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बसंत कुमार

डीबीआर यूनिक: बड़े-बड़े सपने दिखाकर गरीब और दलितों का शोषण करने वाली कंपनी

21 मार्च 2024, बेगूसराय के एक होटल में स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह सैकड़ों कोट-पैंट पहने युवाओं के सामने मंच पर खड़े होकर भाषण दे रहे थे. यहां उन्होंने कहा, ‘‘लीडर का मतलब यह नहीं है कि वो राजनीतिक दल का नेता हो. लीडर का मतलब है जो चैलेंज को पूरा करके आगे बढ़ता है. वही लीडर होता है. आप अपने बेरोजगारी रूपी चैलेंज को चुनौती देकर यहां तक पहुंचे हैं. इसलिए असली लीडर आप हैं. आप आगे चलकर लाख-दो लाख रुपये कमाएंगे, ऐसी मेरी शुभकामना है. अगर मैं सासंद नहीं रहता तो आपके टीम का एक वर्कर बन जाता.’’

यह स्टोरी उसी कंपनी के बारे में हैं, जिसका वर्कर बनने की बात गिरिराज सिंह कर रहे थे. कंपनी का नाम है, डीबीआर यूनिक यानि डीबीआर बायोरिसर्च आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड. जिसका ध्येय ‘बीमारी और बेरोजगारी मुक्त भारत’’ है. लेकिन कंपनी पर आरोप हैं कि यह यूपी-बिहार के सैकड़ों युवाओं के साथ धोखा कर रही है.

मार्च, 2023

बिहार के बेतिया जिले के पंचखौली गांव के रहने वाले 20 वर्षीय संजू कुमार हरिजन समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. एक दिन पड़ोस के ही रहने वाले अमित कुमार राम का फोन आया. फोन पर अमित के अलावा गांव का एक दूसरा लड़का धामू भी था. दोनों ने मिलकर संजू को अपने काम के बारे में बताया और इसे भी काम से जुड़ने के लिए कहा. 

यह मार्च 2023 की बात है. 9वीं तक पढ़े संजू उन दिनों घर पर ही रहते थे. माता-पिता मज़दूरी करते थे. उसी से घर चलता था. अमित और धामू ने उसे बताया था कि यहां पढ़ने को मिलेगा और साथ ही दवाई पैकिंग का काम है. उससे महीने के 18-19 हज़ार रुपये तुम कमा लोगे. इसके लिए उसे सिर्फ 20 हज़ार रुपये लेकर आना है. 

संजू न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मुझे लगा कि पढ़ाई भी कर लूंगा और पैसे कमाऊंगा तो परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक होगी. हम हरिजन हैं. आप तो जानते ही हैं कि किस हाल में हम लोगों का परिवार चलता है. मेरे घर वालों ने 20 हज़ार रुपये कर्ज लेकर दिया. जिसे लेकर मैं मुजफ्फरपुर के लिए निकल गया. वहां जाने के बाद ‘इंटरव्यू’ हुआ. उसके बाद मुझे ‘सेलेक्ट’ कर लिया गया. मुझसे 20 हज़ार रुपये लिए गए और एक कमरे में ले जाया गया. जहां 5-6 लड़के और थे. इस बिल्डिंग में तकरीबन 400 लड़के थे.’’

संजू को नौकरी डीबीआर बायो रिसर्च आयुर्वेदा प्राइवेट लिमिटेड (डीबीआर) में लगी थी. जिसमें उनके गांव और रिश्तेदारी के पांच युवक पहले से काम कर रहे थे. सबको एक ही कमरे में रखा जाता था. खाने में सुबह-शाम दाल, चावल और आलू-सोयाबीन की सब्जी होती थी. यह रोज का मेन्यू था. रोटी बीमार पड़ने पर मिलती थी. संजू के गांव के लड़कों ने कंपनी की सच्चाई से रू-ब-रू नहीं कराया.

संजू बेतिया के रहने वाले हैं.

संजू बताते हैं, ‘‘रोज हमें अलग-अलग विषय पढ़ाया जाता था. जिसमें ज़्यादातर समय मोटिवेशन ही होता था.  ऐसे बात करते थे कि अगर तुम यहां काम करते रहे तो एक दिन करोड़पति हो जाओगे. लेकिन 10 दिन तक मुझे कोई काम तक नहीं करने को दिया. दवाई की पैकेजिंग करना हो या दवाई के बारे में बताना हो कुछ भी नहीं बताया. मैं परेशान हो रहा था. एक कमरे में बंद रहते थे. कहीं बाहर जाना नहीं, किसी और टीम के लोगों से बात नहीं करना. ऊब रहा था. एक दिन मैंने कहा कि कम से कम जहां काम होता है, वो जगह तो दिखा दो लेकिन किसी ने कुछ नहीं दिखाया.’’

