महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में किसानों की आत्महत्याएं एक चिंताजनक स्थिति है लेकिन चुनावी मुद्दों की फेहरिस्त से ये मामला गायब नजर आता है. किसानों की आय दोगुनी से लेकर उनके अच्छे दिन लाने के वादे तो हो रहे हैं लेकिन चुनावों में कोई भी किसानों की खुदकुशी के पीछे की वजह जानने की कोशिश नहीं कर रहा है.
परभणी जिले के झोलापिपरी गांव के निवासी सुरेश नागरे ने बीते 26 अक्टूबर को कथित तौर पर आर्थिक हालातों और कर्ज से तंग आकर खुदकुशी कर ली. उनकी पत्नी बताती हैं, "100 रुपये प्रतिदिन कमाना भी मुश्किल हो गया था."
एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल जनवरी से जून के बीच मराठवाड़ा में कम से कम 430 किसानों ने आत्महत्या की यानी हर दिन दो किसान फंदे पर झूल गए. इनमें बीड़ इलाके से सबसे ज़्यादा 110 किसानों ने खुदकुशी की. न्यूज़लॉन्ड्री ने गरीबी में जी रहे ऐसे कई किसान परिवारों से मुलाकात की. उनमें से कई ने फसल की बर्बादी, अपनी बेटियों की शादी के लिए कर्ज और वित्तीय संकट को किसानों के इस कदम के लिए जिम्मेदार ठहराया.
कई युवा किसानों ने कहा कि वे अपने लिए जीवनसाथी नहीं ढूंढ पा रहे हैं क्योंकि "अब लोग अपनी बेटियों की शादी किसानों से नहीं करना चाहते." ऐसे ही एक किसान उमेश ने बताया कि पिछले साल उनकी फसल का 50,000 रुपये का नुकसान हुआ था, लेकिन प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत उन्हें बीमा मुआवजे के रूप में केवल 203 रुपये मिले. एक किसान परिवार ने स्थानीय साहूकार द्वारा दबाव डाले जाने की बात भी कही.
देखिए मराठवाड़ा के किसानों पर हमारी ये खास रिपोर्ट.
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