दंतेवाड़ा जिले का नीलावाया गांव. साल 2018 के विधानसभा चुनाव के समय इसी गांव में माओवादियों के हमले में दूरदर्शन के कैमरामैन अच्युतानंद साहू की मौत हो गई थी. वहीं दो लोग घायल हुए थे. दंतेवाड़ा शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर इस गांव से पांच किलोमीटर पहले तक सड़क ठीक है, लेकिन उसके बाद सड़क नहीं बस एक कच्चा सा रास्त बचता है. जैसे तैसे हम इस रास्ते से गांव तक पहुंचते हैं.
इस गांव के लोगों ने आखिरी बार साल 2003 के विधानसभा चुनाव में मतदान किया था. उसके बाद से यहां मतदान नहीं हुआ है. तब मतदान केंद्र पांच किलोमीटर दूर अरबे में बनता था. इस बार प्रशासन की तरफ से जानकारी आई कि इसी गांव में मतदान होगा तो लोग खुश हुए. लेकिन अभी तक यहां न कोई अधिकारी पहुंचे हैं और ना ही वोट मांगने वाले नेता. ऐसे में गांव वाले मायूस होने लगे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि शायद ही गांव में मतदान हो पाए.
दरअसल, छत्तीसगढ़ की प्रमुख निर्वाचन पदाधिकारी रीना कंगाले ने 26 अक्टूबर को मीडिया से बात करते हुए कहा था कि 2018 के विधानसभा चुनाव में लगभग 4800 मतदान केंद्र बस्तर संभाग में थे. इस बार हमने इसकी संख्या में बढ़ोतरी करते हुए 400 नए मतदान केंद्र स्वीकृत किए हैं. इसमें से 126 मतदान केंद्र ऐसे गांवों में स्थापित किए हैं, जहां आजादी के बाद पहली बार लोग अपने गांव में ही मतदान करेंगे. नक्सलवाद की समस्या के कारण इन क्षेत्रों से हमें मतदान केंद्रों को दूर स्थापित करना पड़ता था. जिसके वजह से लोगों को आठ से दस किलोमीटर दूर जाना पड़ता.’’
सरकारी दावे के मुताबिक, इनमें कांकेर विधानसभा क्षेत्र के 15, अंतागढ़ में 12, भानुप्रतापुर में पांच, कोंटा विधानसभा में 20, चित्रकोट में 14, जगदलपुर में चार, बस्तर विधानसभा क्षेत्र में एक, कोंडागांव क्षेत्र में 13, केशकाल में 19, नारायणपुर में नौ, दंतेवाड़ा विधानसभा क्षेत्र में आठ और बीजापुर विधानसभा क्षेत्र में छह गांवों में मतदान कराए जाने की जानकारी सामने आई.
न्यूज़लॉन्ड्री की टीम यह जानने के लिए कि क्या सच में यहां आज़ादी के बाद पहली बार मतदान होने वाला है, दंतेवाड़ा और सुकमा के ऐसे ही दो गांवों में पहुंची. हमने इस दौरान जाना कि गांव के हालात क्या हैं और लोग मतदान को लेकर आशान्वित हैं. साथ ही ये भी पता लगाने की कोशिश की कि आखिर अब तक यहां वोटिंग क्यों नहीं हुई.
नीलावाया: दंतेवाड़ा जिला
पहली बात मतदान कराए जाने को लेकर संभावित जिन 126 गांवों की सूची साझा की गई थी, उसमें दंतेवाड़ा का नीलवाया भी शामिल है. हालांकि, जब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम गांव में पहुंची तब यहां के सरकारी स्कूल में मतदान को लेकर कोई तैयारी नजर नहीं आई.
