाने का प्रस्ताव है.

रिपोर्टर ने अपना स्व-मूल्यांकन कर चुकी और सरकार की तरफ़ से रेटिंग मिलने के लिये प्रतीक्षारत विभिन्न खदानों की देखरेख करने वाले एक क्षेत्रीय कार्यालय के अधिकारियों से भी बात की. अधिकारियों ने दावा किया कि खदानों के इस प्रकार के स्व-मूल्यांकन की लिखित साक्ष्यों से पुष्टि होती है.

लेकिन खनिकों को स्व-मूल्यांकन के दौरान ख़ुद को किस तरह से अंक देने हैं और इस बात को सिद्ध करने के लिये कि खनिकों ने बेहद ईमानदारी से अपना स्व-मूल्यांकन किया है उन्हें कौन से साक्ष्य आवश्यक रूप से जुटाने हैं, हमने पाया कि कुछ समय पहले तक कोई स्पष्ट सरकारी दिशानिर्देश मौजूद नहीं था.

अपनी पहचान को गुप्त रखना ही उचित समझते हुए सीआईएल के एक सहायक कार्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि, “वर्ष 2022-23 तक हम उस दस्तावेज़ को अपलोड कर दिया करते थे जिसे हम उचित समझते थे. और कभी-कभी हम कोई भी दस्तावेज़ अपलोड नहीं करते है.” बाद में सीआईएल के सहायक कार्यालय के इस अधिकारी की इस बात की सीसीओ अधिकारियों ने पुष्टि की.

सरकारी एजेंसी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कोल माइनिंग के चीफ मैनेजर (माइनिंग), सुधीर कुमार ने कहा कि, “शुरुआती दौर में खदानें सभी उल्लेखित मानकों के आधार पर अपना स्व-मूल्यांकन पूरा किया करती थी. कभी-कभी ये स्व-मूल्यांकन पर्याप्त सहायक दस्तावेज़ों के बिना भी होता था. निरीक्षण के दौरान हम खदानों को विभिन्न मापदंडों के लिये सहायक दस्तावेज़ अपलोड करने का सुझाव भी देते थे.” नवंबर 2023 तक सुधीर सीसीओ रांची के प्रमुख के रूप में तैनात थे.

वर्ष 2023-24 से कोयला मंत्रालय ने खदानों की रेटिंग के लिये विस्तृत दिशानिर्देश जारी कर दिये हैं जिसके अनुसार खदानों को अपने स्व-मूल्यांकन को प्रमाणित करने के लिये निश्चित दस्तावेज़ प्रदान करना होता है. लेकिन इसके बावजूद इनमें से कई दस्तावेज़ों की वैधता को खदानें ख़ुद ही प्रमाणित करती हैं और पूरी प्रक्रिया में सीसीओ के अतिरिक्त कोई भी स्वतंत्र समीक्षक शामिल नहीं होता है.

प्रसाद से रेटिंग प्रक्रिया में सहायक दस्तावेज़ों की वैधता ख़ुद खदानों के द्वारा प्रमाणित किये जाने को लेकर सवाल पूछने पर प्रसाद ने इस बात को रेखांकित किया कि खदानें वार्षिक एवं मासिक रिटर्न भरती हैं जिससे उनके द्वारा स्व-प्रमाणित किये गये दस्तावेज़ों और वास्तविक स्थिति में अंतर की गुंज़ाइश कम ही रह जाती है.

रेटिंग स्कोर के लिये प्रदान किये जाने वाले सहायक दस्तावेज़ों के दिशानिर्देश.
रेटिंग स्कोर के लिये प्रदान किये जाने वाले सहायक दस्तावेज़ों के दिशानिर्देश.

उच्च रेटिंग और ज़मीनी हकीकत

सितंबर में, कोयला मंत्रालय ने 2022-23 के लिए कोयला खदानों को स्टार रेटिंग देने और इस रेटिंग व्यवस्था को लेकर जश्न मनाने के लिए नई दिल्ली के लोधी रोड पर स्कोप कन्वेंशन सेंटर में एक भव्य कार्यक्रम की मेजबानी की थी.

इस कार्यक्रम में कुल 380 खदानों ने भाग लिया था जिनमें से 43 खदानों को प्रतिष्ठित 5-स्टार रेटिंग से सम्मानित किया गया था. स्वाभाविक रूप से पांच सितारा रेटिंग वाली इन कंपनियां ने अपनी रेटिंग के विषय में अपने-अपने क्षेत्रों में जाकर चर्चा की और विभिन्न मीडिया संस्थानों ने इस विषय में खबरें प्रकाशित की.

