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हृदयेश जोशी

उत्तराखंड: चार महीनों में 1,000 से अधिक जंगलों में आग, खराब तैयारियों के बीच मंडराता संकट

उत्तराखंड में इस साल अब तक जंगल में आग लगने की 1,063 घटनाएं हुईं. इनमें से ज्यादातर नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, पौड़ी और उत्तरकाशी जिलों में हैं. ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के कारण जंगल सूखने और सर्दियों में बारिश और तेज़ हवाओं की कमी के कारण स्थिति और भी खराब हो गई है.

राज्य में इस साल अब तक जंगल की आग में पांच लोगों की मौत हो चुकी है और 1,400 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जलकर खाक हो चुका है. उत्तराखंड में हाल ही में हुई बारिश के बाद जहां आग बुझ गई है, वहीं खतरा बरकरार है. आर्थिक और पारिस्थितिक नुकसान का अभी अनुमान ही लगाया जा रहा है. न्यूज़लॉन्ड्री ने मामले की गंभीरता, इसके कारणों और सरकार की प्रतिक्रिया की जांच के लिए वन विभाग के कर्मचारियों, समुदाय के सदस्यों और विशेषज्ञों से बात की.

जंगल में आग लगने का कारण अक्सर मानवजनित होता है. सरकारी अधिकारियों ने इसके लिए शुष्क मौसम को जिम्मेदार ठहराया, जबकि इसका बार-बार होना खराब तैयारियों और ग्राउंड स्टाफ और संसाधनों की कमी की ओर भी इशारा करता है.

उत्तराखंड में चीड़ के पेड़ों की बड़ी संख्या भी इस समस्या में योगदान देती है क्योंकि शुष्क मौसम के दौरान, जब जमीन पर ज्वलनशील चीड़ के पत्तों की मोटी परत में आग लग जाती है तो यह तेजी से फैलती है.

उत्तराखंड सरकार ने अब आग को रोकने और ग्रामीणों को रोजगार प्रदान करने के लिए चीड़ की पत्तियों को इकट्ठा करने और उन्हें ईंधन, उर्वरक, ऊर्जा क्षेत्र और कुटीर उद्योगों के लिए बेचने की योजना शुरू की है. लेकिन क्या यह पर्याप्त है?

देखिये हमारी ये वीडियो रिपोर्ट. 

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