यहां हमारी मुलाकात 23 वर्षीय महेश से हुई. 12वीं के बाद महेश की पढ़ाई छूट गई. वे अपने साथ हमें स्कूल लेकर गए. स्कूल बंद था. देखकर नहीं लग रहा था कि यहां मतदान केंद्र बनाया जाने वाला है. क्योंकि जिन स्कूलों में मतदान केंद्र बनाए जाते हैं, वहां इससे जुड़ी सूचना लिखी जाती है. जैसे कि बूथ का नंबर क्या है और कितने मतदाता यहां मतदान करने वाले हैं.
महेश बताते हैं कि हमारे गांव में आखिरी बार चुनाव 2003 में हुआ था. उसके बाद उधर (जंगल की तरफ इशारा करते हुए कहते है) के लोगों और पुलिस के बीच संघर्ष बढ़ा और यहां मतदान होना बंद हो गया. गांव का बूथ यहां से पांच किलोमीटर दूर है. इस कारण कोई मतदान करने जाता ही नहीं है. हालांकि, कहीं भी मतदान हो मैं तो इस बार वोट करने जाऊंगा.
इस गांव में मतदाताओं की संख्या 500 के आसपास है. गांव के सरपंच रमेश कोरम हमें एक हैरान करने वाली बात बताते हैं. वो कहते हैं, "साल 2003 के बाद उन्होंने या उनके गांव वालों ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कभी मतदान नहीं किया."
कोरम की इस बात को उनके पास में बैठे भीमा रामकुरा भी समर्थन देते हैं. वे कहते हैं, “मतदान केंद्र इतना दूर होता है कि बड़े बुजुर्ग तो जा ही नहीं सकते हैं. इसलिए हम भी वहां नहीं जाते हैं.”
सरपंच आगे बताते हैं, “पहले यहां (गांव में) आने के लिए सड़क थीं. नक्सलियों ने उसे तोड़ दिया और बाद में पुलिस वालों ने पूरी तरह खत्म कर दिया. गांव आते हुए रास्ते में छोटी नदी पड़ती है. उस पर पुल था, उसे भी तोड़ दिया गया. अब गांव में गाड़ियां नहीं आ सकती हैं.”
छत्तीसगढ़ कांग्रेस का दावा है कि उन्होंने तेंदू पत्ता के मजदूरों को मिलने वाला पारिश्रमिक बढ़ा दिया है. इसके लिए खूब जोर-शोर से प्रचार भी किया जा रहा है. अलग-अलग जगहों पर पोस्टर लगे नजर आते हैं. जिसमें लिखा होता है कि तेंदू पत्ता संग्रहण परिश्रमरिक दर 2500 से बढ़ाकर 4500 रुपये कर दिया गया है. लेकिन नीलवाया गांव के लोग इस बात इनकार करते हैं.
हालांकि, कुछ योजनाएं गांव तक पहुंचीं हैं. उन्हीं में एक कांग्रेस सरकार द्वारा बेरोजगारों को दिया जाने वाला भत्ता है. महेश और उनके दो अन्य साथियों को बेरोजगारी भत्ता मिलता है.
महेश जैसे अन्य युवक भी इस बार वोट डालने की बात करते नजर आते हैं. गौरतलब है कि इस सबके बावजूद किसी भी पार्टी का नेता यहां वोट मांगने नहीं पहुंचा है. गांव वाले बताते हैं कि यह पहली बार नहीं है जब ऐसा हुआ हो. इससे पहले हुए चुनावों में भी कोई उम्मीदवार वोट मांगने नहीं आया था. इसके पीछे बड़ी समस्या नक्सलियों का डर है. दंतेवाड़ा में कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवार जंगल क्षेत्र में जब भी वोट मांगने जाते हैं, उनके साथ करीब 150 सुरक्षाकर्मी होते हैं.
भाजपा के एक स्थानीय नेता बताते हैं, ‘‘एक दिन हमारे उम्मीदवार को सुरक्षा मिलती है तो दूसरे दिन कांग्रेस के उम्मीदवार को. नक्सलियों ने चुनावों के बहिष्कार की घोषणा कर दी है. वो चुनाव के दौरान कोई न कोई वारदात करते ही हैं. हमने 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान अपने विधायक भीमा माण्डवी को खो दिया. ऐसे में हम लोग भी डर-डर के ही किसी क्षेत्र में जाते हैं.’’
