लुटियंस दिल्ली की प्राइम लोकेशन- 1, रायसीना रोड यानी प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का भवन. कुछ लोगों के लिए यह यूटोपिया है, कुछ के लिए यह एक टापू है जिस पर मोदीजी की नजर है, कुछ के लिए लुटियंस दिल्ली में बचा प्रतिरोध का एकमात्र अड्डा है. यह पत्रकारों का पुराना अड्डा है. संसद का नया भवन बनने के बाद यह सीधे संसद भवन से मुखातिब है. खाने-पीने की सुलभ जगह के साथ ही यह पत्रकारों के रोजाना जमावड़े की जगह भी है.
प्रेस क्लब की शामें आमतौर दिन के मुकाबले ज्यादा गुलज़ार होती हैं. मूंगफली चबाते, पेग लगाते, सिगरेट सुलगाते पत्रकारों की टेबल से गुजरते हुए आप कमला हैरिस और ट्रंप की जीत की संभावनाओं का आकलन सुन सकते हैं, महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावों के संभावित नतीजे, चुनाव आयोग की गिनती से पहले यहां की टेबलों पर लीक हो जाते हैं. आपकी किस्मत ज्यादा अच्छी हुई तो किसी टेबल पर आपको यह जानने को भी मिल सकता है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीच आखिरी बार कब मारामारी की नौबत आ गई थी और गौतम अडाणी से कैसे राहुल गांधी ने अपने दफ्तर में आधी रात को मुलाकात की.
इन तमाम खुसफुसाहटों, ग्रेपवाइन्स के बीच आपको अपना विवेक और डिस्क्लेमर लगाकर चलना होता है. आपको अंदाजा लगाना होता है कि दावा करने वाला कितने पेग डाउन है. इसका मतलबल यह नहीं कि पूरी शाम सिर्फ गप्पबाजियों को ही समर्पित होती है. कई पत्रकार यहां सोर्सेज से मुलाकात के लिए आते हैं, कैरम रूम भी चलता है, तंबोला नाइट्स भी होती हैं.
हाल के दिनों में क्लब की संरचना में एक और बड़ा बदलाव महसूस किया जा रहा है. हफ्ते के कुछ दिनों में पूर्णकालिक पत्रकारों के मुकाबले कॉरपोरेट सदस्यों की भीड़ ज्यादा नज़र आती है. ये वो सदस्य हैं जो मोटी रकम देकर प्रेस क्लब के सदस्य बनते हैं. इन्हें चुनावों में वोट देने का अधिकार नहीं होता. इसके पीछे एक अर्थशास्त्र काम करता है. क्लब का खाना-पीना लुटियंस दिल्ली के किसी भी स्तरीय रेस्त्रॉं के मुकाबले बेहतर है और कीमत किसी भी स्तरीय रेस्त्रॉं के मुकाबले बहुत कम है. यह स्थिति कॉरपोरेट वालों को भाती है. सस्ते में बढ़िया सेवा.
लेकिन इन दिनों प्रेस क्लब का माहौल एकदम अलग है. आगामी नौ नवंबर को प्रेस क्लब के चुनाव होने हैं. देश-दुनिया की राजनीति पर चर्चा करने वाले पत्रकार आजकल क्लब की अंदरूनी राजनीति की चर्चा में व्यस्त हैं. कुछ पत्रकार नेता की तरह चुनाव भी लड़ रहे हैं.
प्रेस क्लब की मैनेजिंग कमेटी का चुनाव हर साल होता है. करीब पांच हजार सदस्यों वाले प्रेस क्लब ऑफ इंडिया का वार्षिक बजट लगभग 11.50 करोड़ रुपये है. इन पांच हजार में से 4,536 साधारण सदस्य हैं, जिन्हें मताधिकार प्राप्त है. इसके अलावा एसोसिएट और कॉरपोरेट मेंबर की कुल संख्या 477 है.
