पिछले कुछ महीनों में कई सुर्खियों ने इस बात की ओर इशारा किया है कि भारतीय सेना आजकल उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के साथ अदालत में जूझ रही है.
इस खींचतान के केंद्र में वो ज़मीन है, जिसे आधिकारिक तौर पर सेना के फील्ड अभ्यास के लिए “अधिसूचित” बफर जोन के रूप में चिन्हित किया गया है. विवादों के बीच, इस ज़मीन का एक टुकड़ा अडाणी समूह की सहायक कंपनी, बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर से जुड़े लोगों द्वारा खरीदा गया था.
अब, जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष मामले की सुनवाई चल रही है तो न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला है कि सेना ने न्यायालय को बताया कि “अवैध” अतिक्रमण और “अनधिकृत” प्लॉटिंग की वजह से उसकी गतिविधियां “बहुत सीमित” हो गई हैं.
30 सितंबर को एक सुनवाई के दौरान सेना की ओर से दलील देने वाले कर्नल नवल जोशी ने कहा कि मांझा फील्ड फायरिंग रेंज का इस्तेमाल पहले बम, मिसाइल, मोर्टार और रॉकेट लॉन्चर सहित “क्षेत्रीय हथियारों” को फायर करने के लिए किया जाता था.
न्यायालय के आदेश के अनुसार जोशी ने कहा कि “क्षेत्रीय हथियारों का उपयोग काफी सीमित कर दिया गया है” और उन्होंने “अवैध ढांचों को तत्काल ध्वस्त करने” की मांग रखी.
हालांकि, मामले की अगली सुनवाई अब दिसंबर में है, लेकिन ये जानकारी सेना की बढ़ती हताशा को दिखाती है. सेना ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश के अधिकारियों ने उनकी शिकायतों को “अनसुना” कर दिया.
अडाणी ज़मीन और डिनोटिफिकेशन
कहानी नवंबर में अडाणी समूह की एक सहायक कंपनी द्वारा अयोध्या में 1.4 हेक्टेयर जमीन और बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर के सहयोगियों के मांझा जमथरा में खरीदने के बाद शुरू हुई. द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार, यह राम मंदिर के अभिषेक से ठीक दो महीने पहले की बात है, जो यहां से 6 किलोमीटर दूर है.
यह खरीद इसलिए भी दिलचस्प थी क्योंकि यह जमीन सरयू नदी के पास, अयोध्या छावनी में बफर जोन के रूप में अधिसूचित 14 गांवों का हिस्सा है.
जनवरी 2021 में, 13,391 एकड़ में फैले गांवों को पहली बार राज्य सरकार द्वारा युद्धाभ्यास फील्ड फायरिंग और आर्टिलरी प्रैक्टिस एक्ट 1938 की धारा 9(2) के तहत अधिसूचित किया गया था, जिसका अर्थ है कि इस क्षेत्र में कोई भी नागरिक ढांचा खड़ा नहीं किया जा सकता. ये नोटिफिकेशन, 2025 तक ख़त्म होने वाले पांच सालों के लिए था. केंद्रीय रक्षा मंत्रालय द्वारा 13 सितंबर को केंद्र सरकार के वकील वरुण पांडे द्वारा दायर हलफनामे के अनुसार, "आम नागरिकों को गोलीबारी के दौरान किसी भी अप्रिय घटना से सुरक्षित रखने" के लिए ऐसा किया गया था.
फायरिंग रेंज सिर्फ़ सेना के लिए ही नहीं बल्कि अर्धसैनिक बलों, जैसे सशस्त्र सीमा बल, सीमा सुरक्षा बल और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, साथ ही पुलिस के लिए भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है.
इसके बावजूद 1.4 हेक्टेयर जमीन की बिक्री नवंबर 2023 में हुई.
इसलिए दिसंबर में, सेना ने जिला मजिस्ट्रेट नितीश कुमार और उत्तर प्रदेश पुलिस को एक पत्र भेजा जिसमें कहा गया कि “अनधिकृत प्लॉटिंग” के खिलाफ कार्रवाई की जाए, प्लॉटिंग यानी किसी खास उद्देश्य के लिए जमीन के टुकड़े को चिह्नित करना और मापना.
लेकिन इस साल 30 मई को राज्य सरकार ने चुपचाप मांझा जमथरा को गैर-अधिसूचित(डीनोटिफाई) कर दिया.
इस कथित अतिक्रमण का स्वतः संज्ञान लेते हुए उच्च न्यायालय इस साल अप्रैल से मामले की सुनवाई कर रहा है. अयोध्या के एक वकील प्रवीण कुमार दुबे जुलाई में मामले में मध्यस्थ बन गए.