भाजपा ही नहीं कांग्रेस नेता भी इसी तरह की बात करते नजर आते हैं. दंतेवाड़ा से कांग्रेस के उम्मीदवार छविंद्र कर्मा हैं. कर्मा के पिता महेंद्र कर्मा की हत्या नक्सलियों ने कर दी थी. झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले में कर्मा के साथ कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं की मौत हुई थी.
एक तरफ जहां भूपेश बघेल नक्सलवाद खत्म होने का दावा कर रहे हैं. वहीं, जब हमने छविंद्र से इसको लेकर सवाल किया तो उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.
आम आदमी पार्टी ने यहां से बल्लू भवानी को प्रत्याशी बनाया है. इनके कार्यकर्ता अंदर गांवों तक जा रहे हैं. आम आदमी पार्टी से जुड़े मासा राम, भवानी के लिए प्रचार करने इन गांवों में गए थे. वो बताते हैं कि उन्हें नक्सलियों ने रोक लिया और कहा कि अगली बार से इन गांवों में वोट मांगने मत आना.
ककाड़ी गांव: दंतेवाड़ा जिला
आजादी के बाद पहली बार गांव में ही बने केंद्र में मतदान करने वाले गांवों की सूची ककाड़ी का भी नाम है. यहां हालात नीलवाया से बेहतर नजर आते हैं. सड़क भी है तो साथ ही स्कूल में भी मतदान की तैयारियां नजर आती हैं.
दोपहर एक बजे के करीब न्यूज़लॉन्ड्री की टीम जब इस गांव में पहुंची तो यहां छह शिक्षक मौजूद थे. उनमें से एक कुर्सी पर ही सोते नजर आए तो बाकी अंदर चुनाव की तैयारी में लगे हुए थे.
यह भी अति संवेदनशील क्षेत्र घोषित है. नीलवाया की तरह यहां भी आखिरी बार चुनाव 2003 में हुआ था. एक ग्रामीण ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यहां एक बार नक्सलियों ने मतपेटी छीन ली थी. दिन भर अपने पास रखी और शाम को लौटा दी.
मात्र दो कमरों में यहां दो स्कूल चल रहे हैं. एक कमरे में ककाड़ी पटेल पारा के पहली से पांचवीं तक के बच्चे पढ़ते हैं. वहीं दूसरे कमरे में ककाड़ी गुंटा पारा के बच्चे पढ़ते हैं. ककाड़ी पटेल पारा स्कूल में पहली से पांचवी तक सिर्फ 9 छात्र हैं और उन्हें पढ़ाने के लिए चार शिक्षक हैं.
शिक्षक देव कुमार साहू बताते हैं कि वे सुबह गांव में बच्चों को पढ़ाई के लिए बुलाने गए थे लेकिन कोई आया नहीं.
यहां स्कूल पर बूथ संख्या और मतदाताओं की जानकारी लिखी नजर आती है. मतदान सुबह सात बजे से दोपहर तीन बजे तक होगा. जानकारी के मुताबिक, कुल मतदाताओं की संख्या 880 है. जिसमें से 427 पुरुष और 453 महिलाएं हैं.
यहां के लोग बीते साल तक मतदान के लिए अरनपुर जाते थे. जो इस गांव से 11 किलोमीटर दूर हैं. शिक्षक केशव एमला कहते हैं कि अरनपुर में मतदान होने के कारण बेहद कम लोग ही वहां जा पाते थे. नौजवान तो जाते थे लेकिन बुजुर्ग या महिलाएं नहीं जा पाती थीं. इस बार लग रहा है कि हमारे गांव में ही मतदान होगा.
शिक्षकों की मानें तो 2018 में नहाड़ी में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का कैंप स्थापित हुआ है. जिसके बाद से यहां नक्सलियों का प्रभाव कम हुआ है. हालांकि, यहां के लोग हमारी टीम को नक्सली शब्द इस्तेमाल करने पर टोकते हैं.