‘‘एक दिन हमारा जो ‘रूम हेड’ था उसने कहा कि इस डायरी में वो सब नंबर लिखो जो तुम्हारे फोन में हैं. उसके बाद कहा गया कि इन्हें एक-एक कर कॉल करो और कंपनी से जुड़ने के लिए बोलो. फोन लगाने से पहले वो मुझे वही बात समझाते थे, जो धामू और अमित ने मुझे कहा था. कंपनी बहुत अच्छी है. जुड़ोगे तो महीने के 18-19 हज़ार महीने का कमाओगे. अपने सामने फोन लगवाते थे. उनके डर से तो मुझे वो सब कहना पड़ता था, जो वो सिखाते थे. एकाध दिन बाद मैं कंपनी का फ्रॉड समझ गया. उनके सामने डर से ज़रूर उनका सिखाया कहता था लेकिन मौका मिलते ही फोन कर उन्हें सच्चाई बता देता था. मैं खुद तो फंस ही गया था किसी और क्यों ही फंसाता.’’

संजू ने समझदारी दिखाई लेकिन अमित राम ऐसा नहीं कर पाए. अमित ने ही संजू को बुलाया था. दसवीं तक पढ़े अमित को गांव के ही धामू और उसके रिश्तेदार नीतेश कुमार राम ने बुलाया था. उसे कहा कि दवाई पैकिंग का काम करना है. करीब 19 हज़ार रुपये महीना मिलेगा. अमित कहते हैं, ‘‘धामू पर तो भरोसा नहीं था, लेकिन नीतेश गांव का रिश्तेदार था तो उसपर यकीन करके चला गया. कर्जा लेकर घर वालों ने 20 हज़ार रुपये दिए थे. वहां जाकर पता चला कि फंस गए हैं. वहां दो महीने तक काम किया लेकिन कभी दवाई तो देखने को नहीं मिली.’’

मुझे कहा गया कि अपने जानने वालों को कॉल करो और उन्हें कंपनी से जोड़ो. मैंने अपने ही गांव के संजू और अनिल राम को जोड़ा. दो महीने तक मैंने डीबीआर के साथ काम किया था, लेकिन मुझे एक रुपये भी वेतन के रूप में नहीं मिला था. कहते थे कि लोगों को जोड़ो उसके बाद पैसा मिलेगा. ट्रेनिंग के अलावा कमरे से निकलने नहीं देते थे. किसी और से बात नहीं करने देते थे. इस बीच धान की बुआई का समय आ गया. जिसके लिए मैं अपने गांव आया और फिर वापस नहीं गया.

अमित की मां और पिता दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं. उसे कुछ ही दिनों में बिना हार्डवर्क के अमीर होने का सपना दिखाया गया और वो अपने मां-बाप की आर्थिक स्थिति जल्द से जल्द ठीक करने के लालच में चले गए. 20 हज़ार रुपये उनका तो गया ही, उन्होंने दो और लोगों को इससे जोड़ दिया. 

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए अमित कहते हैं, ‘‘सर, हम लोगों का पइसवा (20 हज़ार रुपये) मिल जाए. कर्ज लेकर घरवालों ने दिया था. एक साल हो गए छोड़े हुए लेकिन अब तक कर्ज नहीं उतरा है. मीठी-मीठी बातें करके ठग लिया सब. खाने को एकदम बेकार देता था.’’

इस कड़ी में अगला नाम 20 वर्षीय नीतीश कुमार का है. ये भी हरिजन समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. इन्हें उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के रहने वाले एक युवा ने डीबीआर से जोड़ा था. ये 2023 में जुड़े थे और करीब चार महीने वहां काम किया. इनको भी दवाई पैकेजिंग की ही बात की गई थी. वेतन के रूप में 15-16 हज़ार रुपये देने की बात हुई थी और साथ ही कहा था कि अनुभव के साथ ही वेतन में भी वृद्धि होगी. कुमार बताते हैं, ‘‘मुझसे ज्वाइन कराने के लिए 18 हज़ार रुपये लिए. जो मेरे घर वालों ने धान बेचकर दिए थे.’’