क्लब के लिए 21 पदों पर चुनाव होता है. इनमें से पांच ऑफिस बियरर्स के पद और 16 मैनेजिंग कमेटी के पद होते हैं. आमतौर पर यहां पैनल बनाकर चुनाव लड़ने की परंपरा है लेकिन स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने पर कोई पाबंदी नहीं है.
प्रेस क्लब के हालिया इतिहास में दो बड़े गुट बन गए हैं. एक गुट वो है जिसका बीते करीब एक दशक से क्लब पर कब्जा है. दूसरा गुट गाहे-बगाहे क्लब की प्रबंधन कमेटी में शामिल होने की कोशिश करता है. कथित तौर पर इस गुट को परदे के पीछे से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी समर्थन देती रहती है. भाजपा समर्थक पत्रकार अक्सर इस गुट की तरफ से ताल ठोंकते नज़र आते हैं, लेकिन अभी तक इस गुट को चुनावों में सफलता नहीं मिल पायी है.
क्लब के हालिया चुनावी इतिहास में सबसे कड़ा मुकाबला 2021 और 2022 में देखने को मिला था. जब वैचारिक आधार पर दो पाले साफ बंटे थे. एक राष्ट्रवादी गुट, दूसरा क्लब प्रबंधन पर काबिज लेफ्ट-लिबरल गुट. उस साल लेफ्ट-लिबरल खेमे से हिंदुस्तान के पत्रकार उमाकांत लाखेड़ा के नेतृत्व में पैनल था और दूसरी तरफ संजय बसक का पैनल था. उस चुनाव को याद करते हुए एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं, “वह चुनाव सबसे करीबी टक्कर वाला था. दोनों पैनलों ने धनबल, छल और आरोप-प्रत्यारोप जैसे सियासी दांवपेंच आजमाए थे.”
हालांकि, प्रेस क्लब में मौजूद हमने जितने भी पत्रकारों से बात की. उन सब ने इस बात पर सहमति जताई कि प्रेस क्लब के चुनाव में अब पहले जैसा रोमांच नहीं है. पहले नारेबाजी होती थी, पर्चे बांटे जाते थे और काफी रोमांचक प्रचार होता था लेकिन इस बार वैसा कुछ नहीं है.
कौन-कौन चुनावी मैदान में
क्लब के चुनाव में यह जो रोमांच कम हुआ है हमने उसकी वजह जानने की कोशिश की. जैसा कि हमने पहले ही बताया कि प्रेस क्लब के चुनाव में पैनल बनाकर चुनाव लड़ने की परंपरा है. हालांकि, कोई व्यक्तिगत तौर पर चुनाव लड़ना चाहे तो लड़ सकता है.
करीब एक दशक से यहां पर उदारवादी माने जाने वाला पैनल ही जीत रहा है. इस पैनल से इस बार अध्यक्ष पद पर गौतम लाहिरी, उपाध्यक्ष पद पर संगीता बरुआ, महासचिव के लिए नीरज ठाकुर, सह सचिव के लिए अफजल इमाम और कोषाध्यक्ष पद पर मोहित दुबे लड़ रहे हैं. इसे गौतम-संगीता-नीरज-अफजल-मोहित का पैनल कहा जा रहा है. पिछली बार के मुकाबले इस पैनल में दो नए चेहरे- संगीता बरुआ और अफजल इमाम शामिल हैं. जबकि गौतम लाहिरी, मोहित दुबे और नीरज ठाकुर लगातार दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं.
वहीं, इनके विपक्ष में इस बार कोई पैनल नहीं है. हालांकि, कुछ पदों पर पर कुछ स्वंतत्र लोग जरूर लड़ रहे हैं. जिनमें अध्यक्ष पद के लिए दो उम्मीदवार अरुण शर्मा और अतुल मिश्रा, उपाध्यक्ष पद पर प्रहलाद सिंह राजपूत और राहिल चोपड़ा, महासचिव के लिए लक्ष्मी देवी एरे और मोहम्मद सिराज साहिल, सह सचिव के पद पर अजय कुमार श्रीवास्तव, अनवर चौहान और स्वाति वर्मा, और कोषाध्यक्ष पद पर अतुल यादव और नरेश गुप्ता हैं.