लेकिन सच्चाई ये है कि इस धूमधाम के बीच इन रेटिंगों से तमाम गंभीर आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय परिणामों से लबरेज कई महत्वपूर्ण चूकों के ऊपर पर्दा पड़ गया.

पिछले महीने कोयला मंत्रालय ने नई दिल्ली में स्टार रेटिंग अवॉर्ड समारोह का आयोजन किया था.
पिछले महीने कोयला मंत्रालय ने नई दिल्ली में स्टार रेटिंग अवॉर्ड समारोह का आयोजन किया था.

जांच में सामने आया कि इन टॉप रेटेड 43 खदानों में से:

  • 19 खदानें पर्यावरणीय सुरक्षा के लिये कानूनी रूप से अनिवार्य कुछ निश्चित उपायों का आंशिक या कोई अनुपालन नहीं करती हैं. 

  • एक खदान में एक घातक दुर्घटना दर्ज की गई थी.

  • एक अन्य खदान वर्ष 2022-23 में अपने कोयला उत्पादन के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई थी.

रेटिंग शुरू होने के बाद से पिछले पांच वर्षों के आंकड़ों की समीक्षा से पता चलता है कि खदानों की कार्यप्रणाली की ये समस्याएं कोई पहली बार सामने नहीं आ रही हैं. इस प्रकार की चूकें पहले भी होती रही हैं. पहले की 5-स्टार-रेटेड खदानों में से कुछ खदानों का अपने द्वारा विस्थापित किये गए लोगों के पुनर्वास और पुन:स्थापन संबंधी प्रतिबद्धताओं पर खरे न उतरने के साथ-साथ दुर्घटनाओं और पर्यावरणीय नियमों के खराब अनुपालन का इतिहास हैं.

उदाहरण के तौर पर यहां झारखंड स्थित मगध कोल माइन का मामला देखा जा सकता है. मगध कोल माइन, कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक सेंट्रल कोलफ़ील्ड्स लिमिटेड द्वारा संचालित होती है. वर्ष 2022-23 में इस खदान को पांच सितारा रेटिंग प्राप्त हुई थी और शीर्ष प्रदर्शनकर्ता के तौर पर सम्मानित किये जाने के साथ-साथ इस खदान ने सात मापदंडों पर कुल 91 अंक प्राप्त किये थे.

लेकिन इस खदान के आस-पास रहने वाले लोगों ने हमें अलग ही कहानी बताई.

अगस्त 2022 में झारखंड के चतरा जिले के देवलगढ़ गांव की बाहमुनी कुमारी ने कहा कि, “धूल के कारण खेती में मुश्किल होती है, हमारा दुकान भी गिरने वाला  है. ग्राम सभा ने कंपनी को मरम्मत कराने को बोला है लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ.” कुमारी का घर मगध माइन से 200 मीटर की दूरी पर स्थित है.

झारखंड का मगध ओपनकास्ट कोल प्रोजेक्ट.
झारखंड का मगध ओपनकास्ट कोल प्रोजेक्ट.

स्टार रेटिंग प्रणाली के तहत कोयला खदान के ट्रैक रिकॉर्ड की समीक्षा कैसे की जाती है, इस बात पर बारीकी से नजर डालने से पता चलता है कि आख़िर क्यों ये रेटिंग व्यवस्था जमीनी हकीकत को दर्शाने के लिये कारगर नहीं है. 

इस की शुरुआत इस रेटिंग प्रक्रिया के त्रुटिपूर्ण डिज़ाइन से होती है. ज़मीन की सतह पर गड्ढा बनाकर खनन करने वाली ओपनकास्ट खदानों की समीक्षा के लिये निर्धारित 57 मानकों में से 41 मानकों पर ख़ुद खदान मालिक अपनी खदान को उस प्रतिशत में अंक दे सकता है जिस प्रतिशत में उसकी खदान उपरोक्त मानकों का अनुपालन कर रही होती है.