कुमार आग कहते हैं, ‘‘मुज्जफरपुर सेंटर पर जाने के बाद मुझे फेसवॉश, साबुन और खांसी की दवाई डीबीआर वालों ने इस्तेमाल करने के लिए दी. उसके बाद हम कभी दवाई नहीं देखे. हर रोज सुबह-सुबह क्लास होती थी. जिसमें दो से तीन सौ लड़के/लड़कियां मौजूद होते थे. वहां टीम वर्क, कैसे किसी से बात करें, अपनी बात किसी को कैसे मनवायें, यह सब सिखाया जाता था. मोटिवेट करने वाली बातें ज़्यादा होती थी. लोगों के उदाहरण दिए जाते थे, जिन्होंने यहां रहते हुए खूब कमाई की है. एक कमरे में चार से पांच लोग रहते थे. वहीं रूम में ही खाना बनता था. 15 दिन तक ट्रेनिंग देने के बाद मुझसे कहा गया कि आप दो और लोगों को जोड़िए. उसी आधार पर आपका प्रमोशन होगा. इसके लिए मुझसे फोन करवाते थे. मैंने अपने एक दोस्त और तीन लोगों को जोड़ा था. चार महीने वहां काम किया था और मुझे कुल 1200 रुपये मिले थे. आगे मैं भी छोड़कर वापस आ गया. पैसे हमारे डूब गए.’’ 

धामू से बात करने के लिए जब हमने फोन किया तो उन्होंने फोन काट दिया. न्यूज़लॉन्ड्री को मिली जानकारी के मुताबिक धामू, अब भी डीबीआर से जुड़े हुए हैं.  

तीन साल की कंपनी, दर्ज हुए सात से अधिक एफआईआर 

अब तक आपने पढ़ा कि कैसे दवाई बांटने की बात कर युवाओं को बुलाया जाता है. आने के बाद उन्हें और लोगों को कंपनी से जोड़ने के लिए कहा जाता है. बिहार-यूपी के कई शहरों में डीबीआर कंपनी ऐसे ही युवाओं को निशाना बना रही है. न्यूज़लॉन्ड्री को ऐसे सात एफआईआर मिले हैं. जिसमें कंपनी में काम करने, युवाओं को धोखा देने और काम करने के बाद भी वेतन नहीं देने की शिकायतें शामिल हैं. यह सब मामले अलग-अलग समय पर दर्ज़ हुए हैं. इसमें दो एफआईआर लड़कियों ने कराई हैं, जिसमें से एक पॉक्सो एक्ट के तहत और दूसरी भी शारीरिक शोषण को लेकर है. आइए एक-एक करके इनके बारे जानते हैं.

डीबीआर का नोएडा स्थित दफ्तर

पहली एफआईआर 

न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेज के मुताबिक, डीबीआर की स्थापना मई 2021 में हुई और जालसाजी का पहला मामला जून, 2022 में बिहार के अररिया जिले के फारबिसगंज जिले में दर्ज हुआ. 

यह एफआईआर पूर्वी चम्पारण जिले के बैरिया गांव के रहने वाले विनय कुमार ने दर्ज कराई थी. विनय ने एफआईआर में बताया कि उसके दोस्त अक्षय ने फोन कर मेडिसिन का काम करने के लिए फारबिसगंज बुलाया. यहां 12 मई 2022 को जब वह पहुंचा तो अक्षय और लक्ष्मण नामक एक शख्स उसे होटल ले आए. जहां उसका इंटरव्यू हुआ. इंटरव्यू के बाद उसे एक कमरे पर ले गए. जहां 70-80 और लड़के थे. सबको वहीं बंद करके रखा जाता था. कहीं भी आने जाने की इजाजत नहीं थी. वहां से एक लड़के मनीष के साथ जैसे तैसे विनय एक जून, 2022 को भागकर निकल आया.

विनय की शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज हुई और पुलिस ने मुहम्मद तारिक, नीरज कुमार, दीपक कुमार और रामबाबू को गिरफ्तार किया गया था. यहां 70 के करीब युवाओं को छुड़ाया गया. 

न्यूज़लॉन्ड्री ने विनय के साथ डीबीआर सेंटर से भागे मनीष यादव से बात की. 21 वर्षीय मनीष बिहार के मोतिहारी के रहने वाले हैं. वह ड्राइवर का काम करते थे. इनसे और इनके दोस्तों से कंपनी ने काम देने के बदले 32-32 हज़ार रुपये लिए थे. 

मनीष बताते हैं, ‘‘विनय मेरे गांव का लड़का था. जो डेढ़ महीना पहले वहां काम करने गया था. मेरे गांव से तीन और लड़के थे. विनय ने मुझे फोन कर बताया कि मेडिसन का काम है. 28 हज़ार रुपये का महीना मिलेगा. उसके कहने के बाद मैं वहां काम करने के लिए गया. जाते ही उन्होंने 32 हज़ार रुपये ले लिए. पैसे लेने के बाद रूम में बंद कर दिया. बेकार सा खाना खाने को देता था. कहीं जाने नहीं देते थे, मोबाइल से बात तक नहीं करने देते थे. अगर हम रूम से निकलते थे, दो आदमी हमारे साथ जाते थे कि हम क्या कर रहे हैं. मना करते थे कि यहां क्या हो रहा है, किसी को बताना नहीं है.’’

