लोकसभा चुनाव यानि लोकतंत्र का महापर्व. लेकिन इस महापर्व में बीते कुछ सालों में तेजी से उभरे सोशल मीडिया के पत्रकार क्या ठीक से आहूति डाल पा रहे हैं. या फिर उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. चुनाव में उनकी कमाई का जरिया क्या है, विज्ञापन या कुछ और?
इन्हीं कुछ सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमने अमरोहा, मुरादाबाद, बिजनौर और नगीना लोकसभा क्षेत्रों का दौरा किया. हमने पाया कि कि कई यूट्यूबर्स भीषण परेशानियों और शासन-प्रशासन के कथित दबाव से गुजर रहे हैं. वहीं काफी यूट्यूबर्स की इस लोकसभा चुनाव में चांदी काट रहे हैं.
इस सफर में हमें कई ऐसे पत्रकार मिले जिनका कहना है कि वह सिर्फ फेसबुक और यूट्यूब के जरिए होने वाली कमाई पर ही निर्भर हैं. वहीं, कई यूट्यूबर्स पत्रकारों ने कहा कि वह प्रत्याशियों से मिलने वाली मदद और स्थानीय लोगों से मिलने वाले विज्ञापनों पर निर्भर हैं.
मुरादाबाद में हमारी मुलाकात आकिल रजा और सुशील कुमार से हुई.
आकिल रजा ने साल 2019 में एआर न्यूज़ नाम से यूट्यूब चैनल शुरू किया था. फिलहला उनके चैनल पर 1.5 मिलियन सब्सक्राइबर हैं.
रजा कहते हैं, “पहले यूट्यूब और फेसबुक से जितनी कमाई होती थी वह उतनी नहीं होती है. हमारी कमाई और रीच दोनों घट रही हैं. लेकिन फिर भी जहां मेनस्ट्रीम मीडिया नहीं जाता है वहां हम जाते हैं.”
सुशील कुमार नेशनल इंडिया न्यूज़ (एनआईएन) यूट्यूब चलाते हैं. इस चैनल के 20 लाख सब्सक्राइबर हैं.
कुमार कहते हैं कि हम यूट्यूबर हैं इसलिए हमारी पहुंच बड़े नेताओं तक नहीं है. हमारा ज्यादा फोकस पब्लिक ओपिनियन पर ही रहता है. हमारे पास संसाधनो की कमी है इसलिए हम सिर्फ पब्लिक सर्वे की रिपोर्ट करते हैं.
वह आगे कहते हैं, “यूट्यूबर को पत्रकारिता में बहुत कम आंका जाता है. हमें उतनी तवज्जों नहीं मिलती, जितनी मेनस्ट्रीम के पत्रकारों को मिलती है. हम भले ही कितनी मेहनत कर लें. एक यूट्यूबर को चुनाव प्रत्याशी से 500 से 2000 रुपये तक मदद मिलती है. वहीं, कई यूट्यूबर पार्टियों के लिए भी काम करते हैं जो कि मोटी रकम लेते हैं.”
मुरादाबाद के बाद हम धामपुर पहुंचे. धामपुर बिजनौर जिले और नगीना लोकसभा का हिस्सा है. नगीना से आजाद समाज पार्टी से चंद्रशेखर आजाद, इंडिया गठबंधन से पूर्व जज मनोज कुमार, भाजपा से ओम कुमार और सुरेंद्र पाल सिंह मैनवाल बहुजन समाज पार्टी से चुनावी मैदान में हैं.
देर शाम को गठबंधन के प्रत्याशी मनोज कुमार के कार्यालय पर दर्जनों यूट्यूबर्स जमा हैं. कुछ देर पहले ही मनोज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है. इस बीच कार्यलय पर मौजूद व्यक्ति रजिस्टर में सबके नाम लिख रहा है. वह एक-एक करके सबको बुला रहा है. दरअसल, यहां कवरेज के बाद यूट्यूबर्स को ‘लिफाफे’ दिए जा रहे हैं.
इस दौरान कुछ पत्रकार एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए भी नजर आए कि मेनस्ट्रीम मीडिया के पत्रकारों को अंदर कमरे में बैठाकर चाय नाश्ता कराया जा रहा है और उन्हें बाहर खड़ा किया गया है. उन्हें रुपये भी ज्यादा दिए जा रहे हैं.
स्थानीय पत्रकार निधि शर्मा, जो कि सिटी न्यूज़ नाम से एक यूट्यूब चैनल चलाती हैं. वह कहती हैं कि जहां नेशनल मीडिया नहीं पहुंचता है वहां यूट्यूबर पहुंच जाते हैं. हम पूरा साल ग्राउंड पर रहते हैं जबकि मेनस्ट्रीम के पत्रकार सिर्फ चुनावी मौसम में ही ग्राउंड पर उतरते हैं.
स्थानीय पत्रकार और न्यूज़ इंडिया टूडे नाम से यूट्यूब चलाने वाले शमीम अहमद कहते हैं, “यूट्यूबर ग्राउंड पर जितने मुद्दे उठाता है उतने मेनस्ट्रीम मीडिया नहीं उठाता है. इसके बावजूद यूट्यूबरों की स्वतंत्रता को दबाने के लिए उन पर मुकदमे किए जा रहे हैं.”
बातचीत के दौरान स्थानीय पत्रकार शफाकत एस भारती कहते हैं, “यहां पत्रकारों की भीड़ सिर्फ इसलिए नहीं आ रही कि उन्हें प्रत्याशी से कुछ मदद मिल जाए यानी लिफाफा मिल जाए बल्कि इसलिए आ रहे हैं कि उनकी जान- पहचान बन जाए और कल को कोई ठेका वगैरह मिल जाए. इसलिए इनकी नजर सिर्फ लिफाफे पर ही नहीं है बल्कि ठेकेदारी पर भी है.”
देखिए चुनावों के बीच चुनौतियों और चांदी पर यूट्यूबर्स की पड़ताल करती हमारी ये वीडियो रिपोर्ट.
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