‘अनसुनी’ शिकायतें?
30 सितंबर को हुई सुनवाई के दौरान सेना ने आरोप लगाया कि “अवैध” निर्माणों में होटल, स्कूल, एक पॉलिटेक्निक कॉलेज और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की सड़क शामिल है. सेना ने अयोध्या जिला प्रशासन और विकास प्राधिकरण, व यूपी सरकार पर इस संबंध में शिकायतों की अनदेखी करने का आरोप लगाया.
इसी सुनवाई में यूपी सरकार के विशेष सचिव जुहैर बिन सगीर ने कहा कि मांझा जमथरा को डीनोटिफाई करने का प्रस्ताव अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट नितीश कुमार ने रखा था. उन्होंने यह भी कहा कि “शेष 13 गांवों में से किसी को भी डीनोटिफाई करने का ऐसा कोई प्रस्ताव जिला मजिस्ट्रेट से प्राप्त नहीं हुआ है.”
यह पहली बार नहीं है जब सेना ने अयोध्या में अवैध संरचनाओं पर रोशनी डाली है. पिछले साल फरवरी में सेना ने जिला मजिस्ट्रेट नितीश कुमार को एक पत्र लिखकर इन्हें हटाने के लिए कहा था.
इसके बाद जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला और राजन रॉय की पीठ ने अयोध्या विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया कि वह सेना से अनापत्ति प्रमाण पत्र यानी एनओसी प्राप्त करने के बाद ही नए निर्माण के लिए “नक्शा” जारी करने की अनुमति दे. यह स्पष्ट नहीं है कि सेना की अनुमति सभी 14 गांवों के लिए ज़रूरी है या मांझा जमथरा को छोड़कर बाकी 13 गांवों के लिए. अगर ये 14 गांवों के लिए है तो तीनों कंपनियों- अडाणी की सहायक कंपनी, बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर के सहयोगियों को एनओसी के लिए सेना से संपर्क करना होगा.
अदालत ने अयोध्या विकास प्राधिकरण की मंजूरी के बिना मंजूर हुए ढांचों या इमारतों की जांच करने का काम भी “संबंधित अधिकारियों” पर छोड़ दिया.
यह ध्यान देने वाली बात है कि अप्रैल में राज्य सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि 2021 में उनकी अधिसूचना के बाद से 14 गांवों में कोई निर्माण नहीं हुआ है. सरकार ने यह भी कहा कि 1938 के अधिनियम के तहत अधिसूचित भूमि पर नागरिक संरचनाएं नहीं खड़ी की जा सकतीं.
फिर भी कर्नल जोशी ने 30 सितंबर को अदालत को बताया कि गांवों की 2021 की अधिसूचना के बावजूद, “अधिसूचित क्षेत्र के भीतर कुछ निर्माण हुए और इस संबंध में हुई शिकायतें जिले के अधिकारियों द्वारा अनसुनी कर दी गईं, चाहे वह भारतीय सेना द्वारा की गई हों या किसी और के.
अदालत के आदेश में कहा गया है कि कर्नल जोशी ने “बहुत ही निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत किया है कि ये ढांचे, जो बाद में खड़े किए गए हैं, उन्होंने सेना के फायरिंग अभ्यास में बाधा डाली है”.
यह पहली बार नहीं है जब सेना ने अयोध्या में अवैध संरचनाओं पर रोशनी डाली है. पिछले साल फरवरी में सेना ने जिला मजिस्ट्रेट नितीश कुमार को एक पत्र लिखकर इन्हें हटाने के लिए कहा था.
पिछले अगस्त में अधिवक्ता दुबे द्वारा दायर एक आरटीआई के अनुसार, अतिक्रमण हटाने का अधिकार जिला प्रशासन के पास है. दुबे ने 21 नवंबर को उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की थी, जिसमें अधिसूचित रक्षा विभाग की ज़मीन से अतिक्रमण हटाने की मांग की गई थी. इसके तीन दिन बाद, लखनऊ पीठ ने अयोध्या विकास प्राधिकरण से “भूमि के मालिकाना हक के उचित सत्यापन के बिना योजनाओं को मंजूरी नहीं देने” के लिए कहा था. पीठ ने प्रशासन से अतिक्रमण हटाने में सेना की मदद करने के लिए भी कहा था.
महीनों बाद, फरवरी में, जिला मजिस्ट्रेट ने रक्षा भूमि से अतिक्रमण की पहचान करने और उसे हटाने के लिए एक समिति बनाई. लेकिन न्यूज़लॉन्ड्री को पता चला है कि इस मामले में बहुत कम काम हुआ है.
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