तीसरे चरण के लोकसभा चुनावों में संस्कृत एक्टिविस्ट और पूर्व सांसद की पत्नी समेत कुल 12 दलबदलू उम्मीदवार हैं. नौवें और दसवें भाग में हमने गुना की सीट और एनडीए के 5 पाला बदलने वाले उम्मीदवारों के बारे में बात की थी.
इस भाग में हम इंडिया गुट के शेष पांच पाला बदलने वाले उम्मीदवारों पर बात करेंगे.
गुड्डू राजा बुंदेला: उत्तर प्रदेश के बाहुबली, ग्रेनाइट माफिया
चंद्र भूषण सिंह बुंदेला को गुड्डू राजा बुंदेला के नाम से जाना जाता है. वे मध्य प्रदेश के सागर सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं.
50 वर्षीय बुंदेला पहले बहुजन समाज पार्टी में थे. बीते विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस पार्टी का हाथ थाम लिया. वे अपना व्यवसाय कृषि और व्यापार बताते हैं और बुंदेलखंड के बाहुबली के रूप में उनकी पहचान है. उत्तर प्रदेश से मध्य प्रदेश की राजनीति में कूदते वक्त अपने हजारों समर्थकों के काफिले के साथ बुंदेला भोपाल में कांग्रेस में शामिल हुए.
2007 और 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के दौरान उन्होंने समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ा था पर हार गए. टिकट न दिए जाने के बाद वे बसपा में चले गए. 1996 से भाजपा के कब्जे में पड़ी सागर सीट से वे उम्मीदवार हैं.
चुनावों में बुंदेला के असफल प्रयासों के बावजूद उनका परिवार हिन्दीपट्टी में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली रहा है. उनके पिता क्षत्रप सुजान सिंह बुंदेला पूर्व में 2 बार कांग्रेस के सांसद रहे और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के करीबी माने जाते रहे हैं. उनके दोनों चाचा पूरन सिंह बुंदेला और वीरेंद्र सिंह बुंदेला पूर्व में विधायक और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री भी रहे हैं. दोनों ही भाजपा से कांग्रेस में आ गए.
बुंदेला परिवार की कई कंपनियां बुंदेलखंड इलाके में ग्रेनाइट खनन में लगी हुई हैं. इस कारण इस परिवार को बुंदेलखंड का “ग्रेनाइट किंग” कहा जाता है. चंद्रभूषण बुंदेला ने 12वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी. हलफनामे के अनुसार, उनकी कुल संपत्ति 46.04 करोड़ रुपये है. यह 2022 में 13 करोड़ रुपये से आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर इतनी हो गई है.
बुंदेला के पास रिवॉल्वर और राइफल है पर उनके पास कोई कार नहीं है. उनपर अपनी बेटी खुशी बुंदेला की 70,000 रुपये की देनदारी है. इसके अलावा भारतीय वन अधिनियम की धारा 26 के तहत मुकदमा दर्ज है. लोकसभा में पहली बार चुनाव लड़ रहे बुंदेला चुनाव अभियान के लिए हेलिकाप्टर का प्रयोग कर रहे हैं.
शाहनवाज़ आलम : एलएलबी डिग्रीधारक, बिहार के गांधी के पुत्र
शाहनवाज़ आलम बिहार के अररिया लोकसभा क्षेत्र से राष्ट्रीय जनता दल के उम्मीदवार हैं. वे पहले एआईएमआईएम में थे.
वे पेशे से खुद को किसान बताते हैं. उनके पास एलएलबी की डिग्री है और वे दो बार विधायक रह चुके हैं. वे बिहार के मुस्लिम बाहुल्य सीमांचल क्षेत्र में ‘गांधी’ के तौर पर जाने वाले राजद नेता तसलीमुद्दीन के छोटे पुत्र हैं. शाहनवाज़ खुद राजद की तरफ से बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री रह चुके हैं.
2017 में तसलीमुद्दीन की मृत्यु के बाद अररिया सीट खाली हो गई थी. उपचुनावों में शाहनवाज़ के बड़े भाई सरफराज आलम की जीत हुई थी. उनके अगले साल, शाहनवाज़ ने जोकिहाट विधानसभा क्षेत्र से उपचुनाव जीता था. विधानसभा चुनावों में टिकट नहीं मिलने पर वे एआईएमआईएम में चले गए थे. इस बार उन्होंने जोकिहाट से अपने बड़े भाई को हराया था.
लेकिन पिछले महीने वे तीन अन्य एआईएमआईएम विधायकों के साथ राजद में शामिल हो गए. वे अररिया से दो बार सांसद रह चुके भाजपा के प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.
अप्रैल 2024 में शाहनवाज़ की कुल संपत्ति 2.86 करोड़ रुपये है. यह 2020 में 2 करोड़ रुपये थी.
नीरज मौर्य : बसपा से भाजपा और फिर सपा में शामिल होने वाले दो बार के विधायक
नीरज मौर्य उत्तर प्रदेश के आंवला से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं. 55 वर्षीय नीरज पहले भाजपा में थे. अपने दो दशक के राजनीतिक जीवन में नीरज ने लेफ्ट, राइट और सेंटर समेत सभी तरह की विचारधाराओं का स्वाद चख चुके हैं.