यहां पर कोयले और भारी मशीनों की जिन विशिष्ट सड़कों के माध्यम से ढुलाई की जाती उन सड़कों की बनावट का उदाहरण लिया जा सकता है. कोल माइन्स रेगुलेशन और डायरेक्टर जनरल ऑफ माइन्स सेफ्टी ने दुर्घटना से बचाव के लिये माल ढुलाई के लिये प्रयोग की जाने वाली सड़कों के लिए ढलानों की सीमा को निर्धारित कर रखा है. स्टार रेटिंग सिस्टम के इस मापदंड के अनुसार ओपनकास्ट खदान का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाता है कि ऐसी सड़कों की कुल लंबाई का कितना प्रतिशत वाहनों को पलटने और दुर्घटना से बचाने के लिये ढलानों या झुकावों के लिए तय की गई सीमा का पालन करता है. 

स्टार रेटिंग व्यवस्था के अनुसार यदि खदान की आधी से ज़्यादा सड़क की हालत निर्धारित मानक की होती हैं तो खदान को 1 अंक दे दिया जाता है और अगर सड़क का 90% भाग ढलान के निर्धारित मानक के अनुसार होता है तो खदान को रेटिंग व्यवस्था के तहत 5 अंक दे दिये जाते हैं.

लेकिन सड़कों की समीक्षा करने की ये विधा कुछ ज़रूरी बातों, जैसे सड़क किस स्थान पर और कितनी खड़ी है या सड़क के आसपास के जोखिमों की मात्रा के साथ-साथ सड़क पर वाहनों की आवाजाही की मात्रा क्या है, की गणना नहीं करती है, बल्कि यदि खदान की सड़क की हालत निर्धारित मानकों पर मात्र आंशिक रूप से भी खरी उतरती है तो सड़को की समीक्षा की ये पूरी प्रणाली बेहद आसानी से संतुष्ट हो जाती है (या कहे ये प्रणाली इस प्रकार के आंशिक अनुपालन पर अपना हर्ष प्रकट करती है).

आनंदजी प्रसाद ने जोर देकर कहा कि सुरक्षा संबंधी उपायों की निगरानी या इनके उल्लंघन को लेकर की गई कार्यवाही की व्यवस्था पारदर्शी है. प्रसाद के अनुसार दुर्घटना होने पर खदान को निगेटिव अंक दिये जाते है और यदि किसी भी मानक का अनुपालन नहीं हो रहा होता है तो खदान को ज़ीरो अंक देने की व्यवस्था है.

‍प्रोत्साहन देने के लिये बनी व्यवस्था की खराब स्थिति

पूरी दुनिया में रेटिंग व्यवस्था का प्रयोग समाज और पर्यावरण से सरोकार रखने वाली गतिविधियों को प्रोत्साहन देने के लिये किया जाता है. और पीछे छूट गये वो संस्थान जो समय के साथ-साथ अपने प्रदर्शन में सुधार नहीं करते हैं, रेटिंग व्यवस्था के तहत उनको दंडित भी किया जाता है. कंपनियों को प्रोत्साहन देने या फ़िर दंडित करने की इस प्रकार की रेटिंग व्यवस्था तभी असरदार होती है जब यह व्यवस्था सीधे तौर पर कंपनी के मुनाफ़े पर चोट करती है.

यदि किसी कंपनी के किसी उपभोक्ता उपभोग से संबंधित उत्पाद को रेटिंग दी जा रही है तो अच्छी रेटिंग कंपनी की प्रतिष्ठा को कम या ज्यादा कर सकती है जिससे कंपनी का मुनाफ़ा सीधे तौर पर प्रभावित हो सकता है. यदि वित्तीय बाजार रेटिंग का प्रयोग करते हैं तो किसी कंपनी की अच्छी रेटिंग उसके लिए कम ब्याज दर पर उधार लेने में मददगार साबित हो सकती है वहीं कमज़ोर रेटिंग की वजह से हो सकता है कि कंपनी को उधार लिये पैसे पर अधिक ब्याज देना पड़े.

उदाहरण के तौर पर विद्युत उपकरणों की ऊर्जा संबंधी कार्यकुशलता के लिये सरकार की PAT या परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड के नाम से जाने जानी वाली रेटिंग के तहत विद्युत उपकरण निर्माताओं को समय-समय पर मानकों में सुधार करने के लिए प्रेरित किया जाता है. जो विद्युत उपकरण मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं या फिर अपने प्रदर्शन में सुधार नहीं करते हैं उन उपकरणों को पहले से निचले दर्जे की रेटिंग दे दी जाती है.