वहीं, मैनेजिंग कमेटी के लिए कुल 28 लोग मैदान में हैं. जिनमें गौतम, संगीता, नीरज, अफजल, मोहित पैनल ने 16 उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि बाकी लोग स्वंतत्र रूप से चुनाव लड़ रहे हैं.
विपक्ष का अभाव
इस चुनाव में विपक्ष का कोई पैनल नहीं है. सिर्फ एक गौतम लाहिरी का खेमा ही पूरे पैनल के साथ चुनाव लड़ रहा है. 9 नवंबर को वोटिंग होनी है लेकिन 3,4 और 5 नवंबर को आधे से ज्यादा क्लब खाली नज़र आया. यहां तक कि नारेबाजी और प्रचार लगभग गायब है. हालांकि, कुछ उम्मीदवार अकेले एक टेबल से दूसरे टेबल पर पर्चा बांटते जरूर नजर आए. इसके बावजूद प्रचार करने वाले उम्मीदवारों और वोटरों में कुछ खास उत्साह नजर नहीं आ रहा है. यहां तक कि विपक्षी उम्मीदवार क्लब के लॉन में कम ही नजर आते हैं. लॉन में ज्यादातर लाहिरी ग्रुप के लोग ही दिखे.
विपक्ष ने कोई पैनल क्यों नहीं बनाया? इस सवाल के जवाब में राहिल चोपड़ा कहते हैं, “इसके दो जवाब हैं. पहला- महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव के चलते ज्यादातर मेंबर व्यस्त हैं और दूसरा यह कि अब सबको लगने लगा है कि अंत में जीत लाहिरी पैनल की ही होगी तो लड़ने से फायदा क्या है.”
हालांकि, विपक्ष भले ही एक मजबूत पैनल ना बन सका हो लेकिन विपक्ष के लोग छोटे-छोटे ग्रुप में एक तरह का मिनी पैनल बनाकर जरूर लड़ रहे हैं. जैसे महासचिव पद के लिए पीटीआई की वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी देवी और कोषाध्यक्ष पद पर पीटीआई के फोटो जर्नलिस्ट अतुल यादव एक पैनल के रूप में लड़ रहे हैं. लक्ष्मी देवी 2021-22 में संजय बसक पैनल में रह चुकी हैं. उन्हें हार्डकोर आरएसएस समर्थित प्रत्याशी भी माना जाता रहा है. हालांकि, लक्ष्मी देवी इस बात को अफवाह और विपक्षी साजिश बताती हैं.
वहीं, अध्यक्ष पद पर लड़ रहे अरुण शर्मा और उपाध्यक्ष पद पर प्रहलाद सिंह राजपूत ने एक मिनी पैनल बना लिया है. शनिवार, सोमवार और मंगलवार तीनों दिन अरुण शर्मा और प्रहलाद सिंह क्लब के अंदर वाले हॉल के टेबल पर रोजाना बैठे नजर आए. शनिवार से लेकर मंगलवार तक हम जब भी क्लब में मौजूद रहे हमने कभी अरुण शर्मा को बाहर लॉन में प्रचार करते या पर्चा बांटते नहीं देखा.
जब हमने अरुण शर्मा से उनका परिचय और पत्रकारिता के सफर के बारे में पूछा तो उन्होंने हमें एक वेबसाइट मीडिया फेडरेशन ऑफ़ इंडिया का लिंक बता दिया. जिसके मुताबिक, शर्मा इस फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. हमने उनसे पूछा कि आपने लक्ष्मी देवी और राहिल चोपड़ा जैसे उम्मीदवारों के साथ मिलकर एक मजबूत विपक्षी पैनल बनाने की कोशिश क्यों नहीं की? इस सवाल पर पहले शर्मा अपने सामने टेबल पर रखी व्हिस्की का घूंट लेते हैं और मुस्कुराते हुए कहते हैं, “शेर अकेला लड़ता है और जो झुंड में लड़ते हैं वो……हा हा हा….आप समझ ही गये होंगे.”