मनीष और उनके साथी दिन भर कमरे में पड़े रहते थे. दवाई का तो कोई काम ही नहीं था. इन्हें रोजाना चावल-सब्जी खाने को दिया जाता था. रोटी तो कभी मिलती नहीं थी.

मनीष बताते हैं, ‘‘कुछ दिन बीतने के बाद कहा गया कि दो लड़कों को और बुलाओ. इस पर हमने कहा कि यहां आकर मैं खुद फंस गया हूं और दो लड़के और बुलाकर फंसा दूं. वहां मुझे 30-32 लड़के मिले जो मेरी ही उम्र के थे. सब कहते थे कि आकर फंस गए हैं. किसी को दो महीने तो किसी को तीन महीने काम करते हुए हो गए थे. किसी को एक रुपया नहीं मिला था. मैं पहले ड्राइवर का काम करता था तो मैं वहां के कुछ लोगों को जानता था. मौका पाकर मैं और विनय वहां से निकले और जाकर शिकायत दी. उसके बाद वहां से लड़कों को छोड़ा गया. वहां से किसी को घर भी नहीं आने देते थे.’’

जब आपको फोन पर बात नहीं करने देते थे तो आप लड़कों को कैसे जोड़ते थे. इसको लेकर मनीष कहते हैं, ‘‘हमें अपने जानने वालों को फोन करने के लिए कहा जाता था. जब हम फोन करते थे तो वहां जो सर थे, वे खड़े रहते थे. वो सिखाते थे कि क्या बोलना है. वही बोलना होता था. अपने से आप कुछ नहीं बोल सकते हो. इसी तरह से फ्रॉड होता है.’’

न्यूज़लॉन्ड्री ने विनय से भी बात की. उसने बताया, ‘‘अब तक मेरे पैसे वापस नहीं किए है. मेरी ज़िन्दगी बर्बाद कर दी. जिस दिन मेरे पास पैसे होंगे मैं अपना केस लडूंगा. दुनिया भर के सपने दिखाते हैं. ऑडी चलाओगे, थार होगा, ये होगा वो होगा लेकिन नौकरी के नाम पर बेईमानी करवाते हैं. लूटते हैं.’’

दूसरी एफआईआर- नशीली दवाई देकर शारीरिक शोषण  

पूर्वी चम्पारण के रक्सौल थाने में मई, 2023 में पॉक्सो एक्ट के तहत डीबीआर कंपनी के कर्मचारियों पर मामला दर्ज हुआ. यह एफआईआर झारखंड के दुमका जिले की रहने वाली सुनैना मरांडी (बदला नाम) की शिकायत पर दर्ज हुई थी.  

एफआईआर में सुनैना ने बताया है कि उनकी सोलह वर्षीय बेटी नेहा (बदला हुआ नाम), दुमका के एक प्राइवेट स्कूल में 10वीं की पढ़ाई कर रही थी. यहीं 12वीं कक्षा में तनु (बदला नाम) पढ़ती थी. तनु ने नेहा को बताया कि वो रक्सौल में डीबीआर यूनिक कंपनी में कम्प्यूटर कोर्स के साथ मार्केटिंग का काम कर रही है. बाद में अच्छी नौकरी मिल जाएगी. इस बात से प्रभावित होकर उसकी बेटी भी जाने की जिद करने लगी. 

सुनैना  शिकायत में आगे बताती हैं, ‘‘चार मई  2023 को मैं अपनी बेटी के साथ रेलवे स्टेशन रक्सौल पहुंचीं तो मेरी बेटी को लेने दो लोग आए. वो उसे लेकर जाने लगे. मैंने उनके साथ जाने की जिद की तो वे साथ ले गए. वहां मुझसे 3 हज़ार रुपये अग्रिम जमा करा लिए गए. उसके बाद मुझे वापस जाने के लिए बोला. इसका विरोध किया तो मुझे जबरन वापस भेज दिया गया. इसके दो दिन बाद मेरी बेटी से बात करवाना बंद कर दिया. अचानक दस मई को मेरी बेटी, मरियम के मोबाइल से फोन कर बोली कि मुझे यहां नहीं रहना है.’’ 