इस रेटिंग व्यवस्था का उपभोक्ताओं के बीच पर्याप्त प्रचार किया जाता है. यदि ऊर्जा का ठीक से प्रयोग कर सकने के लिये किसी उपकरण को ऊंची रेटिंग प्रदान की गई है तो उस उपकरण को खरीदने का खर्च उठा सकने वाले उपभोक्ता इन उपकरणों को अपने बिजली बिल में कमी लाने के उद्देश्य से ख़रीदते है.

हालांकि, इन रेटिंग प्रणालियों से उपभोक्ताओं को बाजार में उपलब्ध वस्तुओं में से अपने लिये बेहतर वस्तु का चुनाव करने में मदद मिलती है, चूंकि इस प्रकार की उपभोक्ता उपभोग से संबंधित वस्तुओं की रेटिंग व्यवस्था में कंपनियों को प्रोत्साहित करने के लिए मानकों का स्तर बेहद कम रखा जाता है इसलिये व्यवहारिक तौर पर ये रेटिंग प्रणालियां असफल साबित हुई  हैं.  

लेकिन कोयला क्षेत्र में खदानों के लिये सरकार की स्टार रेटिंग व्यवस्था ना कोयला खदानों को खराब प्रदर्शन के लिए दंडित करती है, ना ये व्यवस्था खदानों को मानकों के अनुसार प्रदर्शन करने के लिये प्रोत्साहित करती है और ना ही ये व्यवस्था उपभोक्ताओं की बेहतर चुनाव करने में मदद करती है.

मुख्य बात ये है कि कोयले का क्षेत्र उपभोक्ताओं के उपभोग पर निर्भर नहीं करता है. इस बात की परवाह किये बिना कि कोयला खनिकों ने पर्यावरणीय संरक्षण संबंधी नियमों का अनुपालन किया है कि नहीं बिजली उत्पादकों को कोयला खनिकों से कोयला खरीदना पड़ता है. तथ्य ये है कि पर्यावरण संरक्षण संबंधी नियमों का पालन न करने से खनन क्षेत्र के आस-पास रहने वाले लोगों की कीमत पर कोयले के दाम कम हो जाते है.

कोयला खदानों की रेटिंग व्यवस्था खदानों के तथाकथित बेहतर प्रदर्शन के लिये कोई न्यूनतम मानक निर्धारित नहीं करती है तो यह तो भूल ही जायें की यह रेटिंग प्रक्रिया खदानों से अपनी वर्तमान रेटिंग बचाये रखने के लिये बेहतर प्रदर्शन करने की मांग करती होगी. इसलिये इस व्यवस्था के अनुसार खदान को दी गई जीरो रेटिंग से खदान के मुनाफ़े पर कोई असर नहीं पड़ता है.

खदानों का प्रदर्शन जब विभिन्न मापदंडों पर अलग-अलग देखा जाता है तो शायद यह खदानों के नफ़े-नुकसान में एक कारक हो सकता है लेकिन रेटिंग व्यवस्था के अंतर्गत इन मानकों को इकठ्ठे तौर पर देखने से इन मानकों का कोई प्रभाव दर्ज नहीं होता है. उदाहरण के तौर पर कोल इंडिया लिमिटेड की खदानों का कोयला उत्पादन संबंधी लक्ष्यों के संदर्भ में प्रदर्शन भविष्य में उनके बजट आवंटन को प्रभावित करता है. इसी के साथ भविष्य में खदान के विस्तार के लिये खदान के द्वारा पर्यावरणीय नियमों के अनुपालन के बिंदु पर भी विचार किया जाता है. शायद इससे ये बात स्पष्ट हो जाती है कि आख़िर क्यों अधिकांश खदानों को 3 या 4 की रेटिंग मिलती है. 3 या 4 के रेटिंग से खदान कम से कम ज़मीनी निरीक्षण से बच जाती है.

अवैधता को पुरस्कार में बदलना

कोयला क्षेत्र को बेहतर करने के लिए प्रोत्साहित करना तो भूल जाइए रेटिंग प्रणाली कानूनों के अनुपालन में कोयला खनन उद्योग के खराब ट्रैक रिकॉर्ड का बचाव भी करती है. 

कोयला मंत्रालय की रेटिंग स्कीम संबंधी योजना ख़ुद इस बात की तस्दीक़ करती है.

