Get all your news in one place.
100’s of premium titles.
One app.
Start reading
Newslaundry
Newslaundry
बसंत कुमार

डेरा सच्चा सौदा के ‘प्रेमी’ कैसे करते हैं वोट और कब आता है उन्हें ‘निर्देश’

बलात्कार और हत्या के मामले में रोहतक जेल में आजीवन सजा काट रहे डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत सिंह एक बार फिर से 20 दिन की पैरोल पर जेल से बाहर आ गए हैं. हालांकि, उन्हें इस शर्त पर पैरोल मिली है कि वे 20 दिन तक बागपत के आश्रम में ही रहेंगे. लेकिन पड़ोसी राज्य हरियाणा में चुनाव के चलते उन्हें पैरोल मिलने को लेकर एक बार फिर से सवाल उठने लगे हैं. 

विपक्ष आरोप लगा रहा है कि राजनीतिक फायदे के लिए गुरमीत राम रहीम सिंह को बाहर भेजा गया है. वहीं, हरियाणा सरकार दावा करती है कि नियमों के तहत ही अन्य कैदियों की तरह इनको भी पैरोल और फरलो मिलती है. गुरमीत 2020 से अब तक 12 बार जेल से बाहर आ चुके हैं. इस तरह उन्होंने 255 दिन से ज़्यादा जेल से बाहर बिताए हैं. और चुनाव से पहले यह पांचवीं बार है, जब वो जेल से बाहर आए हैं.

इससे पहले साल 2020 में पंजाब में होने वाले चुनाव से पहले 7 फरवरी, 2020 को पैरोल मिली थी. अक्टूबर, 2022 में उन्हें 40 दिनों के लिए पैरोल मिली, तब आदमपुर सीट पर उपचुनाव के साथ-साथ हिमाचल में चुनाव थे. इसी तरह राजस्थान के विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें 21 नवंबर, 2023 को 21 दिन की पैरोल मिली थी. इस साल 20 जनवरी को लोकसभा चुनाव से पहले 50 दिन की पैरोल मिली. वहीं, अब 5 अक्टूबर को हरियाणा में होने वाले चुनाव से पहले, उन्हें दो बार पैरोल दी गई. एक बार 13 अगस्त को 21 दिनों के लिए और फिर इसी हफ़्ते 20 दिनों के लिए.

जेल से बाहर आने के बाद गुरमीत सिंह अपने आश्रमों में रहते हैं. यहीं से वो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपने अनुयायियों (जिन्हें डेरा प्रेमी कहा जाता है) से बात करते हैं. कई बार अलग-अलग पार्टियों के नेता भी आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं. हालांकि, डेरा प्रमुख की अनुपस्थिति में सिरसा स्थित डेरा में हजारों की संख्या में रोजाना प्रेमी आते हैं. वहां पहले से रिकॉर्ड किए प्रवचन चलाए जाते हैं. 

डेरा के मीडिया विभाग के एक सीनियर और लंबें समय से गुरमीत सिंह के साथ काम करने वाले एक सदस्य बताते हैं, ‘‘अभी डेरे से तक़रीबन 6 करोड़ प्रेमी जुड़े हैं. जो पिताजी (गुरमीत सिंह) के कहने पर जनसेवा में जुटे हैं. चुनाव से कभी भी पिताजी का लेना देना नहीं रहा है. पहले संगत का एक राजनीतिक विंग हुआ करता था. वो संगत के लोगों से बात कर फाइनल करते थे. तब तो प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया जाता था कि इसबार किस राजनीतिक दल को समर्थन देना है. हालांकि, बीते साल राजनीतिक विंग को भंग कर दिया गया.’’

तो अब कौन फैसला लेता है? इस पर ये कहते हैं, ‘‘अब तो डेरा राजनीति से दूरी बनाए हुए है. राजनीति के कारण तो पिताजी को इतना सब सहना पड़ रहा है. पिताजी का बस इतना कहना है कि प्रेमी एकता बनाकर रहें.’’