आगे कंपनी के पांच कमर्चारी का जिक्र करते हुए सुनैना लिखती हैं, ‘‘मेरी बेटी ने बताया कि जब भी मैं इनसे यहां से जाने के लिए कहती हूं तो मुझसे मारपीट करते हैं. और 12 हज़ार रुपये की मांग की जाती है. कहते हैं जब तक पैसा नहीं आएगा तब तक नहीं जाने देंगे. पार्वती मरांडी (कंपनी से जुड़ी एक महिला) मुझे सोने से पहले नशीली दवाई दे देती है. जिससे मुझे जल्दी नींद आ जाती है. सुबह मैं जब उठती हूं तो कपड़े अस्त-व्यस्त होते हैं. मेरे साथ नाजायज संबंध बनाया जाता है. मेरे साथ अन्य लड़कियां भी हैं. उनके साथ भी नाजायज संबंध बनाया जाता है. 

इस मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 323, 328, 342, 370(A) और 386 और पॉक्सो एक्ट के तहत मामला दर्ज हुआ. जिसमें एनामुल अंसारी, संजीत कुमार, प्रकाश कुमार शर्मा, विक्की मंडल और पार्वती मंडल को आरोपी बनाया गया. 

रक्सौल पुलिस ने इस शिकायत के बाद डीबीआर के सभ्यता नगर स्थित सेंटर पर छापा मारकर आरोपियों के गिरफ्तार किया. वहीं इस सेंटर से 12 लड़कियों को छुड़ाया गया. इसमें से ज़्यादातर लड़की झारखंड और मुज्जफरपुर की रहने वाली थी.

तीसरी एफआईआर: जिससे डीबीआर को लगा झटका

इस घटना के चार दिन बाद 19 मई 2023 को डीबीआर कंपनी पर एक और एफआईआर दर्ज हुई. यह एफआईआर 20 वर्षीय ओमकार नाथ पांडेय ने दर्ज कराई. वह उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले के रहने वाले हैं. मुज्जफरपुर जिले के अहियारपुर थाने में पांडेय ने जो शिकायत दी, उससे कैसे एक दूसरे के जरिए युवाओं को डीबीआर से जोड़ा जाता है, इसका पता चलता है.

उत्तर प्रदेश के महाराजगंज ज़िले के रहने वाले ओमकार पांडेय की शिकायत पर बंद हुआ था मुज़फ़्फ़रपुर का डीबीआर सेंटर

पांडेय अपनी शिकायत में बताते हैं, ‘‘पवन मेरा दोस्त है. उसने मुझे बताया कि कुशीनगर जिले का रहने वाला करन गुप्ता, मुजफ्फरपुर की डीबीआर यूनिक कंपनी में काम करता है. जिसकी अच्छी खासी इनकम है. मैं अपने दोस्तों के साथ यहां काम करने जा रहा हूं. उस वक़्त तो मैं नहीं आ पाया. कुछ दिनों बाद 15 अप्रैल 2023 को मैं मुजफ्फरपुर पहुंच गया. यहां मुझे 500 लड़के/लड़कियों के साथ 15 दिनों तक प्रशिक्षण कराया गया. प्रशिक्षण के दौरान हम दोनों (पवन और ओमकार) से 21 हज़ार 500 रुपये (प्रति व्यक्ति) जमा कराए गए. इसी दौरान हमसे कहा गया कि अपने कम से कम दो दोस्तों को इस कंपनी में काम करने के लिए बुलाओ.’’

शिकायत में आगे ओमकार कंपनी के डायरेक्टर मनीष सिंह, ब्रांच मैनजेर मोहम्मद इरफान समेत दस लोगों के नाम का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘‘इन लोगों के द्वारा मुझे बार-बार दबाव बनाया गया कि दो लोगों को जोड़ो. इन लोगों के कहने पर मैंने मनीष सिंह, राजन कुमार और सतीश गौड़ को काम करने के लिए बुलाया. इन्होंने भी 21,500 रुपये प्रति व्यक्ति कंपनी को दिए. इसके बाद इन तीनों को दो-दो लोगों को जोड़ने के लिए कहा गया. यहां के हालात देखने के बाद हम लोगों ने और लड़कों को बुलाने से इनकार कर दिया तो हमें कमरे में बंद कर दिया गया, मारपीट की गई और हमारा खाना-पीना बंद कर दिया. हमें जान से मारने की धमकी देने लगे. इसके बाद मौका पाकर हम पांच दोस्त सेंटर से भाग आए.’’     

ओमकार, पवन, मनीष सिंह, राजन कुमार और सतीश गौड़ सेंटर से भागे थे. इन्होंने तब थाने में शिकायत दी. जिसके आधार पर आईपीसी की धारा 344, 342, 323, 420, 386 और 120 B के तहत मामला दर्ज हुआ. कुछ दिनों बाद मुजफ्फरपुर पुलिस ने डीबीआर के सेंटर पर छापा मारा और वहां से युवाओं को हटाया गया. इसके बाद यहां का सेंटर बंद हो गया. कुछ युवाओं को कंपनी यहां से हाजीपुर ले गई.

