
फ्रांसीसी पत्रकार सेबेस्टियन फार्सिस के भारत छोड़ने पर 21 जून को विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया दी है. विदेश मंत्रालय प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मीडिया को दिए बयान में बताया कि सेबेस्टियन फार्सिस का परमिट अभी भी विचाराधीन है.
उनका कहना था, “सेबेस्टियन फार्सिस ओसीडी कार्ड धारक हैं. ओसीडी कार्ड धारकों को भारत में पत्रकारिता करने के लिए परमिट की जरूरत पड़ती है. उन्होंने मई 2024 में आवेदन किया था और उनका आवेदन अभी भी विचाराधीन है. जहां तक देश छोड़ने का सवाल है, यह उनका निजी फैसला है. अगर उन्होंने यह फैसला ले लिया है, तो ठीक है. लेकिन, उनका वर्क परमिट आवेदन अभी भी विचाराधीन है. उन्होंने मई 2024 में यहां फिर से आवेदन किया था..."
#WATCH | Delhi: On French journalist allegedly leaving the country because of expiry of visa, MEA spokesperson Randhir Jaiswal says, "Sebastien Farcis is an OCI card holder. If you are an OCI card holder, you need permission or a work permit to carry on your journalistic… pic.twitter.com/9xn5bCHUoS
— ANI (@ANI) June 21, 2024
बता दें कि फ्रांस के पत्रकार सेबेस्टीयन फार्सिस ने बताया कि गृह मंत्रालय द्वारा भारत में काम करने की अनुमति नहीं मिलने की वजह से उन्हें अपने परिवार के साथ 17 जून को देश छोड़ना पड़ा. फार्सिस रेडियो फ्रांस इंटरनेशनल, लिबरेशन और स्विस व बेल्जियन सार्वजनिक रेडियो के लिए काम कर चुके हैं. वे भारत में 2011 से बतौर पत्रकार काम कर रहे हैं. न्यूजलॉन्ड्री ने मामले के बाबत गृह मंत्रालय से भी संपर्क किया है. जैसे ही कोई प्रतिक्रिया मिलेगी उसे भी इस ख़बर में जोड़ दिया जाएगा.
After 13 years working as a correspondent in India, the authorities have denied me a permit to work as a journalist. I have thus been forced to leave the country.
— Sébastien Farcis (@sebfarcis) June 20, 2024
Here is my statement. pic.twitter.com/m52Q4ABsRk
फ्रांसीसी पत्रकार ने पेरिस से न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए बताया कि भारत में आम चुनावों के ठीक पहले 7 मार्च को गृह मंत्रालय ने उनके पत्रकारिता परमिट को दोबारा जारी करने से मना कर दिया. इसकी वजह से वे काम नहीं कर सकते थे और परिणामस्वरूप उनकी आमदनी रुक गई. फार्सिस ने बताया कि बार-बार पूछे जाने के बावजूद मंत्रालय ने उन्हें परमिट नहीं जारी करने की कोई भी वजह नहीं बताई. उन्होंने इसपर अपील भी की लेकिन उनका भी कोई लाभ नहीं हुआ.
अपने सार्वजनिक बयान में उन्होंने लिखा, “मैं 2011 से भारत में बतौर पत्रकार कार्यरत हूं और मेरे पास सारे जरूरी वीजा और अन्य कागजात हैं. मैंने भारत में विदेशी पत्रकारों के लिए लगाए गए नियमों के अंतर्गत ही काम किया है और कभी भी बिना परमिट के प्रतिबंधित या वर्जित इलाकों में काम नहीं किया है. कई मौकों पर गृह मंत्रालय ने सीमांत इलाकों में रिपोर्टिंग करने की अनुमति भी दी है. इसलिए इजाज़त नहीं मिलना मेरे लिए एक बड़ा झटका था : मुझे इसकी सूचना भारत में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक आम चुनावों के ठीक पहले दी गई. इसके कारण मैं चुनावों को कवर नहीं कर सका.”
उनके मुताबिक इस घटना का उनके परिवार पर भी असर पड़ा. वे एक भारतीय महिला से विवाहित होने के कारण उनके पास ओवरसीज सिटिज़न ऑफ इंडिया (ओसीआई) का दर्जा है. इसीलिए भारत से उनका बेहद जुड़ाव रहा है, बल्कि भारत उनके लिए दूसरा घर रहा है. लेकिन बिना काम और आमदनी के उनको सपरिवार देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा.
भारत में रहते हुए उनकी रिपोर्टिंग
रेडियो इंटरनेशनल के लिए काम करते हुए उन्होंने मालदीव के भीतर चीन के पक्ष में भावनाओं के “भारत के लिए रोड़ा” होने, भारत में विपक्ष के कानूनी पचड़ों में पड़ने से परेशान होने, भारत में तेजी से होती आर्थिक वृद्धि और सामाजिक विषमताओं, राम मंदिर के उद्घाटन आदि के साथ-साथ बांग्लादेश चुनाव, बांग्लादेश में जहाज के टूटने का स्वास्थ्य संबंधी खतरों और रूस की सेना में नेपालियों को भर्ती किये जाने की खबरें की थी.
लिबरेशन के लिए उन्होंने वेनेसा दुन्याक के भारत छोड़ने और देश में प्रेस की स्वतंत्रता, तांत्रिक योग के एक अंतर्राष्ट्रीय संप्रदाय के ऋषिकेश से संबंध, खालिस्तान-समर्थक कार्यकर्ताओं पर भारत-कनाडा में तनाव आदि मुद्दों पर खबर की थी.
यह घटना इकलौती नहीं है. कुछ महीने पहले, एक और फ्रांस की पत्रकार वेनेसा दुन्याक को भी भारत छोड़ना पड़ा था. वे दो दशकों से भारत में पत्रकारिता कर रही थीं. अधिकारियों द्वारा उनकी पत्रकारिता को द्वेषपूर्ण और खराब बताते हुए उन्हें देश से निकालने की धमकी दी गई थी. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया की पत्रकार अवनी डियाज को भी अप्रैल में देश छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके वीज़ा अवधि को बढ़ाया नहीं गया. जबकि, पत्रकारों की वीज़ा अवधि बढ़ाना एक बेहद सामान्य प्रक्रिया है.
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