चुनावी मुद्दे
प्रेस क्लब में मिलने वाले महंगे चखने और बीयर जैसे राजमर्रा के मुद्दों से लेकर पत्रकारों की सुरक्षा और स्वतंत्रता जैसे गंभीर मुद्दे इस बार चुनाव में शामिल हैं. कोषाध्यक्ष पद पर स्वतंत्र चुनाव लड़ रहे नरेश गुप्ता लॉन में अकेले पर्चा बांटते नजर आए. उनके 11 सूत्री घोषणापत्र में से ज्यादातर घोषणाएं खाने-पीने, सर्विस और सफाई से संबंधित हैं. उन्होंने अपने घोषणा पत्र में लिखा है कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो शराब और खाने का दाम कम करेंगे. इसके साथ क्लब में मिलने वाली भुजिया और और मूंगफली को कम से कम दाम में उपलब्ध कराएंगे.
हमसे बातचीत में नरेश गुप्ता कहते हैं, “जो मूंगफली का पैकेट बाहर दस रुपये में मिलता है, वह यहां पर तीस रुपये का है जो कि सरासर गलत है. यहां वेटर की सर्विस ठीक नहीं है, रिसेप्शन भी अट्रैक्टिव नहीं है. अगर हम चुनाव जीतते हैं तो यह सब ठीक करने का प्रयास करेंगे.”
इसके अलावा वह प्रेस क्लब में पारदर्शिता और किचन से लेकर टेबल और टॉयलेट तक सफाई पर जोर देते हैं. हालांकि, अन्य मुद्दों जैसे कि अभिव्यक्ति की आजादी, पत्रकारों की सुरक्षा और सरकारी दमन आदि को लेकर उनके विचार स्पष्ट नजर नहीं आते. हमने उनसे पूछा कि इस क्लब के बाहर पत्रकारों के लिए आप क्या करेंगे. जिस पर थोड़ी देर खामोश रहने के बाद वह एक लाइन में जवाब देते हैं, “हम उनके साथ खड़े रहेंगे.” उनके घोषणा पत्र में इससे जुड़े मुद्दे नदारद हैं.
जब नरेश गुप्ता अपना पर्चा लॉन में बांट रहे थे तो उस समय वहां पर मौजूद एक वरिष्ठ पत्रकार भड़क जाते हैं, “क्या यही इन लोगों की प्रेस क्लब ऑफ इंडिया को लेकर समझ है, खाने के दाम कम कर देंगे, पीनट के दाम कम कर देंगे. पत्रकार और पत्रकारिता के वेलफेयर के लिए कोई एजेंडा है इनके पास?”
अरुण शर्मा और प्रहलाद सिंह राजपूत के पैनल के मुद्दे भी कुछ इसी तरह के हैं. उनके पैनल का नारा है, “एक बार विश्वास करके तो देखें.” इनके घोषणा पत्र में भी खानपान और शराब की दरें कम करने सहित प्रेस क्लब को सुंदर और स्वच्छ बनाने की बात कही गई. हालांकि, उनके घोषणापत्र में भी पत्रकारों की सुरक्षा और उनके हित से जुड़े अन्य मुद्दे शामिल नहीं हैं.
कुछ इसी तरह के मुद्दे लक्ष्मी देवी-अतुल यादव पैनल के भी हैं. वह भी खाने के दाम कम करने, प्रेस क्लब की कार्यवाही में पारदर्शिता लाने, क्लब को जेंडर न्यूट्रल बनाने पर जोर देते हैं.