न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए ओमकार पांडेय इस कंपनी की मोडस ऑपरेंडी के बारे में बताते हैं. पांडेय कहते हैं, ‘‘ये लोग सोशल मीडिया खासकर फेसबुक पर कंपनी से जुड़े पोस्ट करते हैं. जिसमें रोजगार से जुड़ी हुई बातें होती हैं. आपने उसे लाइक या कमेंट किया तो वो आपको टारगेट करते हैं. मैसेज करते हैं. आपको नौकरी ऑफर किया जाता है. वहां जाने के बाद आपको ऐसा दिखाया जाता है कि आप एक बेहतरीन जॉब कर रहे हैं. इसके अलावा कोई काम करने वाली चीज है ही नहीं. जब तक आप पैसा (21 हज़ार 500 रुपये) नहीं देते तब तक आपको अच्छे से समझाया जाएगा, बातचीत की जाएगी. जैसे ही पैसे देते हैं उनका व्यवहार बदल जाता है. सुबह ट्रेनिंग के लिए लेकर जाते हैं. जहां रास्ते में किसी से भी बात करने की इज़ाज़त नहीं होती है. वहां से आने के बाद 12 बजे से यहां कॉल सेंटर जैसा काम होता है.’’

ओमकार आगे दिलचस्प जानकारी देते हैं. वो कहते हैं, ‘‘आपके फोन में जितने नंबर होते हैं. वो ये लोग एक डायरी पर लिखवा लेते हैं. उसके बाद कहा जाता है कि एक दिन में इसमें से दस लोगों को फोन कर कंपनी से जुड़ने के लिए कहो. दस में से एक न एक तो व्यक्ति फंसता ही है. मेरे फोन में मेरे रिश्तेदार या परिवार के सदस्य का ही नंबर होगा न? वो मुझपर भरोसा करके आ जाते हैं. उनसे साथ भी यही सब दोहराया जाता है. जब हम फोन करते हैं तो क्या कहना है, वो समझाने वाले बगल में खड़े होते हैं. जैसे-जैसे लोग पुराने होते जाते हैं उन्हें टीम बनाने के लिए कहा जाता है. सपना दिखाते हैं कि इतने लोगों की टीम बना लोगे तो पैसे मिलेंगे लेकिन जिस स्तर के सपने दिखाए जाते हैं वो किसी को नहीं मिलता है. सब यहां ठगे जाते हैं.’’

ओमकार ने यहां सिर्फ 22 दिन काम किया. उनको जल्द ही समझ आ गया कि ठगी हो रही है तो वहां से भाग निकले. ये बताते हैं, ‘‘हमसे जो काम कराया जा रहा था वो तो धोखा था ही मैंने देखा कि यहां लड़कियों के साथ गलत काम  होता था. जो सर लोग ट्रेनिंग देने आते थे. उन्हें अगर कोई लड़की पसंद आ जाती थी तो वो उसे अपनी गाड़ी में रात सात-आठ बजे के करीब ले जाते थे और सुबह चार बजे लाकर छोड़ देते थे. ऐसा मैंने कई दिन देखा था. दवाई बेचने के लिए बुलाया जाता है लेकिन कोई वहां दवाई बेचता नहीं है.’’

मुजफ्फरपुर में जब सेंटर चलता था अलग-अलग जगहों पर युवाओं को रखा जाता था. जिसमें से एक समद नाम की बिल्डिंग भी है. यह मोहम्मद समद का मकान है. इसमें नीचे कपड़े, चिकेन कॉर्नर और मोबाइल की दुकान है. वहीं, दूसरे, तीसरे और चौथे माले के कमरों में बच्चों को रखा जाता था. यहां 10 बाई 10 के कमरे में सात से आठ लोगों को रखा जाता था. 

मुज्जफरपुर की समद बिल्डिंग.

समद बिल्डिंग के बाहर चिकेन की दुकान पर बीते पांच सालों से काम करने वाले और इसकी देख रेख करने वाले मुर्तुजा बताते हैं, ‘‘पहले यहां लड़की भी रहती थी. मई 2023 में रेड पड़ने के यहां सेंटर बंद हो गया लेकिन तीन-चार महीने बाद दुबारा यह खुला तो सिर्फ लड़के ही रह रहे थे. उसके बाद यहां तक़रीबन 150 लड़के रहने आए. 13 के करीब रूम डीबीआर ने किराये पर लिए थे. उसी में ये सब रहते थे. रूम में ही उनका खाना बनता था. उसी में खाते थे और उसी में रहते थे.’’