अपनी इस योजना से संबंधित दस्तावेज़ के बिल्कुल प्रारम्भ में मंत्रालय कहता है कि, “कोयला खनन के कार्यों में नियम-कायदों के अनुपालन की अपेक्षा की जाती है. ये नियम-कायदे मुख्यतः सुरक्षा, पर्यावरण, खनन कार्य के कारण विस्थापित हुए परिवारों के पुनर्वास, श्रमिकों के कल्याण आदि से जुड़े होते हैं. हालांकि ,सभी खदानों से सभी नियमों का अनुपालन करने की अपेक्षा रहती है लेकिन फ़िर भी अलग-अलग स्तर पर खदानें नियमों पर खरी नहीं उतर पाती हैं.”

मोटे-मोटे तौर पर रेटिंग व्यवस्था कोयला खनिकों का इस बात के ऊपर मूल्यांकन करती है कि उनकी खदान पर्यावरण संबंधी सुरक्षा उपायों, खदान के कारण विस्थापित हुए लोगों और खदान में काम करने वाले श्रमिकों से संबंधित कानूनों का किस हद तक पालन करती है. इन ‘कायदे-कानूनों’ का पालन ना करना अवैध है और ऐसा ना करने पर कुछ निश्चित पर्यावरण संबंधी कानूनों के साथ-साथ कुछ और अन्य कानूनों के तहत जुर्माने से लेकर जेल तक होने के दंड का प्रावधान है.

झारखंड के चतरा जिले की आम्रपाली कोल माइन.
झारखंड के चतरा जिले की आम्रपाली कोल माइन.

लेकिन रेटिंग स्कीम का सार ये है कि इसके तहत कानूनों का पालन करना एक विकल्प है. वो कोयला खदानें जो पर्यावरण सुरक्षा उपायों का उल्लंघन करती है वो भी ऊंची रेटिंग प्राप्त कर सकती हैं. और तथ्य ये है कि इस प्रकार का उल्लंघन करने वाली खदानें पहले ही ऊंची रेटिंग प्राप्त कर चुकी हैं.

उदाहरण के तौर पर खदानों की रेटिंग करने की व्यवस्था को उन लोगों के पुनर्वास या पुनःस्थापन के संदर्भ में देखें जिनकों खनन गतिविधियों के चलते विस्थापित होना पड़ता है. हालांकि, पुनर्वास का विषय विस्थापित लोगों से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है लेकिन रेटिंग प्रक्रिया में इन विस्थापित लोगों से बात नहीं की जाती है. इस विषय में प्राप्त हुई किसी भी शिकायत के मद्देनज़र रेटिंग प्रक्रिया सिर्फ़ दर्ज हुई शिकायतों और उनकी सुनवाई का संज्ञान लेती है और इस बात को नहीं परखती है कि कितने अच्छे तरीके से शिकायत का निपटारा किया गया या फ़िर शिकायत दर्ज कराने वाला व्यक्ति कार्यवाही से संतुष्ट भी है कि नहीं.

उरीमारी गांव के निवासी कलेश्वर मांझी ने रिपोर्टर को बताया, “हम पानी के लिये पास के नाले और कुंए पर निर्भर हैं. जब से खनन और रेलवे साइडिंग (कोयले की आवाजाही के लिए) के निर्माण का काम शुरू हुआ है कुएं का पानी नीचे चला गया है. हम तक गहरे बोरवेल और पाईपलाईन के ज़रिए जो पानी पहुंचाने का वादा किया गया था वो तो सीसीएल (सेंट्रल कोलफ़ील्ड लिमिटेड) का लॉलीपॉप आश्वासन था. हम अभी तक इंतजार ही कर रहे हैं.”

उरीमारी गांव सीसीएल द्वारा संचालित तीन कोयला प्रोजेक्टों - उरीमारी, नॉर्थ उरीमारी और सयाल डी- से घिरा हुआ है. नॉर्थ उरीमारी को 5-स्टार दिये गए हैं, वहीं अन्य प्रोजेक्टों को 3-स्टारों से नवाज़ा गया है. उरीमारी गांव के संजय टूडू ने पिछले हफ़्ते ही बताया कि इस वर्ष कि शुरूआत में बोरवेल तो खोद दिया गया था लेकिन हर घर तक पानी की लाइन बिछाये जाने के वादे का अभी पूरा होना बाकी है.

‍मीनाक्षी कपूर को द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की दूसरे राउंड की फेलोशिप प्रदान की गई थी. मीनाक्षी पर्यावरण के क्षेत्र में शोधार्थी होने के साथ-साथ पेशे से वकील हैं जो पर्यावरण संबंधी कानूनों, योजनाओं और प्राकृतिक संसाधनों के ऊपर लेखन करती हैं.

साभार- द रिपोर्टर्स कलेक्टिव

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