यहीं पढ़ाने वाली जानकी मरकम बताती हैं, ‘‘सरकारी राशन के लिए हमें दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. वहीं, अगर कोई बीमार पड़ जाए तो 12 किलोमीटर दूर समेली जाते हैं. सब कह रहे हैं कि मतदान करने जाएंगे लेकिन आगे देखते हैं क्या होता है.’’
ग्रामीणों में सुविधाओं और पुलिसिया कार्रवाई को लेकर खासी नाराजगी दिखती है. हम जब गांव में लोगों से बात करने पहुंचे तो हमारी मुलाकात जांगी से हुई.
25 वर्षीय जांगी अपने चार बच्चों के साथ रहती हैं. वोट देने के सवाल पर वह नाराज़ हो जाती हैं. वो कहती हैं कि मई महीने में पुलिस उनके पति समेत सात लोगों को घर से उठा ले गई. उनके पति सना कवासी को हाथ में गोली भी लगी थी.
जांगी कहती हैं, "मेरे पति ने कोई जुर्म नहीं किया था लेकिन नक्सली बताकर उन्हें जेल में डाल दिया गया. अगर वे (पुलिस) मेरे पति को वो छोड़ते हैं तभी मैं किसी को वोट दूंगी नहीं तो वोट देने नहीं जाऊंगी."
उनके साथ मौजूद एक अन्य महिला हमें उन लोगों के नाम बताती हैं जिन्हें पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इनमें सना सुरवा, सुक्का, हडमा और बंडी हेमला दंतेवाड़ा जेल में हैं. वहीं, राकेश और संतोष जगदलपुर जेल में बंद हैं.
नीलवाया के सरपंच ने भी हमसे बात करते हुए आरोप लगाया कि उनके गांव के भी तीन युवक बीते एक साल से और पांच युवक एक महीने से नक्सली होने के आरोप में जेल में बंद हैं जबकि वो मज़दूरी करते थे.
गांव के कुछ लोगों ने मतदान के बहिष्कार का भी फैसला किया है. आम आदमी पार्टी के नेता मासा जब यहां वोट मांगने पहुंचे तो सरपंच ने कहा था कि हम इस बार चुनाव का बहिष्कार कर रहे हैं.
गुफड़ी: सुकमा जिला
सुकमा जिला भी अतिसंवेदशील जिलों में से एक है. यहां तो नक्सलियों ने बाकयदा एक पर्चा जारी किया. जिसमें कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों के बहिष्कार का जिक्र है.
जिन गांवों में पहली बार मतदान होने की बात की गई थी, उसमें से सुकमा के करीब 20 गांव थे. इसमें से एक गांव गुफड़ी भी है. यहां भी मतदान केंद्र खोलने की बात हुई है लेकिन ऐसी तैयारी नजर नहीं आती है. सुकमा शहर से गुफड़ी के बीच की दूरी करीब 15 किलोमीटर है. यहां जाने के लिए हम निकले तो गांव से करीब पांच किलोमीटर दूर हमें बताया गया कि आगे गाड़ी से नहीं जा सकते हैं क्योंकि सड़क बेहद खराब है.
गुफड़ी में बीते 20 साल से पढ़ाने वाले शिक्षक महेंद्र कुमार बताते हैं, "गांव में मतदान कराने की बात हुई थी. एक रोज जिलाधिकारी देखने भी आए थे, लेकिन हमारे यहां के स्कूल की हालत ठीक नहीं है. साथ ही गांव जाने के लिए सड़क भी नहीं है. ऐसे में शायद यहां चुनाव नहीं होगा. अभी तक जो स्थिति है उसे देखते हुए लग रहा है कि मतदान कोंडरा में ही होगा."
