कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों ने स्वतंत्र पत्रकार रेजाज़ एम शीबा सिद्दीक के खिलाफ मामला दर्ज किए जाने के लिए केरल सरकार की निंदा की है. शीबा सिद्दीक की एक रिपोर्ट मकतूब मीडिया पर प्रकाशित हुई थी. जिसके बाद पुलिस ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज कर लिया.
इन लोगों की ओर से जारी संयुक्त बयान में केरल सरकार की आलोचना की गई है. साथ ही इसे अभिव्यक्ति और मीडिया की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप बताते हुए केरल सरकार की तुलना भाजपा की केंद्र सरकार से की गई है. बयान में कहा गया, "इस मामले में स्वत: संज्ञान लेकर राज्य सरकार की कार्रवाई बेहद अलोकतांत्रिक और प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है."
संयुक्त बयान पर 30 से अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किए, जिनमें पत्रकार, कार्यकर्ता, अर्थशास्त्री और अन्य लोग शामिल हैं. इसमें द टेलीग्राफ से आर राजगोपाल, मालाबार जर्नल से केपी सेतु नाथ, अर्थशास्त्री केटी राममोहन, लेखक और कार्यकर्ता सनी एम कपिकाड और अभिनेता जॉली चिरयथ भी शामिल हैं.
बयान में रेजाज़ के खिलाफ सरकार की कार्रवाई को "नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मीडिया की स्वतंत्रता में राज्य द्वारा घुसपैठ" बताया गया है.
इसमें कहा गया है, "राज्य सरकार, जो वामपंथी होने का दावा करती है, पुलिस और सरकार की आलोचना करने के लिए कार्यकर्ताओं और मीडियाकर्मियों के नागरिक अधिकारों को दबाकर केंद्र सरकार के समान पैटर्न का पालन कर रही है. केरल सरकार ‘न्यूज़क्लिक” के साथ खड़े’ होने का दावा भले ही करती हो लेकिन उसने रेजाज़ की प्रेस की स्वतंत्रता को कम कर दिया.”
बयान में आगे कहा गया है, “इस तरह का दोहरापन देश भर में बढ़ते फासीवाद विरोधी संघर्षों को कमजोर करेगा. वर्तमान, भारत में जब अधिकांश मुख्यधारा मीडिया गोदी मीडिया में तब्दील हो रहा है, केरल की एलडीएफ सरकार, जो केंद्र सरकार के शासन की तरह व्यवहार कर रही है, उसे सरकार से सवाल करने वाले मीडिया पर अपनी कार्रवाई बंद करनी चाहिए. लोगों के जानने के अधिकार को दबाना असंवैधानिक है.”
बयान में मांग की गई है कि एफआईआर रद्द की जाए और रेजाज़ के जब्त किए गए फोन को वापस किया जाए.
क्या है सिद्दीक की रिपोर्ट में?
30 अक्टूबर को प्रकाशित रेजाज़ की ख़बर केरल में कथित मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह के बारे में थी, जिसके कारण कलामासरी विस्फोटों के सिलसिले में कथित तौर पर बिना किसी सबूत के पांच मुस्लिम युवाओं को हिरासत में लिया गया था. इसके बाद 31 अक्टूबर को वडकारा पुलिस ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज कर लिया. पत्रकार पर समाचार रिपोर्ट में दंगा भड़काने के इरादे से उकसाने का आरोप लगाया है.
इससे पहले 16 नवंबर को पुलिस ने मामले के संबंध में मकतूब मीडिया के संपादक असलाह कय्यालक्कथ को बुलाया और पूछताछ की. पोर्टल के उप संपादक ने मीडिया से बातचीत में बताया कि एफआईआर "उनके मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह का सबूत" थी.
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