2007 और 2012 दोनों विधानसभा चुनावों में नीरज जलालाबाद से दो बार विधायक चुने गए. 2017 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले उन्होंने पाला बदल लिया. वे दो अन्य बसपा विधायकों, दीपक पटेल व गुरु प्रसाद मौर्य और उनके समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए.
5 साल बाद, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के ठीक पहले एक बार फिर उन्होंने अपनी निष्ठा बदली और समाजवादी पार्टी में चले गए. इन चुनावों में वे सपा में जाने वाले पिछड़ा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के पीछे भाजपा छोड़कर जाने वाले कई नेताओं में से एक थे. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने इसका स्वागत करते हुए कहा था, “भाजपा का विकेट एक-एक करके गिर रहा है और मुख्यमंत्री यह तक नहीं जानते कि क्रिकेट कैसे खेलते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी कहा था कि वे जिस दल में भी जाते हैं उसकी सरकार बन जाती है. इस बार भी वे अपने साथ ढेर सारे नेताओं को लेकर आए हैं.”
हालांकि, अखिलेश के आंकलन को धता बताते हुए भाजपा 2022 विधानसभा चुनाव भी जीत गई.
अब नीरज मौर्य लोकसभा में अपना पदार्पण भाजपा का गढ़ माने जाने वाली आंवला सीट से करने जा रहे हैं. वे यहां से भाजपा के धर्मेन्द्र सिंह और बसपा के आबिद अली के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी संपत्ति अप्रैल 2024 में 8.82 करोड़ रुपये है, जो 2007 में 80 लाख रुपये थी.
धैर्यशील मोहिते पाटिल: प्रभावशाली राजनीतिक परिवार
धैर्यशील मोहिते पाटिल महाराष्ट्र के माधा लोकसभा क्षेत्र से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार) के उम्मीदवार हैं.
46 वर्षीय पाटील पश्चिमी महाराष्ट्र के इलाके में राजनीतिक दबदबा रखने वाले मोहिते-पाटिल परिवार से ताल्लुक रखते हैं. वे पूर्व उप-मुख्यमंत्री विजयसिंह मोहिते-पाटिल के भतीजे और भाजपा के विधायक रंजीतसिंह मोहिते-पाटिल के चचेरे भाई हैं. कुछ हफ्ते पहले तक धैर्यशील माधा जिले में भाजपा के जिला सचिव रहे. वर्तमान सांसद रंजीत सिंह नायक निंबालकर की जीत में भी धैर्यशील का बड़ा हाथ माना जाता है.
अब धैर्यशील माधा से निंबालकर के खिलाफ मैदान में हैं. 2009 में यह सीट एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने जीती थी और 2014 में विजय सिंह मोहिते-पाटिल ने जीती थी. 2019 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले धैर्यशील भाजपा में शामिल हुए थे.
मोहिते-पाटिल परिवार सोलापुर में 100 से ज्यादा विद्यालय और आधा दर्जन व्यावसायिक कॉलेज चलाता है. इसके अलावा जिले के सहकारी क्षेत्र में कम से कम तीन या चार चीनी मिल भी इसी परिवार के हैं.
माधापुर में बड़ी संख्या में गन्ने और प्याज के किसान हैं. इस लोकसभा क्षेत्र में 13 लाख पिछड़े मतदाता हैं, जिनमें से 5 लाख धनगर और तीन लाख माली समुदाय से हैं.
आयुध अधिनियम समेत धैर्यशील पर कुल 2 मुकदमे दर्ज हैं. अप्रैल 2024 में उनकी संपत्ति 12.66 करोड़ है.
सत्यपाल सिंह सिकरवार : भाजपा से निष्काषित, मनोविज्ञान में परास्नातक
सत्यपाल सिंह सिकरवार, नीतू के नाम से लोकप्रिय हैं. वे मध्य प्रदेश के मुरैना से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. 44 वर्षीय सिकरवार 2020 तक भाजपा के साथ थे. उन्होंने 2013 और 2018 का विधानसभा चुनाव मुरैना जिले के सुमावली से जीता था.
सिकरवार को 2020 में “लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल” रहने के कारण भाजपा ने पार्टी से निकल दिया था. इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए. उनके पिता और पूर्व भाजपा विधायक गजराज सिंह सिकरवार का मुरैना और ग्वालियर जिलों में अच्छा खासा प्रभाव था.
हालांकि, मुरैना लोकसभा में भाजपा की मजबूत पकड़ है. पार्टी इसे 1991 से ही जीतती आ रही है. यहां पर अनुसूचित जाति की आबादी 20.1%, अनुसूचित जनजाति की आबादी 6.4% और मुस्लिम आबादी 2.8% है.
सिकरवार मनोविज्ञान में परास्नातक हैं और शोध में प्रवेश भी लिया था. हलफनामे के मुताबिक, उनकी संपत्ति अप्रैल 2024 में 2.36 करोड़ रुपये है.
अनुवाद- अनुपम तिवारी
इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
आया राम, गया राम श्रृंखला की हमारी अन्य रिपोर्ट्स हिंदी में पढ़ने के लिए यहां और अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.
Newslaundry is a reader-supported, ad-free, independent news outlet based out of New Delhi. Support their journalism, here.