गुफड़ी में 420 मतदाता हैं. जो लंबे समय से कोंडरा में ही मतदान करते हैं. कोंडरा यहां से करीब आठ किलोमीटर दूर है. यहीं पर हमारी मुलाकात गुफड़ी के रहने वाले नामित से होती है. वह अपने दोस्तों के साथ कोंडरा बाजार में मुर्गों की लड़ाई देख रहा था.
25 वर्षीय नामित न्यूज़लॉन्ड्री को अपने गांव के बारे में बताते हुए कहते हैं, ‘‘जिस गांव में सड़क तक नहीं पहुंची है, वहां पर विकास की बात करना बेमानी है. आप देखिए (मुर्गे की लड़ाई देख रहे लोगों की तरफ इशारा करते हुए) ये सब लोग बेरोजगार हैं. इसमें कुछ पढ़े लिखे भी हैं और कुछ अनपढ़ भी. लेकिन किसी के पास काम नहीं है. हमारे गांव में कोई बीमार हो जाए तो गांव से निकलने से पहले ही मर जाता है.’’
गांव की सरपंच मंजू, सीपीआई से जुड़ी हैं. न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहती हैं, "इस बार भी गांव में मतदान क्यों नहीं हो रहा इसका जवाब तो प्रशासन के लोग ही दे सकते हैं. वे कहती हैं कि गांव में सरपंच के अलावा दूसरे चुनाव के लिए कभी मतदान नहीं हुआ. लोग वोट डालना चाहते हैं, लेकिन मतदान केंद्र की दूरी के कारण नहीं दे पाते हैं."
मानकापाल: सुकमा जिला
मानकापाल भी उन्हीं गांव में एक है, जहां पहली बार मतदान कराए जाने की बात की जा रही है. हालांकि, ग्रामीणों की मानें तो साल 2008 तक यहां वोटिंग हुई है. फिर नक्सलियों के बढ़ते असर के कारण यहां मतदान रोक दिया गया. तब नक्सली दिन के समय भी गांव में बंदूक ताने घूमते रहते थे. लेकिन अब यहां से 500 मीटर दूर सीआरपीएफ का कैंप बन जाने के बाद से नक्सली नहीं आते हैं. जिससे कि फिर से यहां चुनाव कराना मुमकिन हो पाया है.
मानकापाल जाने का रास्ता अभी भी खराब ही है. हालांकि, निर्माण कार्य जारी है. यहां के स्कूल पर जब हम पहुंचे तो वहां दीवारों पर बूथ नंबर, चुनाव का समय और मतदाताओं की संख्या लिखी नजर आती है. जानकारी के मुताबिक, यहां मानकापाल, बोरीपारा और कुचारस के 593 मतदाता मतदान करेंगे. जिसमें से 330 पुरुष और 263 महिलाएं हैं.
यहां हमारी मुलाकात पुज्जा सोढ़ी से हुई. वो यहां के उप-सरपंच हैं. आखिरी बार मतदान कब हुआ था, ये पूछने पर बताते हैं, ‘‘2008 में यहां मतदान हुआ था. उसके बाद 2013 और 2018 में यहां नहीं हो पाया. यहां से 12 किलोमीटर दूर कोरा में मतदान होता था. लोग वहां मतदान के लिए नहीं जा पाते थे. सिर्फ जवान लोग ही जाते थे.’’
12 किलोमीटर दूर जब वोट देने जाना होता था तो कितनी वोटिंग हो पाती थी. इस सवाल पर सोढ़ी कहते हैं, "तब 200 से 300 लोग ही मतदान कर पाते थे. गांव में केंद्र होने पर मुझे लगता है कि 100 फीसदी मतदान होगा."
2008 के पहले सलवा जुडूम के चलते नक्सलियों और आदिवासियों के बीच हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगी. उसी हिंसा की चपेट में मानकापाल भी आया. नक्सली इस गांव तक पहुंच गए थे. सोढ़ी भी इसकी तरफ इशारा करते हैं लेकिन वो खुलकर बोल नहीं पाते हैं. उन्हें अभी भी नक्सलियों का डर है.