राहिल चोपड़ा भी खाने-पीने सहित बीयर के दाम कम करने पर जोर देते हैं. वह कहते हैं, “जो बियर बाहर मार्केट में 100-150 रुपये की मिलती है, वह यहां पर 300 रुपये की है. ऐसे में आम मेंबर यहां पर कैसे अफोर्ड कर पाएगा?. पत्रकारिता में सब की सैलरी ज्यादा नहीं होती तो ऐसे में पार्लियामेंट की तर्ज पर सब्सिडी रेट पर यह सारी चीज उपलब्ध होनी चाहिएं.”
विपक्ष के तमाम उम्मीदवारों के घोषणा पत्र पर चुटकी लेते हुए प्रेस क्लब के पूर्व कोषाध्य़क्ष और लाहिरी पैनल के समर्थक चंद्रशेखर लूथरा कहते हैं, “प्रेस क्लब सिर्फ खाने-पीने और मौज-मस्ती की जगह नहीं है. यह पत्रकारों और पत्रकारिता के अधिकारों के रक्षा के लिए बनी एक कम्यूनिटी है. इसके चुनावी मुद्दे को सिर्फ खाने-पीने तक सीमित कर देना नासमझी है. हमारा पैनल जब से यहां सत्ता में है, हम पत्रकारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहे. चाहे उनके लिए स्टेटमेंट जारी करना हो प्रेस कॉन्फ्रेंस करना हो या प्रदर्शन करना हो.”
मौजूदा समय में क्लब में लगभग 140 स्टाफ हैं. जिनकी सैलरी लगभग 36 लाख प्रतिमाह देनी होती है. हमें कोई सरकारी मदद तो मिलती नहीं ऐसे में यह पैसा कहां से आएगा. फिर यह क्लब दिल्ली के बाकी क्लब्स से काफी सस्ता है.”
देखा जाए तो घोषणापत्र के मामले में सबसे व्यवस्थित गौतम लाहिरी का ही पैनल लगता है. इनकी घोषणाओं में, “मीडिया ट्रांसपैरेंसी एंड अकाउंटेबिलिटी बिल, 2024” को संसद में टेबल करवाने, सरकारी दबंगई झेल रहे पत्रकारों को कानूनी मदद उपलब्ध कराने के लिए लीगल सेल बनाने और देश भर के प्रेस क्लब को मिलाकर फेडरेशन ऑफ प्रेस क्लब्स बनाने पर जोर दिया गया है. इसके साथ ही पत्रकारों के स्किल डेवलपमेंट से संबंधित प्रोग्राम करने और प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की स्वतंत्रता और स्वायत्तता को बनाए रखना का वादा भी किया गया. इनके घोषणापत्र में खाने खाने-पीने, चखने और शराब के दाम कम करने की बात नहीं कही गई है.
विपक्ष का आरोप
विपक्ष के काफी लोगों से हमने बात की. उन सब ने एक स्वर में लहरी पैनल पर यही आरोप लगाया कि लहरी पैनल के लोग प्रेस क्लब की मेंबरशिप में पारदर्शिता नहीं रखते. ये उन्हीं लोगो लोगों को मेंबरशिप देते हैं, जो इन्हें आने वाले चुनाव में वोट कर सके.
अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ रहे अतुल मिश्रा आरोप लगाते हैं, “मेंबर बनाने में कोई पारदर्शिता नहीं है. सत्ताधारी पैनल जिसे चाहता है, उसे मेंबर बनाता है और जिसे चाहता है, खारिज कर देता है.”
वहीं, लक्ष्मी देवी भी इन आरोपों को समर्थन देती नजर आती हैं. वह कहती हैं, “ऐसा एक परसेप्शन है कि मौजूदा पैनल उन लोगों को मेंबर बनता है जो उन्हें वोट दे सके. मैं यह नहीं कह रही कि यह बात 100 फीसदी सही है क्योंकि मैं अभी पावर स्ट्रक्चर में नहीं हूं. लेकिन यह बात बहुत सारे लोग कह रहे हैं. इसलिए इसको दरकिनार नहीं किया जा सकता.”