इस बिल्डिंग के मालिक एमडी समद अलग ही आंकड़े बताते हैं. इनका कहना है, ‘‘यहां के करीब 50 घरों में इस कंपनी से जुड़े दो हज़ार नौजवान लड़के/लड़कियां रहते थे. पिछली बार जब कंपनी पर आरोप लगा तो पुलिस आई और जो लोग मेरे यहां रह रहे थे वो सब छोड़कर चले गए. दोबारा जब कंपनी आई तो हमने पुलिस से सम्पर्क किया. तब पुलिस की तरफ से कहा गया कि किसी को भी रखे उसका पहचान पत्र और हस्ताक्षर कराकर थाने में जमा कर दें. हमने पुलिस के कहे के मुताबिक काम किया.’’

एमडी समद बताते हैं, ‘‘मेरे यहां इन्होंने सात के करीब कमरे इस बार लिए थे जिसमें 30-35 लड़के रहते थे. मेरे यहां लड़कियां नहीं रहती थी. यहां पास में ही नंदकिशोर राय का मार्किट है, वहीं पर सब ट्रेनिंग के लिए जाते थे. मुझे किराया लड़के ही देते थे. जैसे ही हालिया बवाल सामने आया हमने सबको हटा दिया.’’  

ओमकार नाथ पांडेय की शिकायत के बाद उत्तर प्रदेश के कुशीनगर, महाराजगंज और बिहार के सिवान और पूर्वी चम्पारण जिले के रहने वाले 70 के करीब युवाओं ने मुजफ्फरपुर के एसपी को लिखित में शिकायत दी. इस शिकायत में युवाओं ने बताया कि डीबीआर यूनिक ने नौकरी के नाम पर हमसे 21 से 23 हज़ार रुपये लिए हैं. मुजफ्फरपुर सेंटर पर जब पुलिस ने छापा मारा तो इसके संचालक विजय कुशवाहा, मोहम्मद इरफ़ान और अजीत कुमार सभी का पैसा लेकर भाग गए. खोजबीन के बाद पता चला कि वे हाजीपुर में अपना ऑफिस चला रहे हैं.

इस पत्र को लिखने वालों में एक राजन कुमार बताते हैं, ‘‘शिकायत के बाद भी हमें पैसे वापस नहीं मिले हैं. कंपनी फर्जीवाड़ा करके चली गई. पुलिस कोई कार्रवाई नहीं की.’’ 

चौथी एफआईआर- नौकरी के नाम पर झांसा

डीबीआर कंपनी पर चौथा मामला बिहार के ही दरभंगा जिल के विश्वविद्यालय थाने में 27 अगस्त 2023 में दर्ज़ हुआ. यह एफआईआर मोहम्मद हक़ साहेब नाम के 21 वर्षीय युवक की शिकायत के आधार पर दर्ज़ हुई थी.

मोहम्मद हक द्वारा दी गई शिकायत की प्रति

हक़ साहेब की कहानी बिलकुल ओमकार पांडेय जैसी ही है. ‘नौकरी के नाम पर झांसा देकर पैसा ठगी करने और बंधक बनाने के संबंध में’ लिखी शिकायत में झारखंड के साहेबगंज जिले के रहने वाले हक़ ने बताया कि उसे नौकरी देने के नाम पर अतहर शेख, खरौली इस्लाम और मोहम्मद शेख ने 16 हज़ार 500 रुपये ले लिए. उसके बाद 28 दिनों तक बंधक बनाकर रखा. नौकरी भी नहीं दी. मुझे बोला कि दो लड़कों को लाओ तो हम तुम्हारा पैसा वापस कर देंगे. मेरा आधार कार्ड और दूसरे दस्तावेज ले लिए. वहीं फर्जी कागज पर हस्ताक्षर करा लिए. मेरे जैसे कई और लड़कों को इन्होंने जाल में फंसाया हुआ है.’’

इस शिकायत के आधार पर बिहार पुलिस ने आईपीसी की 420, 347, 344 समेत अन्य धाराओं में मामला दर्ज किया.

हक़ इन दिनों मुंबई के चॉल में रहकर मज़दूरी करते हैं. जब हमने उनसे बात की तो बताया कि वे बेहद गरीब परिवार के रहने वाले हैं. हक बताते हैं, “मेरी कमाई से ही घर चलता था. फेसबुक के जरिए एक लड़के का मुझे मैसेज आया. उसने कुछ दिनों तक खूब ढंग से बात की. दोस्ती जैसी हो गई. फिर उसने डीबीआर के बारे में बताया. उसने बताया कि यहां दवाई का काम है. महीने के 20-22 हज़ार कमा लोगे. मेरे पास पैसे नहीं थे तो मैं अपनी मां का नथ गिरवी रखकर दस हज़ार रुपये लेकर गया. मुझे दरभंगा में रखा गया. वहां जितने लड़के थे, ज़्यादातर पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे. मेरा घर पश्चिम बंगाल के पास पड़ता है. कुछ सीनियर जो वहां काम करते थे, उनके घर मैंने देखे थे. उनका घर-घर ठीक-ठाक नहीं है लेकिन यहां गाड़ी से आते थे. बड़ी-बड़ी बातें करते थे.”