डेरे से जुड़े लोगों से बात करने पर मालूम होता है कि अभी भी संगत के लोग फैसला लेते हैं और प्रेमियों तक चुनाव से एक दिन पहले या उसी दिन सूचना पहुंचाई जाती है कि किसको वोट करना है. 

कैसे प्रेमियों तक पहुंचाई जाती है सूचना   

किसी कंपनी की तरह डेरे के प्रेमियों का भी मैनजेमेंट है. प्रेमी, प्रेमीसेवक (पहले इन्हें भंगीदास बोला जाता था), ब्लॉक प्रेमी सेवक, 15 सदस्यीय कमेटी और आखिर में प्रदेश स्तरीय 85 सदस्यीय कमेटी होती है. इस तरह डेरे का मैनेजमेंट अपने अनुयायियों से सीधे तौर पर जुड़ता है.  

हर गांव में प्रेमी सेवक होता है. जिनका काम सत्संग कराना, लोगों की मदद करना और डेरे से मिले सूचनाओं को प्रेमियों तक पहुंचना होता है. चुनाव से पहले इसी प्रेमी सेवक के जरिए सूचना पहुंचाई जाती है.

सिरसा जिले के रानियां विधानसभा क्षेत्र के बम्बूर गांव के प्रेमी सेवक हैं राजेंद्र प्रसाद. प्रसाद के घर में गुरमीत सिंह की एक तस्वीर है. इसके अलावा कई तस्वीरें हैं. प्रसाद कहते हैं, ‘‘मेरे पास कुछ भी नहीं था. आज पिताजी के कारण एक बैटरी की एक कंपनी है. एक करोड़ सालाना देकर किराये पर जमीन लेकर खेती करता हूं. सब पिताजी की ही देन है.’’

अपने घर में बैठे प्रेमी सेवक राजेंद्र प्रसाद.
अपने घर में बैठे प्रेमी सेवक राजेंद्र प्रसाद.

आप लोग चुनाव में वोट कैसे करते हैं? इस सवाल के जवाब में प्रसाद बताते है, ‘‘किसे वोट करना है, इसका फैसला संगत के लोग मिलकर करते हैं. उसमें मैं भी बराबर शामिल होता हूं. उसमें कोई एक शख्स फैसला नहीं लेता है. सबसे राय लेने के बाद फैसला होता है और एक-दो दिन पहले सूचना हमारे (प्रेमी सेवक) के पास आती है. जैसे हमें सूचना मिलती है, हम प्रेमियों तक पहुंचा देते हैं. पिछले चुनाव (लोकसभा 2024) में एक दिन पहले ही बताया गया कि इस बार भाजपा को वोट देना है.’’

डेरा द्वारा कब से वोट देने को लेकर फैसला आता है. इस सवाल के जवाब में प्रसाद बताते हैं, ‘‘पहले हमारा राजनीतिक विंग हुआ करता था. वही फैसला लेता था. उसके बाद से संगत ही फैसला लेती है. वहां से जिस पार्टी को लेकर फैसला आता है, प्रेमीजन उसी को ही वोट करते हैं. कई बार संगत की तरफ से यह भी कह दिया जाता है कि आप अपने हिसाब से बेहतर को वोट कर दें. तब हम देखते हैं कि कौन सा उम्मीदवार नशे के खिलाफ बोल रहा है. कौन हमारी मदद करेगा. पिताजी का आदेश है कि जहां भी रहो, एकता के साथ रहो.’’

बम्बूर गांव में 900 प्रेमी हैं. प्रसाद 1988 से डेरे से जुड़े हैं. हमने उनसे पूछा कि अब तक किस पार्टी को वोट देने का निर्देश आया है. उनका कहना था कि मेरी जानकारी में तो दो बार ही आया है और दोनों बार भाजपा के लिए कहा गया. बाकी संगत का जो फैसला होगा उसमें किन्तु-परन्तु नहीं करते हैं. 

