लोकसभा चुनाव के चार चरणों का मतदान हो चुका है. पांचवें के लिए चुनाव प्रचार जारी है. बिहार की बात करें तो यहां एनडीए गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे दिग्गज नेता चुनाव प्रचार कर रहे हैं. वहीं, इंडिया गठबंधन की तरफ अकेले तेजस्वी यादव मोर्चा संभाले नजर आ रहे हैं. वह अब तक सैंकड़ों रैलियों/जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं. तेजस्वी की भाषा में कहें तो उन्होंने अपने हेलिकॉप्टर को ट्रैक्टर बना दिया है.
ऐसे में हमने तेजस्वी यादव, उनकी चुनावी रणनीति और उनके सामने आ रही चुनौतियों पर बात करेंगे.
तेजस्वी ने साल 2015 में अपने पिता लालू प्रसाद यादव की छत्रछाया में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान राजनीतिक डेब्यू किया. उन्होंने भाजपा को इस दौरान तगड़ी चुनौती पेश की. इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने 10 लाख सरकारी नौकरी को मुद्दा बनाकर चुनावी कैंपेन किया. जिसका नतीजा यह हुआ कि राष्ट्रीय जनता दल 23.5% वोट शेयर और 75 सीटों के साथ बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बन गई. यह तब हुआ जब केंद्र में मोदी और बिहार में नीतीश कुमार दोनों सत्ता में थे.
हालांकि, इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव एक भी लोकसभा सीट नहीं निकाल पाए थे. वहीं, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने बिहार की 40 में से 39 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
लेकिन इस बार मुकाबला 2019 से काफी अलग नजर आ रहा है. तेजस्वी यादव कहते हैं, “2019 में पुलवामा हमले के सेंटीमेंट की वजह से भाजपा को काफी सीटें मिल गई थी लेकिन इस बार की लड़ाई रोजगार, शिक्षा और गरीबी पर है. इसलिए इस बार बिहार से चौंकाने वाले नतीजे आएंगे.”
वहीं, भाजपा ने इस बार बिहार की सभी 40 सीटों पर जीत का नारा दिया है. भाजपा और उसकी गठबंधन की सहयोगी जेडीयू अपने चुनाव प्रचार में साल 2005 से पहले के कथित जंगलराज बनाम अब के बिहार को मुद्दा बनाने में जुटी हैं. वहीं, तेजस्वी यादव एक बार फिर रोजगार और महंगाई को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं.
तेजस्वी अपनी हर रैली में कहते हैं कि वो जब 17 महीने के लिए बिहार के उपमुख्यमंत्री थे 5 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देने का काम किया. वह दावा करते हैं कि अगर केंद्र में इंडिया गठबंधन की सरकार बनेगी तो पूरे देश में एक करोड़ युवाओं को सरकारी नौकरी दी जाएगी. इसके अलावा बिहार में इंडस्ट्री लगाने और स्वास्थ्य, चिकित्सा और गरीबी जैसी समस्याओं को दूर करने की बात करते हैं.
भव्य मंच बनाम जनता का जमावड़ा
एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी की रैलियों में मंच और पंडाल काफी भव्य और सुव्यवस्थि होता है. वहीं, जनता के बैठने के लिए कुर्सियां और गर्म मौसम में ठंडक पहुंचाने के लिए कूलर और पंखों का भी इंतजाम होता है.
दूसरी ओर तेजस्वी यादव की रैलियों में मंच अपेक्षाकृत छोटा होता है. साथ ही इंतजाम भी काफी सामान्य से नजर आते हैं. हालांकि, भीड़ और उत्साह इन रैलियों में अलग ही नजर आता है.
इसके पीछे वजह बताते हुए तेजस्वी कहते हैं कि भाजपा के पास करोड़ों रुपये का चुनावी चंदा है लेकिन हमारे पास उतने संसाधन और पैसा नहीं है.
फंड की कमी के अलावा भी तेजस्वी यादव के सामने परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोपों सहित पिता लालू प्रसाद यादव द्वारा विरासत में मिली चुनौतियां भी हैं.
ऐसे में सवाल यही है कि क्या इन सब चुनौतियों के साथ तेजस्वी भाजपा को शिकस्त दे पाएंगे.
देखिए हमारी ये वीडियो रिपोर्ट.
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