बाकियों की तरह हक़ से भी और लोगों को जोड़ने के लिए कहा जाने लगा. लेकिन उन्हें कुछ दिनों में ही अंदाजा हो गया था कि वो फंस गए हैं. उन्हें कभी दवाई बेचने के लिए नहीं दी गई. कुछ दवाइयां जो एक्सपायर हो चुकी थी वो उन्हें दी गई थी. हक से कहा गया कि दो लोगों को जोड़ोगे तो प्रति व्यक्ति दो हज़ार रुपये मिलेंगे.  

हक़ कहते हैं, ‘‘30 दिन पूरा होने पर जब मैंने वेतन मांगा तो मुझे धमकी देने लगे और मारने-पीटने लगे. फिर मौका देखकर मैं वहां से भाग निकला. मैं आगे-आगे भाग रहा था मेरे पीछे-पीछे जो लड़का मुझे लाया था, वो रोकने के लिए दौड़ रहा था. रास्ते में मेरी मुलाकात एक पत्रकार से हुई. उन्होंने मुझसे रोककर सब बातें पूछी. मैंने उनसे जो हुआ, सब बताया. वो मुझे थाने लेकर गए और एफआईआर दर्ज हुई. जो लड़का मुझे लेकर गया था, उसे जेल भेजा गया.’’

हक़ न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए भावुक हो जाते हैं. कहते हैं, ‘‘जब मैं घर लौटकर आया तो मेरे घर पर एक चावल का दाना नहीं था. मेरी मां का एक गहना था, वो मैं एक साल बाद, दस दिन पहले ही छुड़ा पाया हूं. 10 हज़ार की जगह 15 हज़ार रुपये देने पड़े. बहुत गलत जगह फंस गया. मुझे बस यह सुकून है कि मैंने किसी और इस जाल में नहीं फंसाया. ये लोग गरीबों को ही टारगेट करते हैं.’’

पांचवीं एफआईआर- पैसे मांगने पर जान से मारने की धमकी 

डीबीआर कंपनी पर बिहार में पांचवीं एफआईआर 5 नवंबर 2023 को गोपालगंज जिले में हुई. यह एफआईआर पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के रहने वाले 21 वर्षीय अस्तकार आलम और 22 वर्षीय शुभम शेख ने दर्ज कराई है. जिसका विषय है, ‘‘डीबीआर में काम कराकर रुपये नहीं दिए जाने तथा रुपये की मांग करने पर जान से मारने के संबंध में.’’    

एफआईआर के मुताबिक, इन दोनों को दवाई पैकेजिंग के नाम पर बुलाया गया था. यहां आने के बदले 25 हज़ार रुपये ले लिए गए. इसके अलावा 5-5 हज़ार रुपये हर महीने खाने रहने के लिए लिया जा रहा था. कुछ दिनों बाद इन पर और लोगों से ठगी करने के उद्देश्य से दबाव बनाया जाने लगा. दोस्तों को बुलाने के लिए कहने लगे. जब इन लोगों ने यहां से जाने की बात की जान से मारने की धमकी दी गई. चार-पांच महीने काम करने के बाद भी इन्हें एक रुपया नहीं दिया गया.

इन दोनों की शिकायत के बाद गोपालगंज पुलिस ने आईपीसी की धारा 384, 386, 420, 34 के तहत मामला दर्ज़ किया और जमाद शेख और केशव रजक समेत अन्य को आरोपी बनाया. 

हमने इन सभी मामलों को लेकर डीबीआर कंपनी के मालिक मनीष सिन्हा से भी संपर्क किया है. अगर उनका जवाब आता है तो उसे बाद में ख़बर में जोड़ दिया जाएगा. साथ ही न्यूज़लॉन्ड्री से गिरिराज सिंह से भी संपर्क किया है. उनका भी अगर कोई जवाब आता है तो उसे ख़बर में जोड़ दिया जाएगा.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

इस शृंखला की अगली रिपोर्ट में पढ़िए कैसे डीबीआर में लड़कियों का शारीरिक और मानसिक शोषण होता था. कैसे डीबीआर ने सरकार को भी गलत जानकारी दी.

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