वहीं, नरेश गुप्ता आरोप लगाते हैं, “10 साल पहले पहले जो लोग मेंबर बनाए जाते थे उनकी लिस्ट प्रेस क्लब के रिसेप्शन के पास लगाई जाती थी. लेकिन अभी ऐसा नहीं किया जाता क्योंकि मौजूदा पैनल के अलावा किसी को नहीं पता कि किसको मेंबरशिप दी गई या किसको नहीं दी गई. यहां तक की जिसको मेंबरशिप दी गई है वह पत्रकार है भी या नहीं.”
इन आरोपों को लेकर गौतम लाहिरी ने कहा कि इनमें कोई सच्चाई नहीं है. लेकिन अगर फिर भी कोई इन आरोपों के बारे में पुख्ता सबूत लेकर आता है तो वह जांच करवाने के लिए तैयार हैं. लाहिरी ने दावा किया कि वह सदस्यता को लेकर मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन, 1958 के तहत तय नियम एवं प्रक्रिया का ही पालन करते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि इस साल करीब 100 पत्रकारों को साधारण सदस्य बनाया गया है.
मौजूदा पैनल के वादे और उपलब्धियां
अगर बात सत्ताधारी पैनल की उपलब्धियों की करें तो इनमें खाने के मेन्यू में हिमालयन ट्रॉट फिश और देसी मुर्गे को शामिल किया गया है. इसके अलावा प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया ने दिल्ली-एनसीआर के चार अस्पतालों के साथ टाइअप किया है ताकि मेंबर्स और स्टाफ को सीजीएचएस रेट पर इलाज उपलब्ध कराया जा सके. इसके साथ ही प्रेस क्लब के अनुसार, यहां का स्ट्रक्चर पहले से ज्यादा विकसित किया गया है, जिसमें फर्नीचर और वॉशरूम का कायाकल्प शामिल है.
लाहिरी पैनल के वादों की सूची में नेशनल मीडिया पॉलिसी और पत्रकारों की सुरक्षा के लिए मीडिया ट्रांसपैरेंसी एंड अकाउंटेबिलिटी बिल, 2024 का ड्राफ्ट तैयार करने और पत्रकारों को कानूनी मदद देने के लिए लीगल सेल का ब्लूप्रिंट तैयार करने जैसी बातें शामिल हैं.
एक वादा जो रह गया!
साल 2021 के घोषणा पत्र में मौजूदा सत्ताधारी पैनल ने ऐलान किया था कि मुंबई प्रेस क्लब की तर्ज पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया द्वारा भी पत्रकारों के लिए अवार्ड शुरू किया जाएगा. इस वादे के अब तक पूरा न होने को लेकर गौतम लाहिरी बताते हैं कि कोरोना के चलते इसमें कुछ रुकावटें आई. लेकिन अगर वे फिर से चुनकर आते हैं तो इस अवॉर्ड को निश्चित तौर पर शुरू किया जाएगा. लाहिरी यह भी बताते हैं कि वह इस अवॉर्ड के लिए एक ऐसे प्रायोजक (स्पॉन्सर) को तलाश रहे हैं जिसके वैचारिक मूल्य संस्था से मेल खाते हों और हितों के टकराव जैसा कोई मामला न हो.
प्रेस क्लब को हमने और भी कई चीजों को लेकर सवाल पूछे थे. जिसके उन्होंने विस्तार से अंग्रेजी में जवाब भेजे हैं. आप पूरे जवाब को नीचे पढ़ सकते हैं.
एक तरह से देखा जाए तो यह चुनाव एक तरफा नजर आ रहा है. साथ ही दिवाली, छठ पूजा और महाराष्ट्र-झारखंड विधानसभा चुनाव की वजह से मतदान भी कम होने के आसार नजर आ रहे हैं. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि वोटिंग के दिन क्या होगा और इस बार 10 साल से सत्ता में काबिज पैनल फिर से बाजी मारेगा या फिर सत्ता परिवर्तन होगा.
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