डेरे से करीब एक किलोमीटर दूर शाहपुर बेगू गांव पड़ता है. यहां सात हजार वोटर हैं. वहीं, गांव की कुल आबादी का 40 प्रतिशत लोग डेरे से जुड़े हुए हैं. इस गांव में किराने की दुकान चलाने वाले 55 वर्षीय बालकृष्ण 12 साल की उम्र से डेरे से जुड़े हुए हैं. हालांकि, व्यावसायिक व्यस्तता के कारण वो संगत में कम ही जाते हैं, लेकिन चुनाव में आने वाले निर्देश को मानते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बालकृष्ण कहते हैं, ‘‘अभी तक इस चुनाव को लेकर कोई फैसला नहीं आया. कई बार ऐसा हुआ कि चुनाव की सुबह संगत का फैसला आया. कई बार यह कह दिया जाता है कि अपने परिवार का आधा-आधा वोट भाजपा और कांग्रेस को डाल दो. ये (डेरा) भगवान का घर है. दोनों दलों के लोग यहां वोट मांगने आए गए तो ऐसे फैसले आते हैं.’’   

शाहपुर बेगू के रहने वाले बालकृष्ण.
शाहपुर बेगू के रहने वाले बालकृष्ण.

इस गांव के प्रेमी सेवक गुरुदयाल कम्बोज, साल 1989 से डेरे से जुड़े हैं. गुरुदयाल बताते हैं, ‘‘हम लोग एकता में रहते हैं. सब प्रेमी जहां वोट करते हैं, एकजुट होकर करते हैं. बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा को हमने वोट किया था. बीते विधानसभा चुनाव (2019 में) भी हमें भाजपा को वोट देने के लिए कहा गया. एक-दो दिन पहले हमें मैनेजमेंट की तरफ से सूचना मिलती है. लेकिन हम इस तरह आपस में जुड़े है कि 10 मिनट में बात गांव के एक-एक प्रेमी तक पहुंच जाती है.’’

सज़ा होने के बाद से गुरमीत सिंह, सिरसा वाले डेरे पर नहीं आए हैं. बावजूद इसके यहां हर रोज सैकड़ों की संख्या में लोग आते हैं. पुराने और नए, दोनों डेरों में स्क्रीन पर पुराने रिकॉर्ड किए प्रवचन चलाए जाते हैं. जिसे लोग बैठकर सुनते हैं.

पुराने डेरे में हमारी मुलाकात फतेहाबाद के रहने वाले शमशेर सिंह से हुई. 23 सितंबर को गद्दी दिवस के मौके पर वो डेरे में आए थे. तो क्या संगत के कहे पर वो वोट करते हैं? शमशेर सिंह कहते हैं, ‘‘हम गांव में रहते हैं. कई बार नेताओं से व्यक्तिगत संबंध होते हैं. कभी-कभी ऐसी स्थिति बन जाती है कि संगत का फैसला अलग है तो घर का आधा वोट संगत के कहे नेता को और आधा अपनी पहचान वाले को दे देते हैं.’’

सिरसा स्थित डेरे में गुरमीत राम रहीम के पूर्व में रिकॉर्ड किए प्रवचन सुनते अनुयायी.
सिरसा स्थित डेरे में गुरमीत राम रहीम के पूर्व में रिकॉर्ड किए प्रवचन सुनते अनुयायी.

ऐलनाबद से भाजपा के उम्मीदवार अमीर चंद मेहता के गांव तलवाड़ा में हमारी मुलाकात डेरे से जुड़े अंतुराम इन्सां से हुई. डेरे से जुड़े लोग अपने नाम के बाद इन्सां लगाते हैं. साल 2001 में डेरा से जुड़े अंतुराम बताते हैं, ‘‘एक दो दिन पहले डेरे से मैसेज आता है. जो पक्के प्रेमी होते हैं वो डेरे के कहे के मुताबिक ही वोट करते हैं. जो बहकावे में आते हैं वो ही दूसरे को वोट करते हैं. मेरे गांव में पांच सौ के करीब वोटर हैं, उसमें से चार सौ डेरे के कहने पर ही वोट करते हैं. भंगीदास के पास मैसेज आता है वो बाकी प्रेमियों को भेज देते हैं. भंगीदास कहते हैं कि ऊपर का आदेश है.’’