यह गांव दूसरे आदिवासी गांवों से अलग नजर आता है. यहां सरकारी विकास कुछ हद तक पहुंचा है. नल जल योजना के तहत, जगह-जगह पाइप तो लगे नजर आते हैं लेकिन अभी पानी की आपूर्ति शुरू नहीं हुई. आंगबाड़ी केंद्र बना हुआ है. वहीं, युवाओं को बेरोजगारी भत्ता भी मिलता है.
सोढ़ी कहते हैं कि अगर सड़क बन जाएगी तो विकास अपने आप यहां पहुंच जाएगा. इसके बाद हमारा मकसद है कि गांव में सरकारी राशन की दुकान खुले. अभी यह करीब दो किलोमीटर दूर है. हमारे यहां गोदाम तो बन गया है. सड़क बनते ही राशन की दुकान यहां आ जाएगी.
गांव की सरपंच पुष्पा सोढ़ी भी पुज्जो की बातों को दोहराती हैं. वो कहती हैं कि सड़क जल्दी बन आए तो हमें दूसरी परेशानियों से निजात मिले.
ऐसे में क्या हो पाएगा मतदान?
सुकमा में पिछले 15 सालों से पत्रकारिता कर रहे एक पत्रकार ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से सूची जारी कर दी लेकिन जिला प्रशासन ने सुरक्षा के हालात को देखते हुए उनमें से कुछ जगहों पर चुनाव कराने से इनकार कर दिया है.
असल में प्रशासन अभी उन्हीं जगहों पर चुनाव कराने को तैयार है, जहां तक सड़क पहुंच गई है. सड़क वहीं पहुंचीं है, जहां पर सुरक्षाबलों के कैंप हैं. बीते पांच सालों में 65 नए कैंप बस्तर क्षेत्र में बने हैं.
बस्तर रेज के आईजी सुंदर राज पी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, "हमने यह नहीं कहा था कि इन जगहों पर पहली बार मतदान हो रहा है. नक्सलवाद 2004 से 2015-16 तक चरम पर था. उस पर हम रोक लगाने में काफी हद तक सक्षम हुए हैं. जिसके कारण इन क्षेत्रों में वापस चुनाव कराने को तैयार हैं. मुझे भरोसा है कि जिन जगहों पर इस बार मतदान नहीं हो पा रहा वहां हम आगे चलकर कराने में सफल होंगे क्योंकि आम आदिवासियों के मन में यह बात आ गई है कि नक्सलवादी विकास विरोधी हैं.’’
वो आगे कहते हैं, ‘‘हमने 65 कैंप बनाये हैं. जिस कारण इसके आसपास से नक्सलियों का असर कम हुआ है. मैं कोई एक दिन तो नहीं बता सकता कि जब यहां से नक्सलवाद खत्म हो जाएगा लेकिन उनका दायरा सिकुड़ रहा है. कैंप बनने से सुरक्षा के साथ-साथ सड़कें और अन्य सुविधाएं भी पहुंचती हैं. जिससे स्थानीय निवासियों को ही लाभ होता है.’’
एक तरफ प्रशासन का दावा है कि नक्सली सिकुड़ते जा रहे हैं. वहीं, नक्सलियों ने चुनाव का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है. सुकमा और बीजापुर में इसको लेकर पर्चे बांटे गए. बीजापुर में तो नक्सलियों ने आईईडी ब्लास्ट भी किया. इसमें एक बीएसफ के जवान घायल हुए हैं. वहीं, कांकेर में तीन ग्रामीणों का अपहरण कर उनकी हत्या कर गांव में फेंक दिया.
नक्सलियों की इन हरकतों पर सुंदर राज पी कहते हैं, ‘‘वो कुछ कर नहीं पा रहे हैं, इसी फ्रस्ट्रेशन में आम निवासियों को मार रहे हैं. जहां तक रही बहिष्कार की बात तो जनता भी मतदान करना चाहती है और हम भी इसके लिए तैयार हैं."
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