खुद को पक्के प्रेमी बताने वाले अंतुराम.
खुद को पक्के प्रेमी बताने वाले अंतुराम.

आखिर क्यों बंद हो गया रानजीतिक विंग?

मार्च, 2023 में अचानक से डेरे ने अपना राजनीतिक विंग भंग कर दिया. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इस अचानक लिए गए फैसले के पीछे कोई कारण नहीं बताया गया था.

रिपोर्ट में बताया गया है कि डेरा सच्चा सौदा खुद अनुयायियों की बैठकें आयोजित करता था. जिसमें किसी राजनीतिक दल या व्यक्तिगत नेता का समर्थन करने के बारे में उनके विचार जान सकें. इस बैठक में कई नेता भी शामिल होते थे.

हालांकि, डेरे के प्रवक्ता जितेंद्र खुराना इससे इनकार करते हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए खुराना कहते हैं, ‘‘चुनाव में संगत के फैसले से पिताजी का कोई लेना देना नहीं होता है. संगत की जो कमेटी है, वो अपने स्तर पर फैसला लेती है. कभी भी पिताजी ने किसी राजनीतिक दल को वोट करने के लेकर कोई फैसला नहीं दिया है.’’

हालांकि, डेरे पर किताब लिखने वाले पत्रकार अनुराग त्रिपाठी ऐसा नहीं मानते हैं. वो बताते हैं, ‘‘गुरमीत सिंह के साथ कई रिटायर आईएएस और नेता जुड़े थे. वो इन्हें बताते थे कि राजनीतिक हवा किस तरफ है. हालांकि, किस तरफ डेरा प्रेमियों को जाना है इसका अंतिम फैसला गुरमीत का ही होता था.’’

त्रिपाठी आगे कहते हैं, ‘‘गुरमीत राजनीतिक रूप से बेहद समझदार है. साल 2011 से पहले वो इलाके के हिसाब से अपना समर्थन देता था. उसी बीच नरेंद्र मोदी की ब्रांडिग राष्ट्रीय नेता के रूप में होने लगी. गुरमीत ने भांप लिया कि भाजपा के साथ जाने में फायदा है. वहां धर्म की राजनीति के लिए ज़्यादा जगह थी. ऐसे में वो खुलकर भाजपा के साथ आ गया. उसके बाद लगातार भाजपा और डेरा साथ-साथ चल रहे है.’’

भाजपा और डेरे का संबंध 2014 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले खुलकर सामने आया. तब मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय चुनाव प्रभारी थे. चुनाव से एक सप्ताह पहले वह भाजपा के 44 उम्मीदवारों को लेकर सिरसा डेरे पर गुरमीत सिंह से मिलाने ले गए थे.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शाम 5 बजे शुरू हुई यह बैठक 15 मिनट से भी कम समय तक चली. जिसमें सिंह ने उम्मीदवारों पर अपना ‘आशीर्वाद’ बरसाया और उन्हें डेरे की राजनीतिक विंग से मिलने के लिए कहा. यह घटना बताती है कि राजनीतिक विंग का फैसला वास्तव में गुरमीत सिंह का ही होता था. 

डेरे से जुड़े एक सूत्र ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि गांव स्तर पर प्रेमियों की बैठक चल रही है. अभी तक तय नहीं हुआ है कि किस पार्टी की तरफ वोट करेंगे लेकिन ज़्यादा झुकाव भाजपा की तरफ है.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

Newslaundry is a reader-supported, ad-free, independent news outlet based out of New Delhi. Support their journalism, here.

Sign up to read this article
Read news from 100’s of titles, curated specifically for you.
Already a member? Sign in here
Related Stories
Top stories on inkl right now
One subscription that gives you access to news from hundreds of sites
Already a member? Sign in here
Our Picks
Fourteen days free
Download the app
One app. One membership.
100+ trusted global sources.